पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१४४

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और मग। हरिकीर्तन ५४५६ हरिणाखी हरिकीर्तन [-सज्ञा पुं० [स०] भगवान् या उनके अवतारो की स्तुति का हरिजान -मज्ञा पुं० [सं० हरियान] दे० 'हरियान' । ३०-सुनु गान । भगवान् का भजन । हरिजान ग्यान निधि कहा कछुक कलिधम ।-मानस, ७६७ । हरिकेलीय -सज्ञा पु० [सं०] वग देश का एक नाम । हरिण'-मद्या पुं० [ग्नी हरिणी] १ मृग । हिरन । २ हिरन को हरिकेश'---वि० [सं०] भूर वालोवाला। एक जाति । हरिकेश-मशा पु० १ सूर्य की सात प्रधान कलाओ मे से एक । २ विशेप-शेष चार जातियो के नाम ये है-ऋप्य, ररु, पृषत् शिव का एक नाम । ३ सविता का एक नाम । सूय का नाम (को०)। ४ एक यक्ष का नाम जो शिव को प्रसन्न करके गणो ३ हम । ८ सूय । ५ एक लोक का नाम । ६ विष्णु का एप का एक नायक हुआ था। दडपाणि । ५ श्यामक नामक यादव नाम । ७ शिव का एक नाम । ८ एक नाग का नाम । ६ का पुन जो वसुदव का भतीजा लगता था । नकुल । नेवला (फो०) । १० शिव के एक गण का नाम । ११ हरिकाता--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० हरिझाता] एक प्रकार की लता । विप्रा माता। श्वेत वर्ण जो पीलापन लिए हा (को०)। हरिक्षेत्र--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पटना के पास एक तीर्थ का नाम । हरिण-वि० १ भूरे या वादामी रग का। २ पीलापन लिए श्वेत हरिखडल-सज्ञा पुं० [सं० हरि + खण्ड) मयूरपिच्छ । मोरपख । वर्ण का (को०) । ३ किरणो मे युक्न । किरणवाला (को०)। हरिगध-सज्ञा ० [सं० हरिगन्ध] पीला चदन । हरिणक-पपा पुं० [#०] १ मृग । हिरन । २ छोटा हरिना [को०] । हरिगण-स -सज्ञा पु० [म०] अश्वयूय । घोडो का समूह [को०] । हरिणकलक-मझा १० [५० हरिणका ना] चद्रमा । मृगलाछन । हरिगिरि-सज्ञा पुं० [सं०] एक पर्वत का नाम [को०] हरिणचर्म--- ० [सं० हरिणवमन्] हिरन का चमडा। मृगछाल [को०)। हरिगीता-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ वह मत या सिद्धात जिसे नारायण ने नारद मुनि को बताया था। २ एक वृत्त का नाम । ३० हरिणधामा-श पुं० [#० हरिणामन्] चद्रमा । चद्र [को॰] । 'हरिगीतिका'। हरिणनयन,-वि० पुं० [सं०] हरिण के मदृश नेत्रवाना। हरिगीतिका-सच्चा स्री० [सं०] सोलह और वारह के विराम के हरिणनयना, हरिणनयनो-'व० स० [सं०] हिरन को प्रोखो के अट्ठाइस मानानो का एक छद जिसकी पांचवी, बारहवी, समान सुदर प्रोवावानो । मुदरी। हरिणावा । उन्नीसवी और छब्बीसवी मात्रा लघु होनी चाहिए। अत मे हरिणनतक-सगा पुं० [म.] किनर जाति को०] । लघु गुरु होता है। जैसे-निज दास ज्यो रघुबस भूपन कबहुँ हरिणनेत्र-वि० पुं० [१०] दे० 'हरिणतयन' । मम सुमिरन करयो ।-मानस ७।२ । हरिणनेना - वि० खो [10] हरिण के समान सुदर आँखों वाली। हरिगृह-सज्ञा पु० [सं०] १ विष्णु का मदिर । २ एक नगर का नाम हरिणनयना (फो०] । जिसे एकचक्र भी कहते है (को०] । हरिणप्लुता-सशा ना[स०] एक वधिसम वृत का नाम जिसके हरिगोपक-सज्ञा पु० [सं०] इद्रगोप । वीरवहूटी [को॰] । विषम चरणाम ३ सगण, एक लघु और एक गुरु होता है तथा हरिचद--मशा पुं॰ [स० हरिश्चन्द्र] दे॰ 'हरिश्चन्द्र' । सम मे एक नगण, दो मगरण और एक रगण हाता है। हरिचदन--सज्ञा पुं० [सं० हरिचन्दन] १ एक प्रकार का चदन । हरिणलक्षण- पुं० [१०] चद्रमा । २ स्वर्ग के पाँच वृक्षो मे से एक । हारणलाउन-श पु० [३० हारण नाञ्छन] मृगनाउन । चद्रमा । विशेष-स्वग के पाच वृक्षा के नाम इस प्रकार कहे गए हैं- हरिणलावन-वि• पुं० [४०] [वि० ० हरिण नोवना) ३० पारिजात, मदार, हरिचदन, सतान और कल्पवृक्ष । हरिणनयन'। ३ कमल का पराग। ४ केसर । ५ चद्रिका । चांदनी। हरिणलाचना-वि० मी० [४०] हिरन के तुल्य सुदर नेनवालो। हरिचर्म-सज्ञा पुं० [सं०] व्याघ्रचम । वाघवर । हरिणामी। हरिणनयनो फा०] । हरिचाप-सज्ञा पुं० [स०] इद्रधनुप । हरिणलोलाक्षो-वि० ली० [सं०] हिरन जैसो चचल प्रखवाली (को०] । हरिज-सज्ञा पुं० [०] क्षितिज [को॰] । हरिणहृदय-वि० [सं०] हिरन सा । डरपोक । बुजदिल । हरिजच्छ@-- सज्ञा पुं० [८० हर्यक्ष] सिह । उ०—कठीरव हरि केहरी हरिणाक-सज्ञा ० [८० हरिणाङ्क १ मुगाफ । चद्रमा । चद्र । पुडरीक हरिजच्छ ।--अनेकार्थ०, प.०, ६८ । २ कपूर । कर्पूर (को०] । हरिजटा-सञ्ज्ञा श्री० [स०] गल्मीकि रामायण के अनुसार एक राक्षसी हरिणाक्ष - सज्ञा पुं० [स०] शिव का एक नाम [को॰] । जिसे रावण ने सीता को समझाने के लिये नियत किया था। हरिणाक्षी-वि० ओ० [सं०] हिरन को आखो के समान सुदर आंखो- हरिजन-सज्ञा पुं० [सं०] १ भगवान् का दास । ईश्वर का भक्त । वाली। सुदरी। उ०- धर्मशास्त्र तीरथ हरिजन कर, निंदा करत पुनहु दुख हरिणाखी पु-वि० सी० [म० हरिणाक्षी, प्रा०, अप० हरिणाखी] तिनकर ।-कबीर सा), प.० ४६५ । २ अछूत कही जानेवाली दे० 'हरिणाक्षी'। उ०-धन हरिणाखी ईम कही।-बी० जाति का व्यक्ति । निरनवर का व्यक्ति रासो, पृ० ५६ ।