पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१०७

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हसक ५४१६ हसतूलिका JO यी०-हमबम । हससुता । हसकूट-सहा पुं० [स०] १ बैल के कधो के बीच उठा हुग्रा कूबड ३ ब्रह्म । परमात्मा । ४ शुद्ध पात्मा। गया से निलिप्त आत्मा । डिल्ला । २ हिमालय के एक शृग का नाम (को॰) । उ०-जे एहि छीर समुद मह परे। जीव गँवाइ हस होइ तरे। हसग-सज्ञा पुं० [म०] हस जिनका वाहन है, ब्रह्मा [को०] । --जायसी (शब्द॰) । ५ जीवात्मा । जीव । उ०—सिर धुनि हसगति'-सशा स्त्री॰ [स०] १ हस के ममान सुदर धीमी चाल । हमा चले हो रमैया राम । -कवीर (शब्द०)। ६ विष्णु । २ ब्रह्मत्व की प्राप्ति । सायुज्य मुक्ति। ३ वीप्त मात्रामो के ७ विष्णु का एक अवतार। एक छद का नाम जिसमे ग्यारहवी और नवी मात्रा पर विराम विशेप-एक वार सनकादिक ने ब्रह्मा से जाकर पूछा---कृपा कर होता है। इसके तुकात मे गुरु लघु का कोई नियम नही है । वताइए कि विषय को चित्त ग्रहण किए हुए है या विषय ही इसी छद की बारहवी मात्रा पर यति मानकर इसे मजुतिलका चित्त को यहण किए है। ये दोनो ऐसे मिले हुए हैं कि हमसे भी कहते है। अलग नहीं करते बनता । जब ब्रह्मा उत्तर न दे सके, तब हसगति'--वि० जिमकी गति या चाल हस के मदृश हो। सनकादिक को अपने ज्ञान का गर्व हो गया। इसपर ब्रह्मा ने हसगद्गदा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] प्रियभाषिणी स्त्री। मधुरभाषिणी स्त्री। भक्तिपूर्वक भगवान् का ध्यान क्यिा। तब भगवान् हस का रूप हसगमन-सज्ञा पु० [सं०] हम के समान सुदर गति [को०] । धारण करके सामने आए और सनकादिक मे बोले तुम्हारा यह हसगमना-मज्ञा स्त्री० [स०] एक देवागना का नाम (को०)। प्रश्न ही अज्ञानपूर्ण है । विषय और उनका चिंतन दोनो माया हसगर्भ - सज्ञा पुं० [सं०] एक रत्न का नाम । (रत्नपरीक्षा) । हैं, अर्थात् एक है। इस प्रकार सनकादिक का ज्ञानगर्व दूर हसगवनि-वि० सी० [स० हसगामिनी] हस के समान चलनेवाली । हो गया। उ०~-हमगवनि तुम्ह नहिं वन जोग। सुनि अपजसु मोहि ८ उदार और सयमी राजा । श्रेष्ठ राजा । ६ सन्यासियो एक भेद । देइहि लोगू।-मानस, २।६३ । उ०--कहि प्राचार भक्ति विधि माखी हस धर्म प्रगटायो।-- हसगामिनी'-- वि० सी० [सं०] हस के समान सुदर, मद गति से सूर (शब्द॰) । १० एक मन । ११ प्राणवायु । १२ घोडा । चलनेवाली। हरे हरदिया हस खिंग गर्रा फुलवारी।-सुजान०, पृ० हसगामिनी-सज्ञा स्त्री १ हस के समान सुदर मद गति से ८ । १३ शिव । महादेव । १४ ईर्ष्या । द्वेप । १५ दीक्षागुरु । चलनेवाली स्त्री। २. ब्रह्मा की शक्ति, ब्रह्माणी का एक प्राचार्य । १६ पर्वत । १७ कामदेव । १८ भैसा । १६ दोहे नाम [को०)। के नवे भेद का नाम जिममे १४ गुरु और २० लघु वर्ण होते है। हसगुह्य-सशा पुं० [स०] भागवत के अनुसार विशिष्ट स्तुतिपरक (पिगला)। २० एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे एक एक मन [को०] । भगण और दो गुरु होते हैं। जैसे, - 'राम खरारी'। इसे 'पति' भी कहते है। २१ रजत । चांदी (को०)। २२ महाभारत हसगृह-सहा पुं० [स०] सोने का कमरा । शयनगृह (को०] । मे वरिणत जरासंध के एक सेनापति का नाम (को०' । २३ हसचूड-सज्ञा पुं० [सं०] एक यक्ष का नाम [को०] । बृहत्सहिता के अन्मार विशिष्ट लक्षणयुक्त एक प्रकार का वृष हस चौपड-सञ्ज्ञा पु० [म० हस + हिं० चौपड] एक प्रकार का पुराना (मो०' । २४ अपने वर्ग या कोटि का प्रधान अथवा श्रेष्ठ व्यक्ति । चौपड का खेल जो पासो से खेला जाता है। अग्रणी व्यक्ति या वस्तु । जैसे, कविहस । २५ प्लक्ष द्वीप का विशेप-इसकी तस्ती मे ६२ घर होते थे। एक ६३ वा घर केंद्र ब्राह्मण (को०)। २६ ब्रह्मा के एक पुत्र का नाम (को०)। मे होता था, जो जीत का घर होता था। तस्ती के प्रत्येक २७ एक प्रकार का नृत्य । २८ मगीत मे एक ताल । हसक चौथे और पांचवे घर मे एक हस का चित्र होता था। खेलने- (को०) । २६ वास्तु विद्या के अनुसार प्रासाद का एक भेद । वाले का पामा जब हस पर पडना था, तब वह दूनी चाल चल सकता था। विशेप-यह हस के ग्राकार का बनाया जाता था । यह बारह हाथ चौडा और एक सड का होता था और इसके ऊपर एक शृग हसच्छन-मजा पुं० [स०] शुठी । सोठ (को०] । वनाया जाता था। हसज -तज्ञा पुं० [सं०] १. हम के पुत्र । सूर्य के पुत्र-धर्मराज, कर्ण हमक-सज्ञा पुं० [स०] १ हम पक्षी। २ पैर की उंगलियो मे पहनने आदि किो०] १२ कार्तिकेय का एक अनुचर । का एक गहना । विछुपा। उ० ते नगरी ना नागरी प्रतिपद हसजा- सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] सूय की कन्या । सूर्यतनया। यमुना। हमत हीन । - केशव (शब्द०)। ३ सगीत मे एक प्रकार का हसणीg:-सशा सी० [हि हग+ णो (प्रत्य॰)] दे० 'हसिका', ताल (को०)। 'हमी' । उ०-सरवर तटि हमणी तिसाई। जुगति विना हरि हसकाता सझा स्त्री॰ [स० हमकान्ता] हसिनी [को० । जल पिया न जाई।--कवीर ग्र०, पृ० १८६। हसकालीतनय-सरा पुं० [सं०] मैसा । महिप [को०] । हसतूल-संज्ञा पुं० [स०] हस का कोमल पर । हम का पन्नु । हसकीलक-सहा पुं० [सं०] रतिवध का एक प्रकार (को०] । ह सतूलिका-स -सभा सी० [म०] दे० 'हमतूल' । हिं० श० ११-१२