पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रग का। गाय। हरिणाधिप ५४५७ हरितुरग हरिणाधिप-सज्ञा पुं॰ [स०] मृगेंद्र । सिंह [को॰] । हरितकपिश-वि० [सं०] पीलापन या हरापन लिए भूरा। लीद के हरिणारि -सञ्ज्ञा पुं० [स०] हरिण का शन्नु, सिंह (को०] । हरिणाश्व-सज्ञा पुं॰ [स०] वायु । पवन [को॰] । हरितकी-सचा स्त्री॰ [सं०] दे० 'हरीतको' (को०] । हरिणी - सज्ञा स्त्री० [स०] १ मादा हिरन । हिरन की मादा। २ हरितगोमय-सज्ञा पु० [सं०] गोभिल गृह्यसूत्र के अनुसार ताजा गोवर । मजिप्ठा । मजीठ । मजीठ । ३ जर्द चमेली। ४ कामशास्त्र के हरितनेमी- --सधा पुं० [सं० हरितनेमिन्] वह जिसके रथ के चक्के सोने के हो, शिव (को०)। अनुसार स्त्रियो की चार जातियो या भेदो मे से एक जिसे चित्रिणी भी कहते है। हरितपण्य-सचा पुं० [स०] शाक सब्जी का व्यापार । शाक विक्रयण । विशेप--दो अच्छी जाति की स्त्रियो मे यह मध्यम है। यह हरितमणि--सज्ञा पुं० [स०] मरकत । पन्ना। पद्मिनी की अपेक्षा कम सुकुमार तथा चचल और क्रीडाशील हरितमनि-मज्ञा पुं० [सं० हरितमणि] एक रत्न । पन्ना । प्रकृति की होती है। उ०-हरितमनिन्ह के पत्न फल पदुम राग के फूल । रचना देखि विचित्र अति मन विरचि कर भूल । -तुलसी (शब्द॰) । ५ सुदरी या तरुणी स्त्री (को०)। ६ एक वर्णवृत्त का नाम जिसमे सत्रह वर्ण होते है। इसका स्वरुप इस प्रकार है- हरितहरि-सज्ञा पुं० [ स० ] सूर्य (को०] । न स म र स ल गु (m is sss sis us Is) । ७ दस वर्षों हरिता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ दूर्वा । दूव । नीलदूर्वा । २ हरिद्रा। हल्दी । ३ हरे या भूरे रंग का अगूर । भूरे रंग की का एक वृत्त । जैसे,-फूलन की सुभ गेद नई । संघि सची जनु डारि दई।- केशव (शब्द०)। ८ सोने की प्रतिमा । स्वर्ण- ५ स्वरभक्ति का एक भेद । ६ हरि या विष्णु प्रतिमा (को०)। ६ हरित वर्ण । हरा रग (को०)। १० हरदी। का भाव । विष्णुपन । हरित्व । उ०-हरिहि हरिता विधिहि हरिद्रा (को०)। विधिता सिवहि सिवता जो दई। सो जानकीपति मधुर यौ ०-हरिणीदृक् = हरिनी के समान चचल नेत्रवाला। हरिणी- मूरति मोदमय मगलमई । - तुलसी ग्र०, पृ० ५२३ । दृशी, हरिणीनयना = हरिणी के समान चचल नेत्र वाली स्त्री। हरिताभ- वि० [सं०] हरित वर्ण का । हरे रंग का । हरा। उ०- आज उल्लसित धरा, पल्लवित विटपो मे बहु वर्ण विकास । हरिणेश-सज्ञा पुं० [सं०] मृगराज । मृगेंद्र । सिंह [को०] । पीपल, नीम, अशोरु, आम्र से फूट रहा हरिताभ हुलास ।- हरित्' -वि० [सं०] १ भूरे या वादामी रग का । कपिश । २ हरे रग युगवाणी, पृ० ८० । का । हरा । सब्ज । ३ कुछ हरा रग लिए पीला (को०)। हरित्' '-सञ्ज्ञा पुं० १ सूर्य के घोडे का नाम । २ मरकत । पन्ना । ३ हरिताल-संज्ञा पुं० [सं०] १ हरताल नाम की धातु । विशेष दे० 'हरताल' । २ एक प्रकार का कबूतर जिसका रग सिह । ४ सूर्य । ५ विष्णु । ६ एक प्रकार का तृण । घास । तृण । ७ द्रुतगामी अश्व (को०)। ८ मंग (को०)।६ हरा, कुछ पीलापन या हरापन लिए होता है । पीला या पिंगल वर्ण (को०)। १० जैनो के अनुसार हरिक्षेत्र हरितालक-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] १ दे० 'हरताल' । २ नाटक के की नदी का नाम। अभिनय मे शरीर मे रग आदि मे पोतने का कर्म । हरित् -सज्ञा स्त्री० १ हरिद्रा । हलदी। हरदी। २ दिक्। दिशा हरितालिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ भादो की शुक्ल पक्ष की तृतीया। (को०) । ३ तृण । घास (को॰) । विशेप-स्त्रियो को इस व्रत को करने का विधान है । इस दिन हरित'-वि० [सं०] १ भूरे या वादामी रग का। २ पीला। जदं । स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं और नये वस्त्र पहनकर शिव- ३ हरे रंग का । हरा। सब्ज । ४ ताजा। नवीन । नया। हरित' सज्ञा पुं० १ सिंह । २ कश्यप के एक पुत्र का नाम । ३ यदु पार्वती का पूजन करती है। के एक पुत्र का नाम। ४ युवनाश्व के एक पुत्र का नाम। ५ २ दूर्वा नामक घास । दूव । दूर्वा (को॰) । द्वादश मन्वतर का एक देवगण । ६ सेना । ७ सब्जी । हरि- हरिताली-सच्चा स्रो० [सं०] १ मालकगनी । २ तलवार का वह भाग याली । ८ सब्जी । शाक भाजी। ६ हरित वर्ण (को०) । १० जो धारदार होता है । ३ भादो के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि । कपिश या भूरा रग (को०) । ११ सोना । स्वर्ण (को०) । १२ पाडु विशेष ३० 'हरितालिका' । ४ आकाश मे मेघ आदि की रोग (को०) । १३ एक सुगधित पौधा । स्थौणेयक (को०) । १४ पतली धज्जी या रेखा । ५ वायु । पवन । रोहिताश्व के पुत्र का नाम (को०)। १५ हरित या भूरे रंग का हरिताश्म-सहा पुं० [सं० हरिताश्मन्] १ पन्ना। मरकत। २ नीला पदार्थ (को०)। एक तृण । मथानक (को०)। थोथा या कसीस (को०] । हरितक-सज्ञा पुं० [सं०] १ हरा तृण । २ शाक । सब्जी [को०] । हरिताश्मक-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] ३० 'हरिताश्म' [को॰] । यौ०- हरितच्छद = हरे पत्तोवाला। हरितपन युक्त । हरित- हरिताश्व-सज्ञा पुं० [सं०] सूर्य (फो०] । पत्रिका = मरकतपत्री। हरितप्रभ = पाडु वर्ण का। पीला। हरितुर गम-सबा पुं० [सं० हरितुरङ्गम] १ इद्र का एक नाम । २ इद्र हरितभेपज = कमल रोग की औषध । हरितलता = दे० 'हरित का अश्व [को०] । पत्रिका' । हरितशाक = दे० 'शिनु। हरितुरग-सज्ञा पुं० [सं०] इद्र का अश्व [को॰] । तीज।