पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१४८

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हरिप्रिया ५४६० हरियारी ७ सनाह । वकतर। ८ खस का मूल (को०) । ६ एक प्रकार हरिमा-सशा पुं० [मं० हरिमन् ] १ पीतता । पीलापन। २ पीत वर्ण । का चदन (को०)। १० एक प्रकार का बड़ा कद जो कोकण पीत राग । ३ काल । ममय । ४ पाडु रोग । पीलिया [को॰] । की अोर होता है। दे० 'विष्णुकद' । हरिमेध-सज्ञा पुं० [सं०] १ अश्वमेध यज्ञ । २ विष्णु या नारायण का एक नाम। हरिप्रिया-सज्ञा स्त्री० [स०] १ लक्ष्मी। २ एक मात्रिक छद जिसके प्रत्येक चरण मे १२ + १२+१२+ १० के विराम से ४६ हरिय-सशा पुं० [सं०] पिंगल वर्ण का अश्व । पीताभ घोडा [को०] । मात्राएं होती हे और अत मे गुरु होता है। इसे 'चचरी' भी हरियर'-सज्ञा पुं० [अ० हरीरह] दे० 'हरीरा' । कहते है। उ०-पौढिये कृपानिधान देव देव रामचद्र चद्रिका हरियर'-वि० [सं० हरिततर या हिं० हरा] दे० 'हरा' । उ०--(क) समेत चद्र चित्त रैनि मोहै ।-(शब्द०)। ३ तुलसी। ४ नाम भजो तो अब भजो, बहुरि भजोगे कब्ध । हरियर हरियर पृथ्वी । ५ मधु। ६ मद्य । ७ द्वादशी । ८ लाल चदन । स्खडे, ईंधन हो गए सब ।-कवीर मा०, पृ० १८ । हरिप्रीता -सज्ञा स्त्री० [सं०] ज्योतिप मे एक मुहूर्त का नाम । हरियराना-क्रिट अ० [हिं० हरियर] २० 'हग्निराना' । उ.-नवमी तिथि मधुमास पुनीता । सुकुल पच्छ, अभिजित, हरियल@-वि० [हिं० हरिअर] दे० 'हग्निर' । उ०-गल गली सव हरिप्रीता ।—तुलसी (शब्द॰) । हरियल भूमि । नील सिखर चढि सूरति घूमि |-घट०, हरिवालुक- सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक सुगधित द्रव्य । एलवालुक [को॰] । पृ० २६७। हरिबीज-सज्ञा पुं० [स०] हरताल । हरिया--सज्ञा पुं० [हिं० हर (= हल) + इया (प्रत्य॰)] हल जोतनेवाला । हलवाहा। हरिबोध-सज्ञा पु० [स०] विष्ण का वोधन या जागरण [को०] । यौ०-हरिबोधदिन = देवोत्थान का दिन । हरिबोधिनी एकादशी। हरिया--सज्ञा पुं० [सं० हरितका] हराभरापन । प्रफुल्लता। उ०- प्रागे प्रागे दौं जल रे पीछे हरिया होय । कहत कबीर सुनो भाइ हरिबोधिनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] कार्तिक शुक्ल एकादशी। देवोत्थान साधो हरि भज निर्मल होय ।--सतवारणी०, पृ० २६ । एकादशी। हरिभक्त-सज्ञा पु० [म०] विष्णु या भगवान् का भक्त । ईश्वर का हरियाईg+---समा श्री० [सं० हरित + पाली, प्रा०हरिय + पाली, हि० हरियाली] हरीतिमा। हरियाली। उ०—नमति लहलही प्रेमी । ईश्वर का भजन करनेवाला। जहां सघन सुदर हरियाई। -श्रीधर पाठक (शब्द॰) । हरिभक्ति--सज्ञा स्त्री० [सं०] विष्णु या ईश्वर की भक्ति। ईश्वरप्रेम । हरियाथोथा-सशा पुं० [हिं० हरा + थोथा] नीला थोथा । तूतिया हरिभगत-सञ्ज्ञा पुं० [स० हरिभक्त] भगवान् का भक्त । भगवद्- हरियाणा-सच्चा पं० [देश॰] स्वतन्त्र भारत का एक प्रात । उ०-- भक्त । उ०-कहहु कवन विधि भा सवादा। दोउ हरिभगत देसा मा देस हरियाणा। जित दूध दही का खाणा।- काग उरगादा।-मानस, ७.५५ । लोकोक्नि। हरिभगति -संज्ञा स्त्री॰ [म० हरिभक्ति] भगवान् की भक्ति । विशेष-स्वतन्त्र भारत का एक प्रदेश जो पहले सयुक्त पजाव का भगवदभक्ति । उ०-सोहरिभगति काग किमि पाई। विश्वनाथ एक छोटा सा डिविजन था। सन् १९६६ की पहली नववर मोहि कहहु बुझाई ।-मानस, ७।५४ । को इस राज्य या प्रदेश को स्वतन्त्र भारत के १७वे राज्य के रूप हरिभद्र-सज्ञा पुं० [स०] हरिवालुक । एलवालुक (को०] । मे मान्यता मिली। हरिभाविणी, हरिभाविनी- सज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो हरि की हरियान-सशा पुं० [सं०] विष्णु के वाहन, गरुड । भक्ति करती हो । हरि की भावना करनेवाली महिला । भगवद्- हरियानवी'-वि० [हिं० हरियाना] हरियाना प्रदेश की। जैसे,-- भक्त स्त्री (को०] । हरियानवी बोली। हरिभुज-सञ्ज्ञा पं० [स०] वह जो मेढक खाता है । साँप । सर्प। हरियानवी'- सशा स्त्री० दे० 'हरियानी' । हरिमथ- सज्ञा पुं० [म० हरिमन्थ] १ गनियारी का पेड जिसकी हरियाना'-क्रि० अ० [हिं० हरा] दे० 'हरियाना' । लकडी रगडने से भाग निकलती है । अग्निमथ। २ मटर । हरियाना'--सशा पुं० [देश॰] स्वतन्त्र भारत का एक प्रात । विशेष ३ चना । ४ एक प्रदेश का नाम । दे० 'हरियाणा'। हरिमथक-सज्ञा पुं० [म० हरिमन्थक] चणक । चना को०] । हरियानी-सज्ञा स्त्री० [हि० हरियाना (एक प्रात)] हिसार, रोहतक हरिमथज-सज्ञा पुं॰ [स० हरिमन्यज] १ चना। चणक । २ एक करनाल आदि क्षेत्रो की बोली जिसे जाटू या बांगड़ भी कहते हैं । प्रकार की मूंग । काली मूंग [को०] । हरियायलg+-सझा पुं० [श० हारिल] एक पक्षी । दे० 'हारिल' । हरिमदिर-सज्ञा पुं० [स० हरिमन्दिर] १ समुद्र जो विष्णु का उ०- नहि चैन पर पल देखे बिना हरियायल ज्यो पकरी निवास है । उ०-कजज की मति सी बडभागी। श्री हरि- लकरी।-नट०, पृ० ३० । मदिर सौ अनुरागी।-रामच०, पृ० ६६ । २ विष्णु का हरियारीg-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० हरितालि, प्रा० हरियाली] ३० मदिर या देवस्थान। 'हरियाली' । उ०-नयो नेह, नयो मेह, नई भूमि हरियारो, हरिमणि-सज्ञा पुं० [सं०] सर्प मणि । नवल दूलह प्यारो, नवल दुल्हैया ।-नद० न०, पृ० ३७३ । ।