पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/११३

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हक अंदेश ५४२५ हकमालिकाना दृष्टि से । पक्ष मे। विपय मे। जैसे,—(क) ऐसा करना क्रि० प्र०-रहना। होना। तुम्हारे हक मे गच्छा न होगा। (ख) हम तुम्हारे हक मे हकदार'-सझा पुं० [अ० हक + फा० दार] १ वह जिसे हक हामिल दुग्रा करेगे। हो । स्वत्व या अधिकार रखनेवाला । जैसे,—इस जायदाद के ३ कर्तव्य । फर्ज। जितने हकदार हैं मन हाजिर हो । २ वह काश्तकार जिसका मुहा०-हक अदा करना = वह बात करना जो नाय, नीति आदि अपनी जमीन पर मौल्सी हक होना है। की दृष्टि से करणीय हो। कर्तव्य पालन करना। जैसे,—वे हकदार'-वि० रवत्व या अधिकार रखनेवाला (को॰] । दोस्ती का हक अदा कर रहे है। हकधक-सज्ञा पु० [अनुध्व० ] चकित । भौचक्का । वेसुध । हक्का- ४ वह वरतु जिसे पाने, पास रखने या काम मे लाने का अथवा वक्का। उ०-कवहूँ हकधक हो रहै, उठ प्रेम हित गाय । वह वात जिसे करने का न्याय से अधिकार प्राप्त हो । जैसे,- सहजो आँख मूंदी रहै, कबहूँ सुधि हो जाय ।-सतवाणी०, (क) यह स्पया तो नीरो का हक है। (ख) यहाँ टहलना भा० १, पृ० १५८ । हमारा हक है। ५ वह द्रव्य या धन जो किसी काम या हकनाक - वि० [अ० हक + फा० ना(प्रत्य॰) + अ० हक हक नाहक । व्यवहार मे किमी को रीति के अनुसार मिलता हो। किमी व्यर्थ । फिजूल । बिलकुल वेकार । उ०-तब तो वह ब्राह्मन मामले मे दस्तूर के मुताविक मिलनेवाली कुछ रकम । दस्तूरी। महादेव जी पै मरन लाग्यो। तब महादेव जी प्रगट होइ वा जैसे,—(क) पुरोहित का हक तो पाँच स्पए सैकडा है। (ख) ब्राह्मन सो कहे, जो तू हकनाक क्यो मरत है ? वाके भाग्य मे हमारा हक देकर तव जाइए। (ग) अदालत मे मुहर्रिरो का पुत्र नाही ।-दो सो वावन०, भा॰ २, पृ० ४५ । हक भी तो देना पडता है। हकनाहक'-अव्य० [अ० हक + फा० ना (प्रत्य॰) + अ० हक्] १. क्रि० प्र०-चाहना ।—देना ।-पाना।-मांगना। विना उचित अनुचित के विचार के । जवरदस्ती। धीगाधीगी मुहा०-हक दवाना या मारना = वह रकम न देना जो किसी को से । जैसे,—क्यो हकनाहक बेचारे की चीज ले रहे हो । रीति के अनुसार दी जाती हो। जैसे,-नौकरो का हक मार २ बिना कारण या प्रयोजन । निष्प्रयोजन । व्यर्थ । फज्ल । कर आप राजा न हो जायेंगे। जैसे,—क्यो हकनाहक लड रहे हो। उ०-हकनाहक पकरे ६ ठीक वात । वाजिव वात । उचित वात । ७ उचित पक्ष । न्याय सकल जडिया कोठीवाल। हुडीवाल सराफ नर अरु जोहरी पक्ष । जैसे,-मै तो हक पर हूँ, मुझे किस बात का डर है। दलाल ।-अर्ध०, पृ० ४३॥ मुहा०-हक पर होना = न्याय्य पक्ष का अवलवन करना । उचित हकनाहक'-सज्ञा पु० नीति अनीति । न्याय अन्याय । उचित अनुचित । बात का आग्रह करना। सत्य असत्य [को०] । ८ खुदा । ईश्वर । (मुसलमान) । हकपसद-वि० [अ० हक + फा० पसद] हक, न्याय या सत्य को पसद हकप्रदेश-वि० [अ० हव+ फा० अदेश] हित सोचनेवाला। भलाई करनेवाला। चाहनेवाला (को॰] । हकपसदी-सज्ञा स्त्री॰ [अ० हक + फा० पसदी] हकपसद होना । सत्य हकग्रागाह-वि० [फा० हकआगाह] सत्यनिष्ठ । सज्जन । साधु । को पसद करना । सत्यप्रियता [को०] । महात्मा (को०] । हकपरस्त-वि० [अ० हक + फा० परस्त] १ ईश्वरभक्त । २ सत्य हकगो-वि० [फा० हकगो] सत्यभापी। हक या न्याय की बात कहने- का उपासक । सत्यनिष्ठ । न्यायी। वाला (को०] । हकपरस्ती - सज्ञा स्त्री॰ [ग्रा०हक + परस्ती] धर्मपरायणता।सत्यनिष्ठता। हकगोई-सज्ञा स्त्री० [फा० कगोई] सत्यवक्तृत्व । सत्यवादिता [को०)। हकफरामोश-वि० [अ० हक + फा० फरामोश] कृतघ्न । उपकार और हकतलफी-सज्ञा स्त्री० [अ० हक + तलफी] १ अधिकार का अपह- एहसान भूल जानेवाला । नमकहराम (को॰] । रण। हक छीनना या मार लेना। वेइसाफी । अन्याय। उ० हकफरामोशी-सशा सी० [अ० हक + फा० फरामोशी] कृतघ्नता। विधाता ने उसे छोटा न बनाया होता, तो आज उसकी यह नीचता । नमकहरामी [को०] । हकतलफी न होती। -गवन, पृ० ३०३। २ हानि । क्षति । हकवक-वि० [अनु०] दे० 'हक्का बक्का' । हकतायत-सज्ञा स्त्री० [अ० हक+तात ] अधीनता । ताबेदारी। हकवकाना-क्रि० अ० [अनु० हक्का वक्का] विसी ऐसी बात पर उ०.-लिया नवी कोरान मे पायत । मेरी उमत करै हकतायत । जिसका पहले से अनुमान तक न रहा हो अथवा जो अनहोनी -सत० दरिया, पृ० २२ । या भयानक हो, स्तभित हो जाना । ठक रह जाना । हक्का- हकताला-सशा पुं० [अ० हक+तग्राला ] महिमाशाली ईश्वर । वक्का हो जाना। सहसा निश्चेष्ट और मौन होकर मुंह ताकने खुदा । परमात्मा । उ०-ता महि तुम हजरत की बाला । सब लगना । घबरा जाना। के एक वहै हकताला।-ह० रासो, पृ० ४० । हकमालिकाना-सज्ञा पुं० [अ० हक + फा० मालिकानह] किसी हकदक--वि० [अनु०] हबका बक्का । स्तमित । चकित । चीज या जायदाद के मालिक का हक ।