पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१५३

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५४६५ हर्पण' 1 गई है। हम-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हर्मन् ] ] भा। जंभाई [को०] । बिना किसी प्रयास या व्यय के कोई कार्य बन जाना। उ०-- हमिका-मशा स्त्री० [सं०] किसी स्तूप पर बना हुआ ग्रीष्मभवन [को०] । अत 'हर्रा लगे न फिटकरी और रग चोखा होय' वाली कहावत -प्रेमघन०, भा०२, १० २१७ । हर्मित-वि० [सं०] १ फेका हुा । क्षिप्त । २ छोडा हुआ। डाला हुा । ३ भेजा हुा । प्रेपित । ४ जलाया हुआ [को०] । --मज्ञा स्त्री॰ [हि० ] दे० 'हड' । हर्मुट ट-सचा पुं० [म०] १ कछुआ । कच्छप । २ मूर्य (को०] । हरैया-सपा स्त्री॰ [ हि हरै ] १ हाथ मे पहनने का एक गहना हर्म्य सचा पं० [स्त्री॰] १ राजभवन । महल। प्रासाद । २ वडा भारी जिसमे हड के से सोने या चांदी के दाने पाट मे गुथे रहते हैं। मकान । हवेली। ३ नरक । ४ यत्रणागृह (को०)। ५ अग्निकुड। २. माला या कठे के दोनो छोरो पर का चिपटा दाना जिसके ६ तदूर । अंगीठी (को०)। आगे सुराही होती है। हर्म्यगर्भ F-सज्ञा पुं० [स०] राजप्रासाद का अत पुर। उ०—'तालाव होते हर्प-सज्ञा पुं० [ स०] १ प्रफुल्लता या भय आदि के कारण रोगटो थे और खुली छत की इमारते भी होती थी शिविकागर्म, का खडा होना । २. प्रफुल्लता । अानद । चित्तप्रसादन नलिकागर्भ और हर्म्यगर्भ-हिं० पु० स० पृ० २८८ । खुशी। हर्म्यचर-वि० [स०] प्रासाद या हम्यं मे रहनेवाला । वडी कोठी या क्रि० प्र०-करना।-मनाना।--होना। हवेली मे रहनेवाला [को०] । ३ ३३ सचारी भावो मे से एक का नाम । हर्म्यतल-सज्ञा पुं० [सं०] प्रासाद की ऊपरी मजिल या छत [को०] । विशेप--माहित्य मे 'हर्ष' की गिनती सचारी भावो मे की हर्म्यपृष्ठ-सशा पुं० [स०] मकान की पाटन या छत । ३० 'हर्म्यतल' । हर्म्यवलभी -सञ्ज्ञा स्त्री० दे० 'हयंतल' [को॰] । ३ धम के पुत्रो मे से एक । ४ भागवत के अनुसार कृष्ण के हHभाज्- वि० [सं०] प्रासाद मे रहनेवाला [को०] । एक पुत्र का नाम । ५ काम के वेग से इद्रिय का उत्तेजित होना। हर्म्यस्थ-वि० [सं०] जो हम्य मे वर्तमान हो । कामोत्तेजना । कामोद्दीपन (को०)। ५ तीव्र प्राकाक्षा । उत्कट हर्म्यस्थल-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'हम्यंतल' । इच्छा (को०)। ६ एक दैत्य का नाम । ७ कान्यकुब्ज के एक नरेश का नाम । दे० 'हर्षवर्धन'। हयंककुल-वि० [सं० हर्यशकुल ] जिसका प्रतीक सिंह हो उस कुल अर्थात् सूर्य वश मे उत्पन्न होनेवाला (को०] ' यौ०-हर्षविपाद = खुशी और रज । हर्यक्ष'-वि० [स०] भूरी प्रांखोवाला [को॰] । हर्षक'-- --सज्ञा पुं० [स०] १ चित्रगुप्त के एक पुत्र का नाम । हर्यक्ष-

--सज्ञा पुं०१ सिंह । शेर । २ सिंह राशि। ३ बदर। ४ कुबेर। मगध के शिशुनाक वश का एक प्राचीन राजा।

५ रोग उत्पन्न करनेवाला दैत्य । ६ एक असुर । ७ पृथु के हर्षक'--वि० [ वि० स्त्री० हर्पका, हर्पिका ] हपं प्रदान करनेवाला । एक पुन । ८ शिव का एक नाम [को०] । हर्यत-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ अश्व । घोडा । २ अश्वमेध यज्ञ के उपयुक्त हर्पकर-वि० [सं०] खुश करनेवाला । प्रानद देनेवाला । हर्पकारक । अश्व । ३ यज्ञ (को०] हर्पकारक-वि० [ स० ] दे० 'हर्पकर' । हर्यश्व-म -मद्या पुं० [सं०] १ इद्र का घोडा। २ शिव। ३ इद्र [को०] । हर्षकीलक-सज्ञा पुं० [स०] कामशास्त्र मे वर्णित एक प्रकार के प्रासन यौ०-हर्यश्वचाप, हर्यश्वधनु = इद्रचाप । इद्रधनुप । हर्या-वि० [हिं० हरा] दे० 'हरा' । उ०--जमी के तले यक ठरा हर्षगद्गद्--वि० [सं०] जिसकी वाणी प्रानद के कारण कपित हो (को०' । कर मकान, हर्या उस तले एक पत्थर अहे जान। -दक्खिनी०, हर्पगर्भ-वि० [सं० ] प्रमन्न । खुश । अान दित [को॰] । पृ० ३३६ । हर्यात्मा-सज्ञा पुं० [सं० हर्यात्मन्] व्यास का एक नाम (को०) । हर्षचरित--सशा पुं० [सं० ] वाण कवि का रचित एक प्रसिद्ध गद्य- काव्य जिसमे उनके आश्रयदाता कान्यकुब्जाधिपति सम्राट हरचारी-सज्ञा स्त्री० [हिं० हरा, हरियर] दे॰ 'हरियाली' । उ०- हर्षवर्धन का वृत्तात है। चोप हरयारी हिलमिल बाढी। पावस निज सपति है काढी । हर्पचल-वि० [सं० ] हर्षातिरेक से चचल या कपित । -धनानद, पृ० ३६० । हर्र-संशा स्त्री० [हिं०] हर । दे० 'हरें'। हर्पज'-वि० [ सं०] जो हप के कारण उत्पन्न हो । हर्रा-संघा पु० [सं० हरीतको] वडी जाति की हड जिसका उपयोग हर्पज -सज्ञा पुं० शुक्र । वीर्य [को०) । त्रिफला मे होता है और जो रंगाई के काम मे पाती है। विशेष हर्पण'-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्रफुल्लता या भय मे रोगटो का खडा होना । जैसे,—लोमहर्पण । २. प्रफुल्लित करना या होना । : वामदेव मुहा o-हर्रा कदम मे= रास्ते मे मैला या गोवर है। (पालकी के के पांच बाणो में से एक । ४ अांख का एका रोग। २. कहार ) । हर्रा लगे न फिटकरी और रग चोखा होय एक प्रकार का श्राद्ध । ६ पलित ज्योतिष मे विकभ प्रादि २ प्रानददायक। का नाम ।