पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१४०

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हरबराना ५४५२ छड प्राय। 1 हरवरानाg+-- कि० अ० [हिं० हरवर] दे॰ 'हडबडाना'। हरमुखी--मशा की० [सं०] एक वृत्त । दे० 'एलमुग्री' । हरवरिया --वि० [हिं० हरवर] उतावला । हरयाल, हरयाला@-मणा जो [f] हरियानी । गैनिमा । हरवरी-सहा स्त्री०, पुं० [हिं० हग्वर + ई (प्रत्य॰)]दे० 'हडपटी'। हरये--प्रव्य० [f०] ६० 'हो' । उ०--वाढी चोप चुहल की हिय में हरवरी ।--घनानद, हरवल'.-सहा मी० हिं० हर + पोर (प्रत्य॰)] वह माया जो हर. पृ० १६॥ हरवल'-~-सज्ञा पुं० [अ० हरावल] दे० 'हरावल' । उ०-चढि चले वाही को बिना ब्याज के पेशगी या उधार पिया जाना है। साह हरबल सभीर।-है० रामो, पृ०७० । हरवल(र--मरा ० [तु० हगवल] ३० 'हगरत' । हरवल@---सता पुं० [हिं० हग्वर] दे० 'हरवर'। उ०-~-गर्व गुमान हरवली-सश मी० [तु० गत] मेगा Tी अध्यक्षता। फांज को महत कहावे, भक्ति करन को हवन धाए। -कवीर सा०, प्रपमरी । उ०-~-जी नहि देनी प्रकार दगन हग्बती प्राय । भा० ३, पृ० २६२ . मन मयाम जे मुतिन के को मर करतो गाय ।-रसनिधि हरवा- सना पुं० [अ० हरवह, ] अस्त्र । हथियार। (शन्द०)। यौ०-हरवा हथियार। हरवल्लभ-सपा पु० [०] १ मगीत दामोदर ने अनुमार लाल के २ पुरुपेद्रिय । लिंग। (वाजारू)। साट मुख्य भेदो में से एक का नाम। २ प्रयेा धतूरा या पुष्प हरवासर-सज्ञा पुं० सं० हरि अथवा हर( = विष्ण या शिव 'रुद्र') या फ्त जो शिय को प्रिय है (को०)। + वामर ( = तिथि)] एकादशी । उ०~हरबामर दिन पहतो चद्र यदन धन लागइ छ पाय !-वी० रामो, हरवाः' - संग पुं० [सं० हार + हिं० वा (प्रत्य॰)] ३० "हा। पृ० ५१॥ 30-चपा हग्या अंग मिलि अधिर मुहार। जानि पर मिय विशेप-सस्कृत मे हरिवासर शब्द का प्रयोग एकादशी के लिये हियरे जब मिलाइ।-नुतमी (शद०)। हमा है, अथवा हर का अयं शिव या रुद्र है। रुद्र ग्यारह माने हरवाल-वि० [मं० लघुय] ३० हरया' । उ- -(क) मदर मौन गहे गए हैं अत हर का अर्थ ग्यारह होगा और बासर का प्रय दिन रहै जानि म नहि मोर। पिन बोल गुरवा पहें बौने हरवा या तिथि इस प्रकार 'हरवासर' का अर्थ ग्यारहवां दिन या एकादशी है। होइ। -सुदर० ग्र०, भा॰ २, पृ० १५ । (च) नपाहि मैं हरवो होइ जात, पिनं अघ विद ज्यो जोग जती को।-सुदर० ग्र०, हरवीज-वसा पुं० [सं०] पारा । पारद । मा० २, पृ०४७५॥ हरवोंगर--वि० [हिं० हर ( = हल) + वोग (= वगड, लठ)] १ गेवार । लट्ठमार । अवखड । २ मूर्ख । जड । हरवाड-वि० [हि० हग्वा] शीघ्रतापूर्वर । se~~ह पाइ जाप हरवो गर--सहा पुं० १ अधेर। पुशासन । गडवडी । २ उपद्रव । सिय पार्ड परी। ऋषिनारि |घि सिर गोद घरी।-गम च०, उत्पात । ३ अव्यवस्था। बदअमली। गडवडी। उ०-किसी ने मोहनभोग का थाल उठाया किमी ने फलो का, कोई पचामृत हरवाना-मि० अ० [हि. हडबड] गन्दी करना। शीघ्रता करना। बांटने लगा। हरवों ग सा मच गया ।-काया०, पृ० १३८ । उतावली करना । हडबडी मवाना। क्रि० प्र०-मचना ।-मचाना। हरवाल-समा पुं० देश॰] एक प्रकार यो घाम जिमे 'मुरारी' भी हरभूली-संशा सी० [देश॰] एक प्रकार का धतूरा जिसके बीज फारन कहते हैं। से ववई में आते और विकते हैं। हरवाहा-सा पुं० [• हर, हत+ वाह] दे० 'हन्वारा। हरम-सज्ञा पुं० [अ० । तुल० सं० हयं] १ प्रत पुर । जनानखाना। हरवाहन-सशा ० [सं०] शिव पा वाहन । शिव को सवारी। २ कावा। मसजिद (फो०)। ३ मक्के के पास पान का क्षेत्र जहाँ जीवहत्या महापाप है (को०)। ४ गुवद । गुरज (को॰) । यो०-हरमखाना, हरमगाह = दे० 'हरमसरा' । हरमसरा हरवाहा-सपा पुं० [हिं० हर, हल + ० वाह] हल चलानेवाना मज- अत पुर । जनानखाना। दूर मनोकर। हलवाहा । उ०-मन के बैल सुरत हरवाहा।- हरम-सशा लो० १ जनानखाने में दाखिल की हुई स्त्री। मुताही। कवीर० श०, भा॰ २, पृ० २४ । रखेली स्त्री । २ दासी । ३ स्त्री। बेगम । ४ प्राचीन कोठी। हरवाही-- 1---सज्ञा खो॰ [हि० हरयाह+ई (प्रत्य॰)] १ हलवाहे का पुरानी इमारत (को०)। ५ वृद्धावस्था । जरा । बुढापा (को॰) । काम । २ हलवाहे की मजदूरी। हरमल-सज्ञा पुं० दिश०] डेट दो हाथ ऊंची एक प्रकार की झाडी। विशेष---यह झाडी सिंघ, पजाव, काश्मीर और दक्षिण भारत मे हरशकरी-सझा बी० [सं० हरशदर] पोपल और पार (पक्कड) के वहुतायत से पाई जाती है। इसकी पत्तियां ओपधि के रूप में 'एक साथ लगे हुए पेड जो बहुत पवित्र माने जाते हैं । काम पाती हैं और उसके बीजो से एक प्रकार का लाल रंग हरशृगारा-मबी० [सं० हरशृङ्गारा] सगीत शास्त्र में एक रागिनी निकलता है। का नाम (को०] । हरमजदगी--सा सी० [फा० हरामजादगी] शरारत । नटखटी। हरशेखरा-सशा सी० [सं०] गगा जो शिव के निर पर रहती हैं। बदमाशी। हरपल --सपा पुं० [सं० हपं] दे० 'हर्प'। वृषभ । चल।