पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१५१

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हरी' -सज्ञा पुं० [सं० हरि ] दे० 'हरि'। हरीशर--सचा पुं० [स०] १ वंदरो के राजा । २ हनुमान । ३ हरो कसीस-सज्ञा स्त्री० [हिं० हीरा + कसोम] दे॰ 'हीरा कसीस' । सुग्रीव । हरीकेन --समा पुं० [अ०] १ एक प्रकार की लालटेन जिसकी बत्ती हरीश २-सज्ञा स्त्री० [अ०] एक प्रकार का पतला कीडा। कनेसलाई (को०] । मे हवा का झोका आदि नही लगता । २ ववडर। अधवायु । हरीषg 2--सञ्ज्ञा श्रा० [सं० हर्ष०] दे० 'हर्ष' । महावात [को०] । हरीषनाg+-क्रि० अ० [स० हपं] हर्षित होना । आनदित होना । हरो चाह--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० हरी + चाह ] १ एक प्रकार की घास उ०--सुकन सूरणी हरीष्यो मन माहि । ---बी० रासो०,पृ. ६० । जिसको जड मे नीबू की सी सुगन्ध होती है । गध तृण । २ हरीषा-सं० सी० [सं०] एक प्रकार का सामिष व्यजन (को०] । एक प्रकार की चाय जिसकी पत्तियाँ हरी होती है। हरीस'-सज्ञा श्री० [स० हलीपा] हल का वह लबा लट्ठा जिसके एक हरीचुगा -सज्ञा पुं० [हिं० हरी ( = हरियालो) + चुगना ] वह जो छोर पर फालवाली लकडी प्राडे बल जडी रहती है और दूसरे केवल अच्छे समय मे साथ दे । सपन्न अवस्था मे साथ छोर पर जूना लगाया जाता है । हरिस । देनेवाला। हरीस-वि० [अ०) लालची । लिप्सु। लोभी। हरीछाल केला-सज्ञा पुं० [हिं०] बबइया केला जिसकी छाल हरी हरुमा-वि[स० लघुक, पा० लइअ, विपर्यय 'हलुअ] [वि॰ स्त्री० होती है और पकने पर भी उसका रग नही बदलता । विशेष हरुई] जो भारी न हो। जिसमे गुरुत्व न हो। हलका। (क) दे० 'केला'। निज जडता लोगह पर डारी । होहि हरुम रघुपतिहिं निहारी। हरीत--सज्ञा पुं० [स० हारीत] दे० 'हारीत' । -मानस, ११२५८ । (ख) सोन नदी अस पिउ मोर गरुआ। हरीतकी-सचा स्रो० [स०] हड । हरें। पाहन होइ परै जो हरुमा।--जायसी (शब्द॰) । हरीतक्यादि क्वाथ-सज्ञा पुं० [सं०] हड के प्रधान योग से बना हरुपाई-सक्षा स्त्री॰ [हि० हरुआ + ई (प्रत्य॰)] १ हलकापन । हुआ एक प्रकार का काढ़ा । उ० देह बिसाल परम हरुपाई । मदिर ते मदिर चढ धाई।- विशेष-हड का छिलका, अमलतास का गूदा, गोखरू, पखानभेद, मानस, ५।२६ । २ फुरती। शीघ्रता। घमासा और अडूसा इन सब का चूर्ण लेकर पानी मे काढा हरुयाना--क्रि० अ० [हि• हरुआ+ ना (प्रत्य०) ] १ हलका होना । उतारा जाता है। यह मूत्रकृच्छ्र और वधकुष्ठ रोग मे दिया लघु होना । २. फ़रती करना । जल्दी करना। उ०-कर धनु जाता है। लै किन चदहि मारि। तू हरुप्राय जाय मदिर चढि समि हरीतिमा-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० हरा, हरी] हरियाली । हरापन । सम्मुख दर्पन विस्तारि । याही भांति बुलाय, मुकुर महि अति हरोफ-सज्ञा पुं० [अ० हरीफ] १ दुश्मन। शत्रु । २ प्रतिद्वद्वी । प्रति बल खड खड करि डारि ।--सूर (शब्द॰) । स्पर्धी । विरोधी । उ०--दास पलटू अहै हरीफ पक्का।--पलटू०, हरुई।-वि० सी० [हिं० हया का स्त्री॰] दे॰ 'हरुप्रा' । पृ० ८ । ३ एक ही नायिका के दो प्रेमी । रकीव (को०)। हरुए-क्रि० वि० [हि० हस्या] १ धीरे धीरे । आहिस्ता से। हरीम--मज्ञा पुं० [अ०] १ घर की चहारदिवारी या प्राचीर । २ २ इस प्रकार जिममे आहट न मिले । हलकेपन से। चुपचाप । घर । मकान (को०। उ०-(क) ना जानौ कित ते हरुए हरि प्राय मूदि दिए नैन ।- हरीर-सच्चा पुं० [अ०] एक प्रकार का अत्यत वारीक रेशमी कपडा [को०] । सूर (शब्द०)। (ख) आपहि तें तजि मान तिया हरुए हरुए गरवै लगि जैहै। -पदमाकर (शब्द०)। हरीरा'--सज्ञा पुं० [अ० हरीरह] एक प्रकार का पेय पदार्थ जो दूध मे सूजी, चीनी और इलायची आदि मसाले और मेवे डालकर हरुण-सज्ञा पुं० [सं०] बौद्ध मतानुसार एक बहुत बडी सख्या। प्रौटाने से बनता है। यह अधिकतर प्रसूता स्त्रियो को दिया हरुवा --वि० [सं० लघुक] दे० 'हरुमा'। उ०----कीन्हेसि जो अति जाता है । गिरवर गरुवा । चहइ तो कर तृणहु से हरुवा ।-चित्रा०, पृ०२। हरीरा--वि० [हिं० हरिअर] [स्रो० हरीरी] १ हरा । सब्ज । हरूg+-वि० [स० लघु] दे॰ 'हरुम' । उ०-कचन देके कांच बिसाहै, २ हर्षित । प्रसन्न । प्रफुल्ल । हरू गरू नहि तौल।-कबीर शा०, भा० ४, पृ० २४ । हरीरी'--सज्ञा स्त्री० [अ० हरीरह,] दे० 'हरीरा यौ०--हरू गरू = हलका और वजनी। हरीरी-वि० स्त्री० [हिं० हरियर] १ दे० 'हरीरा' । २. हर्पित । प्रसन्न । हरूफ-सज्ञा पुं० [अ० हरूफ] हरफ का बहुवचन । अक्षर । वर्ण । हरफ । उ.-छन होत हरीरी मही को लखे, छन जोवति है छनजोति हरें @t--क्रि० वि० [हि० हरुए] आहिस्ता। धीरे । छटा । अवलोकति इद्र वधू की पत्यारी, बिलोकति है छिन कारी यौ०-हरे हरे धीरे धीरे । शनं शनै । घटा।--कोई कवि (शब्द॰) । हरे'-सचा पुं॰ [सं०] 'हरि' शब्द का सबोधन का रूप । उ०- (क) हरील-सचा पुं० [हि०] एक पक्षी। दे० 'हारिल' । जय राम सदा सुखधाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।-