पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१४१

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हरेषना ५४५३ हरी हरपना@--क्रि० अ० [सं० हर्ष, हिं• हरप+ ना (प्रत्य॰)] १ -तुलसी०, पृ० ४। २ जोरो से हंसने की ध्वनि । उ०- हर्षित होना। प्रसन्न होना। खुश होना। उ०-हरपे पुर (क) प्रभु जी की प्रभुताई, इद्र हू की जडताई, मुनि हंस नरनारि सब मिटा मोहमय सूल । -तुलसी (शब्द०)। २ हेरि हेरि हरि हँसै हरहर ।-नद० ग्र०, पृ० ३६२ । (ख) पुलकित होना। रोमाच से प्रफुल्ल होना। उ०-नाइ चरन नद कुँवर तव हरहर हंस । हँसत जु रदन वदन मे लसे । - सिर मुनि चले पुनि पुनि हरषत गात। —तुलसी (शब्द॰) । नद० ग्र०, पृ० ३०१। (ग) काम कुटिलता ही कहि गावै हरषना-क्रि० स० [हिं० हरपाना] हर्पित करना। उ०---अपनी हरहर हाँसा ।-रै० वानी, पृ० १२ । जीवन जग मैं वरष। दुख करणे, सब जतुन हरष ।--नद० हरहराटg+-सचा पुं० [अनु॰] थरथराहट । कपन । ग्र०, पृ० ३०५। हरहराना--क्रि० अ० [अनुध्व.] नदियो का हरहर शब्द करते हुए हरषाना@--क्रि० अ० [सं० हप, हिं० हरष+पाना (प्रत्य॰)] द्रुत गति से वहना । उ०--नदियाँ वाढ की बाढ पर आ खसी होपत होना । प्रसन्न होना । खुश हाना । उ०-जे पर भनित खास्णक (घासपात) वहातो हरहराता चद्दरे फेकती।- सुनत हरपाही ।--तुलसी (शब्द०) । २ पुलकित हाना । प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १२ । रामाच से प्रफुल्ल हाना । हरहा ---वि० [हि० हरकना] नटखट । दे० 'हरहट' । हरषाना-क्रि० स० हॉर्पत करना । प्रसन्न करना । हरषित-वि० [H• हर्पित] दे० 'हर्षित' । हरहा:--सञ्ज्ञा पुं० हर मे न नधनेवाले बैल । उ०--धीरे धीरे चल दी, सारी दुनियां छल दी, पोछे भाई के हरहो के डगले ।- हरसख--भञ्ज्ञा पुं० [४०] कुवर का एक नाम (को०] । आराधना, पृ० ०। हरसना--क्रि० अ० [८० हर्षण] प्रसन्न होगा। दे० 'हरपना' । उ०--सहन सोरभ स समोरण पर सहस्रो किरण हरसो । हरहा'-सच्चा पुं० [देश॰] भेडिया । वृक । हरहाई@:--वि० स्रो० [हि हरहा] नटखट (गाय) जो वार वार --प्रचना, पृ० १६. खेत चरने दौड़े या इधर उधर भागती फिर । हरहट । उ०-- हरसाना--कि० स० [हिं० हरसता] दे० 'हरषाना'। उ०--ही जिमि कपिलहि घाले हरहाई ।--तुलसो (शब्द॰) । मै धारे श्याम रग हा को हरसाव जग ।-प्रमधन०, भा० १, हरहाई २--पञ्चा पुं० खूटे से अपने को छुडाकर या राह चलते लोगो पृ० १६८। हरसिंगार--सञ्ज्ञा पुं० [१० हार+ शृगार] मझोले कद का एक पेड के खेत खलिहान चर डालनेवाली आदत या स्वभाव । नटखटी। और उसका पुष्प इसे परजाता भा कहते है। नटखट होने का भाव । उ०--ज्यौं पशु हरहाई करहि पेत विराने खाहि । -सुदर० ग्र०, भा० १, पृ० १६६ । विशेष--इसको पत्तिया चार पाच प्रगल लबा, तोन-चार अगुल चौडी और किनारों पर कुछ कटावदार होता है। पतलो नाक हरहार--उज्ज्ञा ० [१०] १ शिव का हार, सरें। उ०--हठि हित कुछ दूर तक निक नो होती है । यह पेड फूना के लिये वगोवा करि प्रोतम हियो कियो जू सोति सिंगार । अपने कर मोतिन मे लगाया जाता हे प्रारबिम पवत के कई स्थानो पर जगलो गुह्यो भयो हरा हरहार ।--विहारी (शब्द०)। २ शेपनाग । होता है। यह शरद् ऋतु म कुमार स अगहन तक फूलता है। हरहारा - पञ्चा ५० [हिं० हर + हार (वाला)] हलधर । कृपक । फूल मे छोटे छोटे पाच दल और नारगो रग का लगा पानो किसान । उ०-राजे, अायो ऐ जेठ असाढ, हरहारे ने हरु रे डॉडी होती है । फूल पेड मे बहुत काल तक लगे नही रहते, सम्हारिए ।-पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ६१६ । वरावर झडा करते है । डॉडिया को लोग पोला रंग निकालने हरहोरवा-सञ्ज्ञा पु० [श०] एक प्रकार को चिडिया । के लिये सुखाकर रखते है। इसको पत्तो ज्वर को बहुत अच्छो ओपधि समझी जाती है। हरॉस-सञ्चा पुं० [अ० हर (= गरम होना) + सं० अश] १ मद ज्वर । हरारत । २ शैथिल्य । थकान । थकावट । हरसूनु--पञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ स्कद का एक नाम । कातिकेय । २ गणपति। गणेश [को०)। हरा'-वि• [सं० हरित, प्रा० हरिय] [वि० सी० हरी] १ घास या हरसौधा-मश पुं० [हिं० हरिस] कोल्हू मे वह स्थान या पाटा पत्ती के रग का । हरित। सब्ज । जैसे,—हरा कपडा, हरी पत्ती। जिसपर बैठकर बैल हाँके जाते है । यौ०-हरामन । हराभरा = (१) हरोतिमा या हरियाली से भरा हरहस@--शा पुं० [सं० हर + हस] सूर्य । उ०-हुदै जेम हरहस हुआ। (२) सद्य प्रसूत । ताजा । टटका । (३) खिता हुअा। सूं वासर कमल विकास ।--वाँकी० म०, भा० ३, पृ० ५२ । प्रसन्न । प्रफुल्ल । विकसित । जैसे--हरा भरा चेहरा । हरेहट:-वि० [हि. हरकना] नटखट (बैल) जो बार बार खेत २ प्रफुल्ल । प्रसन्न । ताजा । जैसे,—(क) नहाने से जो हरा हो गया। चरने दौडे या इधर उधर भागता फिरे (चौपाया) । हरहाई । (ख) माँ बेटे को देख हरी हो गई। (ग) हरा भरा चेहरा । जैसे, हरहट गया। क्रि० प्र०-करना ।-होना। हरहर'-सज्ञा स्त्री॰ [अनुध्व.] १ पानी एव हवा के तीव्र वेग से बहने ३. जो मुरझाया न हो। सजीव । ताजा । जैसे,-पानी देने से पौधे की ध्वनि । उ०-नीचे प्लावन को प्रलय धार ध्वान हरहर। हरे हो गए । ४. (घाव) जो सूखा या भरा न हो। जैसे-