पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१३८

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हरतार ५४५० हरदौल हरतार'--वि० [स० हर्तृ (>हर्ता) का वहुवचन हर्तार ] दे० 'हर्ता' । विशेप-यह पीले या गेरुए रग की बुकनी स्प मे फमल की उ०-भावी हरतार करतार प्रभु लेषिय ।-हम्मीर०, पत्तियो पर जम जाता है और उसे वटी हानि पहुंचाता है। इसे पृ०६४। गेई भी कहते हैं। यौ०-हरतार करतार =जो हर्ता और कर्ता हो । मुहा०-हरदा बैंगनी होना = लाल पीला होना । उ०--तुम तो हरताल--सज्ञा स्त्री॰ [स० हरिताल] एक खनिज पदार्थ जिसमे सी मे हरदा बैंगनी हो । तुम्हारे मुंह कौन लगे ।फिसाना०, भा० ३, ६१ भाग सखिया और ३६ भाग गधक का रहता है । पृ० १७॥ विशेष--यह खनिज पदार्थ एक उपधातु है जो खानो मे रोडो के हरदिया। -वि० [पू०हिं० हरदी] हल्दी के रग का । पीला । रूप मे स्वाभाविक मिलता है और बनाया भी जा सकता है। हरदिया'-सझा पुं० पीले रंग का घोडा। यह पीले रंग का और चमकीला होता है। इसमे गधक और हरदिया देव -सज्ञा पुं० [सं० हरदत्त + देव] दे० 'हग्दोल' । सखिया दोनो के सम्मिलित गुण होते हैं । वैद्य लोग इसको हरदी --सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० हरिद्रा] दे० 'हदी'। शोध कर गलित कुप्ट, वात रक्त आदि रोगो मे देते हैं जिससे घाव भर जाते है । गायुर्वेद मे हरताल की गणना उपधातुग्रो हरदू-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक बडा पेड जो हिमालय मे जमुना के पूर्व मे है । इसमे स्याही या रग उडाने का गुण होता है, इससे पुराने तीन हजार फुट तक के ऊँचे लेकिन तर स्यानो मे होता है। समय मे पोथी लिखनेवाले किसी शब्द या अक्षर को उडाने के विशेष-इस वृक्ष की छाल अगुल भर मोटी बहुत मुलायम, खुर- स्थान पर उसपर घुली हुई हरताल लगा देते थे जिससे कुछ दुरी और सफेद होती है । भीतर की लकडी वहृत मजबूत और दिनो मे अक्षर उड जाते थे। रेंगाई मे भी इसका व्यवहार होता पीले रंग की होती है और साफ करने से बहुत चमकती है। है और छोट छापनेवाले भी अपनी प्रक्रिया मे इसका व्यवहार इससे खेती के और सजावट के सामान, बदूक के कुदे, कधियाँ और नावें बनती हैं। करते है। हरदौल- पर्या-पिंजर । ताल । गोदत । विडालक । चित्रगध । -सशा सं० [स० हरदत्त] प्रोडछा के गजा जुझारसिह (सन् १६२६-३५ ई.) के छोटे भाई । मुहा०-(क्सिी वात पर) हरताल लगाना या फेरना = नष्ट विशेष-ये वडे सच्चे और भ्रातृभक्त थे। एक बार जब महाराज करना । किया न किया वरावर करना । रद्द करना। जैसे,- जुझारसिंह दिल्ली के बादशाह के काम से गए थे, तब वे राज्य तुमने तो मेरे सब कामो पर हरताल फेर दी। का प्रबध अपने छोटे भाई हरदत्तसिंह या हरदौल सिंह के उपर हरताली'-वि० [हिं० हरताल+ ई] हरताल के रग का । छोड गए थे। इनके मुशासन मे वेईमानो की नही चलने पाई हरताली- सज्ञा पुं० एक प्रकार का पीला या गधकी रग । थी। इससे जव महाराज जुझारमिह लौटकर पाए, तब उन सब हरतालेश्वर--सज्ञा पुं॰ [स०] एक रसौपध जो हरताल के योग से ने मिलकर राजा को यह सुझाया कि हरदौल के साथ बनती है। महारानी (उनकी भावज) का अनुचित सवध है। महारानी विशेष-पहले पुनर्नवा (गदहपूरना) के रस से हरताल को खरल करके अपने देवर को बहुत प्यार करती थी और हरदत्त भी उन्हें टिकिया बनाते है । फिर उस टिकिया को पुनर्नवा की राख मे अपनी माता के समान मानते थे। राजा ने अपने सदेह रखकर मिट्टी के बरतन मे डाल मद आंच पर चढा देते हैं। की वात रानी से कही, और यह भी कहा कि इस प्रकार पाँच दिन तक वह टिकिया पकत है, फिर ठढी हम तुम्हें सच्ची तभी मान सकते हैं जब तुम अपने हाथ से करके रख ली जाती है। इस भस्म की एक रत्ती गिलोय के हरदौल को विप दो। रानी ने अपने सतीत्व की मर्यादा के काढे के साथ सेवन करने से वातरक्त, अठारह कार के कुष्ठ, विचार से स्वीकार किया और हरदौल को विपमिश्रित मिठाई फिरग वात, विसर्प और फोडे आराम हो ज ते है। खिलाने को बुलाया । हरदौल के आने पर रानी ने सव हरतेज-सज्ञा पुं॰ [म० हरतेजस्] पारा । पारद । व्यवस्था कही । सुनते ही हरदौल ने कहा कि माता तुम्हारे सतीत्व की मर्यादा की रक्षा के लिये मैं सहर्ष इसे खाऊँगा। विशेप-पुराणो और वैद्यक मे यह शिव का वीर्य कहा गया है । इतना कहकर वे मावज के हाथ से मिठाई लेकर झट से खा विशेष ग्विरण के लिये दे० 'पारा' । गए और थोडी देर मे परलोक सिधारे । इस घटना का प्रजा हरद-सज्ञा स्री० [स० हरिद्रा] दे॰ 'हल्दी' । उ०--कनक कलस पर वडा प्रभाव पड़ा और सब लोग हरदौल की देवता के तोरन मनि जाला । हरद दूब, दधि, अच्छत माला |--तुलसी समान पूजा करने लगे। धीरे धीरे इनकी पूजा का प्रचार (शब्द०)। वहुत वढा और सारे बुदेलखड मे ही नही बल्कि सयुक्त प्रात हरदग्धमूति-सज्ञा पुं० [स०] कामदेव का नाम जिसको शिव जी ने भस्म ( उत्तर प्रदेश) और पजाव तक ये पुजने लगे। इनकी चोरी कर दिया था [को०)। या वेदी स्थान स्थान पर बनी मिलती हैं और बहुत से घरानो हरदा--सञ्ज्ञा पुं० [सं० हरिद्रा] फसल मे लगनेवाले कीटाणुओ का मे ये कुलदेवता के रूप मे पूज्य माने जाते हैं । इन्हें हरदिया समूह । फसल का एक रोग । गेरई। देव भी कहते हैं।