पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१५०

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हरिश्मश्रु ५४६२ को वेचकर ऋपि की दक्षिणा चुकाई । वे काशी मे हरिसकीर्तन-सञ्ज्ञा पुं० [स० हरिसङ्कीर्तन] विष्णु के नामो का सस्वर डोम के सेवक होकर श्मशान पर मुर्दा लानेवालो से कर वसूल बार बार कीर्तन । भगवान् के नामो का बार बार सस्वर कथन । करने लगे । एक दिन उनकी रानी ही अपने मृत पुन को हरिस [-सज्ञा स्री० [सं० हलीपा] हल का वह लबा लट्ठा जिसके एक श्मशान में लेकर पाई । उसके पास कर देने के लिये कुछ भी छोर पर फालवाली लकडी पाडी जुडी रहती है और दूसरे द्रव्य नहीं था। राजा ने उमसे भी कर नहीं छोडा और प्राधा छोर पर जूवा अटकाया जाता है। ईपा। कफन फडवाया । इसपर भगवान् ने प्रकट होकर उनके पुत्र हरिसख-सज्ञा पुं० [सं०] एक गधर्म का नाम । को जिला दिया और अत मे अयोध्या की प्रजा सहित सवको हरिसा@-सज्ञा पुं॰ [म० हलीपा] दे॰ 'हरिस' । उ०---कांध जुग्राठे वैकुठ भेज दिया। महाभारत मे राजसूय यज्ञ करके राजा रसरी लाए हरिसा वना सुडवरा।- सत० दरिया, पृ० १४३ । हरिश्चद्र का स्वर्ग प्राप्त करना लिखा है । ऐतरेय ब्राह्मण मे हरिसिंगार--सज्ञा पु० [स० हार - शृङ्गार] एक पुप्पवृक्ष । परजाता। 'शुन शेप' की गाथा के प्रसग म भी हरिश्चद्र का नाम पाया विशेप दे० 'हरसिंगार'। है, पर वहाँ कथा दूसरे ढग की है। उसमे हरिश्चद्र इक्ष्वाकु हरिसिद्धि---मज्ञा स्त्री० [सं०] एक देवी का नाम । वश के राजा वेधस् के पुत्र कहे गए है। गाथा इस प्रकार है- हरिसुत -सज्ञा पु० [१०] १ श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न । २ इद्र के अश नारद के उपदेश से राजा ने पुत्र की कामना करके वरुण से से उत्पन्न अर्जुन । ३ जैन मतानुसार भारत के दशम चक्रवर्ती । यह प्रतिज्ञा की कि जो पुत्र होगा, उसे वरुण को भेंट करूंगा। हरिसूनु-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'हरिसृत' [को०] । वरुण के वर से जव राजा को पुत्र हुआ, तब उसका नाम हरिसौरभ-सज्ञा पु० [सं०] मृगमद । कस्तूरी [को० । उन्होने रोहित रखा । जब वरुण पुन माँगने लगे, तब राजा हरिहय--सच्चा पुं० [स०] १ इद्र । शक्र । २ सूर्य । ३ गणेश । ४ इद्र वरावर टालते गए। जब रोहित वडा होकर शस्त्र धारण के का अश्व [को॰] । योग्य हुग्रा, तव वह मरना स्वीकार न कर जगल मे निकल हरिहर--सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ विष्णु और शिव का सयुक्त रूप । हरे- गया और इद्र के उपदेशानुमार इधर उधर फिरता रहा। श्वर । २ एक नदी का नाम [को०] । अत मे वह अजीगत नामक एक ऋषि के आश्रम पर पहुंचा और उनसे सौ गायो के बदले मे शुन शेप नामक उनके भले हरिहर क्षेत्र-सञ्ज्ञा पुं० [स०] बिहार मे सोन नदी के किनारे पर स्थित एक तीर्थस्थान। पुन को लेकर अपने पिता के पास आया जिन्हें वरुण के कोप विशेष—यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को गगास्नान और वडा भारी मेला से जलोदर रोग हो गया था। शुन शेप को यज्ञ मे बलि देने के लिये जब सब तैयारियां हो चुकी, तब शुन शेप अपने होता है । यह मेला पद्रह दिन तक रहता है और बहुत दूर दूर से यहां दूकानें आती है। हाथी, घोडे आदि जानवर भी विकने छुटकारे के लिये सब देवतागो की स्तुति करने लगा । अत के लिये आते है। मे इद्र के उपदेश से उसने अश्विनीकुमार का स्मरण किया जिससे उसके वधन कट गए और रोहित के पिता हरिश्चद्र हरिहरात्मक'---सच्चा पुं० [४०] १ गरुड का एक नाम । २ शिव का का जलोदर रोग भी दूर हो गया । जव शुन शेप मुक्त होकर वाहन, वृषभ [को०)। अपने पिता के माय न गया, तब विश्वामित्र ने उसे अपना बडा हरिहरात्मक'-वि० जिसमे हरि (विष्णु) और हर (शिव) दोनो पुन बनाया। हरिहाई@-वि० स्त्री० [हिं०] दे० 'हरहाई' । हरिश्मश्रु--सज्ञा पुं० [सं०] हिरण्याक्ष दैत्य के नौ पुत्रो मे से एक जो हरिहाई-सच्चा स्त्री॰ हरहाईपन । परेशान करने की आदत । ब्रह्मकल्प मे परावसु गधर्व के नौ पुत्रो मे से एक था । हरिहित-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] वीरवहूटी। इद्रवधू । उ०--स्याम सरीर हरिप-सज्ञा पुं० [सं० हप] प्रसन्नता । पानद । दे० 'हर्प' । रुचिर स्रमसीकर सोनितकन विच बीच मनोहर । जनु खद्योत उ०--सपति विपति नही मैं मेरा हरिष सोक दोइ नाही।- निकर हरिहित गन भ्राजत मरकत सैल सिखर पर। तुलसी दादू०, पृ० ५६४ 1 ग्र०, पृ० ४००। हरिषेण-सधा पुं० [सं०] विष्णु पुराण के अनसार दसवें मनु के हरी-वि० सी० [हिं० 'हरा' का लो०] हरित । सब्ज । पुत्रो मे से एक। २ जैन पुराणों के अनुसार भारत के दस हरी-सचा सी० [स०] १ एक वृत्त का नाम जिसमे १४ वर्ण होते चक्रवर्तियो मे मे एक । ३ एक प्राचीन भट्ट या कवि का नाम हैं तथा जिमके प्रत्येक चरण मे जगण, रगण, जगण, रगण, जिसने गुप्तवशीय मम्राट् समुद्रगुप्त की वह प्रशस्ति लिखी थी जो प्रयाग के किले मे भीतर के खभे पर है। और अत मे लघु गुरु होते है । इसे 'अनद' भी कहते है । २ कश्यप की क्रोधवशा नाम की पत्नी के गर्भ से उत्पन्न दस हरितकरी--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० हरिशङ्करी] १ विष्णु और शिव की कन्यानो मे से एक जिससे सिंह, बदर आदि पैदा हुए थे। सम्मिलित स्तुति । उ०-रुचिर हरिसकरी नाम मन्त्रावली द्वद्व हरी सञ्चा श्री० [हिं० हर (= हल) ] जमीदार के खेत की दुख हरनि आनदखानी । -तुलसी ग्र०, पृ०४८१ । २ देवी की जुताई मे असामियो का हल बैल देकर या काम करके सहायता एक मूर्ति । सयुक्त हो। करना।