पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१२३

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पृ०४८। हतच्छाय ५४३५ हतसाध्वस हतच्छाय-वि० [सं०] कातिहीन । क्षीणप्रभ । धूमिल [को॰] । हतभाग्य-वि० [म०] भाग्यहीन । बदकिस्मत । उ०---शल निर्भर न हतजल्पित-ज्ञा पुः [म०] बेकार की बात । व्यर्थ का वार्तालाप [को०] । वना हतभाग्य, गल नही सका जो कि हिम खड । दौडकर मिला हतजीवित-वि[सं०] जो जीवन से निराश हो । हताश । न जलनिधि अक, प्राह वैसा ही हूँ पापड । --कामायनी, हतजीवित-वि० निराशा से भरी जिंदगी। २. जीवन से निराश होना । नैराश्य । हतमति--वि० [सं०] हतज्ञान । हतचित्त । हतज्ञान--वि० [स०] ज्ञानशून्य । अचेत । बेहोश । सज्ञाशून्य । हतमना--वि० [स० हत + मनस्] जिसका मन टूट गया हो । निराश- हतताप-वि० [म.] जिसका ताप दूर हो गया हो। शीतल [को०] । हृदय । खिन्न मन । उ०--जा चुके सब लोग फिर अावास, हतमना कुछ और कुछ सोल्लास । --सामधेनी, पृ० ४२ । हतत्रप--वि० [सं०] निर्लज्ज [को॰] । हतमान--वि० [स०] १ जिसका घमड चूर चूर हो गया हो । जिसका हतत्विप्-वि० [स०] जिसकी दीप्ति या प्रभा समाप्त हो गई हो । गर्व हो गया हो। २ जिसका अपमान किया गया हो । हतच्छाय [को०] । तिरस्कृत। हतदैव-वि० [स०] दई का मारा । अभागा । हतद्विप्-वि० [स०] जिसने शत्रुप्रो का विनाश किया हो। हतमानस-वि० [सं०] हतज्ञान । हतचेता। हतधी-वि० [म०] दे० 'हतचेत', 'हतबुद्धि' [को॰] । हतमूर्ख--वि० [स०] अत्यत मूर्ख । जडमति । वुद्धिशून्य [को०] । हतध्वात--वि० [म०] जिसने अवकार दूर कर दिया हो । कालुष्य- हतमेधा-वि० [स० हतमेधस्] जिमकी मेधा नष्ट हो गई हो। हतचेता। हीन । कालिमारहित (को॰] । हतबुद्धि (को॰] । हतन--सचा पु० [स० हत + (अन् = ) न (प्रत्य॰)] बध । हनन । हतयुद्ध-वि० [स०] जो युद्ध के उत्साह से हीन हो। युद्धवृत्ति से रहित । हतन हिए उ०--नाको मैं आन्यौ। तव हरि और खेल इक हतरथ--सज्ञा पु० [स०] वह रथ जिसके अश्व और सारथी मार डाले ठान्यौ।-नद० ग्र०, पृ० २८५। गए हो किो०] । हतना-क्रि० स० [स० हत + हिं० ना (प्रत्य॰)] १ वध करना । हतलक्षण-वि० [म०] अभागा । हतभाग्य । बदकिस्मत [को०] । मार डालना। उ०-कहाँ राम रन हती प्रचारी ।—तुलसी हतलेवा--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हाथ + लेना] विवाह की एक रस्म । (शब्द०)। २ मारना। पीटना । प्रहार करना। ३ अन्यथा पाणिग्रहण । उ०--वनडा नं सूपै वनी, हतलेवे मिल हाथ । करना। पालन न करना। भग करना। न मानना। मद्यपान रत, स्त्रिजित होई । सन्निपात युत वातुल जोई । देखि सठ कर दे चुगली समे, श्रवण चुगल मुख साथ ।-बाँकी० ग्र०, भा० २, पृष्ठ ५८ । देखि तिनको सव भागे। तासु वात हति पाप न ताग ।-- केशव (शब्द०)। हतवाना--क्रि० स० [हिं० हतना का प्रेरणा०रूप] १ बध कराना। हतपुत्र-वि० [स०] जिसके सतान का हनन किया गया हो। जिसके पुत्र मरवाडालना। २ किसी व्यक्ति को किसी के द्वारा को मार डाला गया हो। हतप्रभ-वि० [सं०] जिसकी काति या तेज नष्ट हो गया हो । हतविधि-वि० [०] अभागा। भाग्यहीन [को०] । प्रभा से रहित । हतविनय-वि० [म०] जिमका विनय नष्ट हो गया हो । उच्छृखल । हतप्रभाव-वि० [३०] १ जिसका प्रभाव न रह गया हो। जिसका विनयरहित । अशिप्ट [को०] । अमर जाता रहा हो । २ जिसका अधिकार न रह गया हो। हतवीर्य--वि० [स०] बलरहित । शक्तिहीन । जिसकी वात कोई न मानता हो। हतवृत्त--वि० [स०] जिसमे छदसवधी दोष हो। जो सदोप छद हतप्रमाद--वि० [सं०] जिसका प्रमाद दूर हो गया हो [को०) । युक्त हो (को०] । हतप्राय--वि० [सं०] जो लगभग मार डाला गया हो [को०] । हतवेग--वि० [स०] जिसकी गति नष्ट या अवरुद्ध हो गई हो (को॰] । हतवाधव-वि॰ [स० हतवान्धव] जिसके वधु वाधव, सवधी हत हो। हतव्रीड-- वि० [स०] निष्नप । निर्लज्ज [को०] । स्वजनो से रहित। हतशिष्ट, हनशेप--वि० [स०] जीवित बचा हुआ। जो मारे जाने से हतबुद्धि-वि० [स०] बुद्धिशून्य । मूर्ख । वचा हुअा हो [को०] । हतभग, हतभाग--वि० [स.] दे॰ 'हतभाग्य' । हतश्रद्ध--वि० [सं०] श्रद्धारहित । श्रद्धाविहीन । हतभागीg--वि० [ स० हत + या भागी ] [वि० बी० हतभागिन, हतश्री-वि० [स०] जिसकी श्री या काति नष्ट हो गई हो । श्रीविहीन् । हतभागिनि, हतभागिनी] अभागा । भाग्यहीन । सपत्तिरहित। उ०-पावकमय ससि स्रवत न अगी। मानहु मोहि जानि हतसपद्-वि० [स० हतमम्पद्] दे॰ 'हतश्री' । हतभागी ।--मानस ५।१२। हत साध्वस-वि० [सं०] विगतभय । निर्भीक [को० । हि० श० ११-१४ O- खूब पिटवाना।