पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१३७

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हरतार' अगरचे। हरगौरी ५४४६ हरगौरी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] शिव का अर्धनारीश्वर रूप । अर्धनारीनटेश्वर हरण-सचा पुं० [सं०] १ जिसकी वस्तु हो उसकी इच्छा के की मूर्ति [को०] । विरुद्ध लेना । छीनना। लूटना या चुराना । जैसे,-धनहरण, हरगौरी रस-सज्ञा पुं॰ [स०] रससिंदूर । (आयुर्वेद) । वस्त्रहरण। २ दूर करना । हटाना । न रहने देना। मिटाना । जैसे,-रोगहरण, सकटहरण, पापहरण । हरचद-अव्य० [फा०] १ कितना ही । बहुत या बहुत बार । जैसे,- मैने हर चद मना किया, पर उसने न माना। २ यद्यपि। ३ नष्ट करना । नाश । विनाश । सहार। ४ ले जाना । वहन । जैसे,--सदेशहरण । ५ (गणित मे) भाग देना। तकसीम करना । ३ दायजा जो विवाह मे दिया जाता है। हरचदन-सञ्ज्ञा पुं० [म० हरिचन्दन] दे० 'हरिचदन'। उ०-- ७ वह भिक्षा जो यज्ञोपवीत के समय ब्रह्मचारी को दी गुलक विराजत कर्ण महँ शीरप शुभद नियार । हरचदन को जाती है । ८ वीर्य । शुक्र (को०)। ६ सोना। स्वर्ण (को०) । तिलक वर, उर सुमनन के हार ।--प० रासो, प० ६ । १० कपर्दिका । कौडी (को०) । ११ उबलता हुआ जल (को०)। हरचूडामणि-सज्ञा पुं० [सं० हरचूडामणि] शिव का शिरोभूषण, १२ बलपूर्वक किसी को भगा ले जाना । जैसे, - सयोगिता- चद्रमा [को॰] । हरण, सुभद्राहरण । १३ घोडे का दानापानी । घोडे का हरजा--सज्ञा पु० [अ०] १ दे० 'हर्ज' । २ उपद्रव । गडबड (को । चारा (को०) । १४ कर । हस्त । हाथ (को०) । हरजा'--सज्ञा पुं॰ [फा० हर + जा( = जगह)] सगतराशो की यह टाँकी जिससे वे सतह को हर जगह वरावर करते हैं । चौरस हरणकसीप@f- सज्ञा पुं॰ [सं० हिरण्यकशिपु] दे० 'हिरण्यकशिपु' । करने की छेनी । चौरसी। उ०-हरणकसीप वध कर अधपती देही । इद्र को बीभो प्रहलाद न लेही ।--दक्खिनी०, पृ० २८ । हरजा'--अव्य० हर जगह । हर एक स्थान पर [को०] । हरजा'-सज्ञा पु० [अ० हरज, हर्ज ] १ हरज । हर्ज । २ हरजाना। हरणहार- वि० [सं० हरण + हि० (प्रत्य०) हार ( = वाला) ३ हानि । नुकसान । दूर करनेवाला । हरनेवाला । उ०-विपदा हरणहार हरि हे करो पार |--अाराधना, पृ० २१ । हरजाई'-सज्ञा पुं० [फा०] १ हर जगह घूमनेवाला । जिसका कोई ठीक ठिकाना न हो । २ बहल्ला । आवारा । हरणाखी--वि० [ सं० हरिणाक्षी ] हरिणाक्षी । मृगनयनी । हरजाई-सज्ञा स्रो० १ व्यभिचारिणी स्त्री । कुलटा । २ वेश्या । उ.-काछी करह विy भिया घडियउ जोइण जाइ। हरणाखी रडी । खानगी। जउ हसि कहइ, पाणिसि एथि विसाइ ।--ढोला०, दू० २२८ । हरजाना-सज्ञा पुं० [फा०] १ नुकसान पूरा करना । हानि का हरणि-सञ्ज्ञा मी० [स०] १ मरण । मृत्यु । मौत । २. पानी के निकास की नाली । जलप्रणाली [को०] । वदला । क्षतिपूर्ति । २ वह धन या वस्तु जो किसी को उस नुकसान के बदले मे ( उसके द्वारा जिससे या जिसके हरणीय---वि० [सं०] हरण करने या ले लेने योग्य [को०) । कारण नुकसान पहुँचा हो) दी जाय, जो उसे उठाना पडा हरता@'-सचा पुं० [सं० हर्ता] दे॰ 'हर्ता' । उ०—तु धाता हो। हानि के बदले मे दिया जानेवाला धन । क्षतिपूर्ति का करतार तु भरता हरता देव । तु दत्ता गोरस तुही प्रसन होउ द्रव्य । जैसे,—अगर तुमने वक्त पर सभी चीज न दी तो प्रभु मेव ।--पृ० रा०, ६।२१ । (ख) है हरता करतार प्रभु १००) हरजाना देना पडेगा। कारन करन अखेद ।-हम्मीर०, पृ० ६४ । क्रि० प्र०-देना।-मांगना ।-लेना । हरता'g-- सज्ञा स्त्री० [सं०] हरत्व । शिवत्व । हरजेवडी--सज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक प्रकार की छोटी झाडी जिसे हरताई@--सज्ञा स्त्री० [सं० हर + हि० ताई (प्रत्य॰)] शिवत्व । वाख भी कहते हैं । निरविषी । पुरही । हरत्व । महादेवत्व । उ०-अब याकै बल करउँ लराई । हर विशेष—यह झाडी प्राय सारे भारत और सभी गरम प्रदेशो छनक मैं हर हरताई ।--नद० ग्र०, पृ० १२२ । मे पाई जाती है। इसकी डालियो और पत्तियो पर बहुत से हरता धरता--सञ्ज्ञा पुं० [सं० हर्ता +धर्ता (वैदिक)] १ रक्षा और रोएँ होते हैं। इसकी जड और पत्तियो का व्यवहार ओषधि नाश दोनो करनेवाला । वह जिसके हाथ मे बनाना बिगाडना के रूप में होता है। या रखना मारना दोनो हो । सब अधिकार रखनेवाला स्वामी। हरट्ट-वि० [सं० हृष्ट ] दृढ अगोवाला । मजबूत । मोटा ताजा। २ सब बात का अधिकार रखनेवाला। सब कुछ करने की हट्टाकट्टा । हृष्ट पुष्ट । उ०-हैवर हरट्ट साजि, गैबर गरट्ट शक्ति या अधिकार रखनेवाला । पूर्ण अधिकारी । जैसे,-- सम, पैदर के ठट्ट फौज जुरी तुरकाने की।-भूपण (शब्द०)। आजकल वही उनकी सारी जायदाद के हरता धरता हो रहे है। हरटिया--सज्ञा पुं० [ स० अरहट्ट ] दे॰ 'हरठिया' । हरतार--सज्ञा स्त्री० [स० हरिताल] दे० 'हरताल' । उ०--का हरठिया -सञ्ज्ञा पु० [हि० रहँट ] रहँट के वैल हाँकनेवाला व्यक्ति । हरतार पार नहि पावा । गधक काहे कुरकुटा खावा।--जायसी हरड़ा सञ्चा पुं० [सं० हरीतकी ] दे॰ 'हड' और 'हरी' । (शब्द॰) ।