पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हथकरी ५४३८ हथलेवा हथकरी- 1-~सज्ञा स्त्री० [हिं० हाथ + कडा ] दूकान के किवाडो मे लगा दूसरी ओर कलाई से। हथमाकर । यसकर । उ०--भुजवध हुमा एक प्रकार का ताला । पहुंचि बीटी हथफूल है जु खासा ।-व्रज० ग्र०, पृ० ५८ । विगेप-यह ताला एक कडी से जुड़े हुए लोहे के टो कडो के हफेर -सचा पुं० [हिं० हाथ + फेग्ना] १ प्यार करते हुए शरीर रूप मे होता है और दोनो ओर ताले के अँकुडे की तरह पर हाथ फेरने की क्रिया । २ रुपए पेमे के लेन देन के समय खुला रहता है। इसी मे हाथ डालकर कुजी लगा दी जाती है। हाथ से कुछ चालाकी कग्ना जिसमे दूसरे के पाम कम या खराव सिक्के जायें। हाथ की चालाकी । हथकरी --सशा स्त्री० दे० 'हथकडी' । उ०-सु दर विरहनि वदि ३ दूमरे के माल मैं विरह दोनी आइ । हाय हथकरी, तीक गलि, क्यो करि को चुपचाप ले लेना। किमी वस्तु या धन को सफाई के साय उडा लेना। निकस्यो जाइ।-सु दर० ग्र०, भा० २, पृ० ६८३ । क्रि० प्र०--करना। हथकल-संज्ञा पु० [हिं० हाय + कल ] १ पेच कसने के लिये लुहारो ४ थोडे दिनो के लिये विना लिखापढी के लिया या दिया हुया का एक औजार । २ करघे की दो डोरियाँ जिनका एक छोर कर्ज । हथउधार । तो ये के ऊपर बँधा रहता है और दूसग लग्धे मे । ३ क्रि० प्र०—देना। --लेना। तार ऐंठने के लिये एक श्रीजार जो आठ अगुल का होता हे और जिसमे पेचकश लगा होता है। ४ २० 'हयकरा' । हथफेरि -~-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० हथ+फेरी] हाथ की सफाई। उ०-- ज्या हयफरि दिखावत चांवर, अत तो धूरि को धूरि छनंगी । हथकोडा T-मशा पु० [हि. हाथ + कोडा] कुश्ती का एक पेच । --सु दर० ग्र०, भा० २, पृ० ४६१ । हथखडा---सज्ञा पु० [हिं० हाथ + काड ] दे० 'हथकडा' । हथवेटाा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हाथ + बेट] एक प्रकार की कुदाली जो हथछुट-वि० [हिं० हाथ + छूटना] जिसका हाथ मारने के लिये बहुत खडे गन्ने काटने के काम मे पाती है। जल्दी उठता या छ्टता हो। जिसकी मार वैठने की आदत हो। हथरकी-मद्या स्त्री० [हिं० हाथ + रखना] चमड़े की थैली जो कोल्हू हथछोडा--वि० [हिं० हाथ + छोडना ] दे० 'हथछुट' [फो०] । मे गन्ने डालनेवाला हाय मे पहने रहता है । हथडा@--मज्ञा पुं० [ स० हस्त, प्रा० हथ्थ + डा (प्रत्य॰)] दे० हथरस-सज्ञा पुं० [हिं० हाथ + रस] हस्तमैथुन । हस्तक्रिया । 'हाथ' । उ०—करहा काछी कालिया, भुइँ भारी घर दूरि। हथलपक, हथलपका-वि० [हिं० हाथ + लपकना हाथ से लपक लेने हथडा कॉइन खचिया, राह गिलतइ सूर । –ढोला०, दू० ४६६ । या उडा देनेवाला । द्रव्यादि पर हाथ मारनेवाला। उ०-अब हथधरी-नशा स्त्री० [हिं० हाय + धरना ] लकडी की वह पटरी जो ऐसा हथलपका हो गया है कि सौ जतन से पैसे रख दो, खोज- नाव से लगाकर जमीन तक दो आदमी इसलिये पकडे रहने है कर निकाल लेता है।- र गभूमि, भा॰ २, पृ०७५१ । जिसमे उमपर से होकर लोग उतर जायें । हयलपकी-संज्ञा स्त्री० [हिं० हाथ + लपकी] चोरी । झपट्टा। छीना- हथनाg -क्रि० स० [स० हत, हिं० हतना ] दे॰ 'हतना' । उ०- झपटी । उ.-दुरवस्था मे जगतसिंह की हयलपकियां बहुत रघुनाथ श्री हथ हथे रावण, परम सता कीध पावण।--रघु० अखरती। मान०, मा० ५, पृ० ३०८ । रु०, पृ० २२७ । हथलपकौअल-वि० [हिं० हाथ + लपकोवल] हाथ बढाकर छीन हथनापुर--पज्ञा पु० [सं० हस्तिनापुर ] ८० 'हस्तिनापुर' । लेना। हस्तगत कर लेना । छीना झपटी । उ०—(क) शेक्म- उ०-हाड हटरको हथ्यि बीर खच्यो कर सद्दे । के पीयर पर हथलपकौअल कर मरचेंट प्राफ वेनिस के भी मरचेट हथनापुर चद । वीर खचै वलिभद्रे ।--पृ० रा०, २६।७३ । बन गए।-प्रेमघन॰, भा०२, पृ० ४३४ । (ख) ऐमी भी हथनारि- हथलपकौनल ठीक नही कि जो वेतरह उधर से कुछ उडा -सज्ञा स्त्री० हिं० हाथी+ नाल ] दे० 'हवनाल' । लिया।-प्रेमघन०, भा० २, पृ० ३१ । उ०-उठी कोर हय गय प्रवल, दिठ्ठ दुअन छुटि धीर । दिपि धनुधर हयनारि धरि, भरकि भरहरी भीर ।--पृ० हथलपक्का-वि० [हिं० हाथ + लपकना] दे॰ 'हथलपक', 'हथलपका' । रा०,८।४६। हथली'-सज्ञा स्त्री० [हिं० हाथ + ली] चरखे की मुठिया जिसे पकडकर चरखा चलाते है। हथनाल--सज्ञा पुं० [हिं० हायी + नाल ] वह तोप जो हाथियो पर चलती थी । गजनाल । हथली-सज्ञा स्त्री० [स० हस्त + तली या स्थली, प्रा० हत्यल्ली] दे० 'हथेली' । उ०-हथली सोहें मनु पूरण चदा। अगुरिन हथनी -पज्ञा स्त्री० [स० हस्तिनी, हिं० हाथी+नी (प्रत्य॰)] पांति शोभा अरविंदा ।-कवीर सा०, पृ० ६६ । हाथी की मादा। हथलेवा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हाथ + लेना] विवाह मे वर कन्या का हाथ हथफूल--सज्ञा पुं० [हिं० हाय + फूल] १ एक प्रकार की पातशवाजी। अपने हाथ मे लेने की रीनि । पाणिग्रहण । उ.-सेद सलिल २ हथेली की पीठ पर पहनने का एक जडाऊ गहना जो रोमाच कुस, गहि दुलही अरु नाथ । हियो दियो सँग हाथ के सिकडियो के द्वारा एक प्रोर तो अंगूठियो से बँधा रहता है और हथलेवा ही हाथ |--विहारी (शब्द॰) ।