पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१५८

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हलांक हलमरिया ५४७० हलमरिया-मज्ञा स्त्री॰ [पुर्त० आलमारी] जलयान या जहाज के नीचे हलवाई --सज्ञा पुं० [अ० हलवा + ई (प्रत्य॰)] [बी० हलवाइन] का खाना। (लश०)। मिठाई बनाने और बेचनेवाला। मिठाई बनाकर या बेचकर जीविका चलानेवाला। हलमलना--कि० अ० [हिं० हिलना + मलना] कांपना । डगमगाना। 3०-मुरग रसातल भूतल जिती। सब हलमल्यो कलमल्यो मुहा०--हलवाई की दुकान पर दादा का फातेहा पढना = अपने तिती।-नद० ग्र०, पृ० २३८ । पास कुछ नही है, इस आशय की कसम खाना । उ०- चौधरी--मांग न लेता तो क्या करता, हलवाई की दुकान पर हलमा-सशा स्त्री० [अ० हलमह.] कुचाग्र । चूचुक । भिटनी (को०] । दादा का फातेहा पढना मुझे पसद नही ।--मान०, भा० ५, हलमार्ग -सज्ञा पुं॰ [स०] हल की रेखा। हल जोतने से बनी रेखा । प०१६५। लागलपद्धति । कूड (को॰] । हलवाह-सज्ञा पु० [स०] वह जो दूसरे के यहाँ हल जोतने का काम हलमिल लैला--सञ्ज्ञा पुं० [सिंहली] एक प्रकार का वडा पेड जो सिंहल करता हो । हल चलाने का काम करनेवाला मजदूर या नौकर । या सीलोन मे होता है। विशेष-हल चलाने के लिये गाँवो मे चमार आदि जाति के विशेप-इम वृक्ष की लकडी बहुत मजबूत होती है और खेती के लोग ही रखे जाते है। सामान प्रादि बनाने के काम में आती है। मैसूर मे भी यह पेड हलवाहा--सज्ञा स्त्री० [सं०] जमीन की एक नाप जिसका व्यवहार पाया जाता है। प्राचीन काल मे होता था। हलमुख-सञ्चा पुं० [सं०] हल का फाल । हलवाहा ---सज्ञा पुं० दे० 'हलवाह' । हलमुखी -सञ्ज्ञा स्त्री० [१०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे हलहति- 1-सज्ञा स्त्री० [सं०] हल चलाना । जुताई (को०] । क्रम से रगण, नगण और सगण आते हैं। उ०-एनि सीख न घर हरी, वार सौ वरजत अरी। होहिंगे हम सब सुखी, जो हलहर--सधा पुं० [ स० हलधर ] खेत जोतने का हल । उ०- तज वह हलमुखी ।-छद ०, पृ० १४७ । जैसे हलहर बिना जिमी नहिं वोइए। सूत विना कैसे मणी पिरोइए।--कबीर ग्र० पृ० २६२ । हलरद-वि० [०] हल की तरह बेडौल लवे दांतोवाला। बडे बडे दातोवाला (को०)। हलहल'---सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ हल चलाना । कर्पण करना । २ धूम । हलरा-महा पुं० [सं० हिल्लोल] दे० 'हिलोर', 'हिलोरा' । हलचल। खलबली। हलराक्ष ---सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का पौधा । बाहुल्य [को०] । हलहल' ----सभा पुं० [अनु० या देशी हल्लोहल्ल] १ किसी वस्तु मे भरे जल के हिलने डोलने का शब्द । २ हलचल । त्वरा । शीघ्रता । हल राना-क्रि० स० [हिं० हिलोरा] (वच्चो को) हाथ पर लेकर इधर उ०-ऊमर दीठा जावता, हलहल करइ करूर। एराकी उधर हिलाना डुलाना। प्यार से हाथ पर झुलाना। उ०- ओखभिया जइसइ केती दूर ।--ढोला०, दू. ६४१ । (क) जसोदा हरि पालन झुलावै । हलरावै दुलराइ मल्हावै जोइ सोई कछु गावं । सूर०, १०४३। (ख) लै उछग कबहुँक हलहला ----सज्ञा सी० [सं०] आनदसूचक ध्वनि । किलकार। हलराव । कवहु पालने घालि झुलावै।-मानस, ११२०० । हलहलाना -क्रि० स० [हि. हलना या अनु० हलहल ] १ हलवश-सज्ञा पुं॰ [स०] हल का लबा लट्ठा । हरिस (को०] । ऐसी वस्तु को हिलाना जिसके भीतर पानी भरा हो । २ हलवत-सज्ञा स्त्री० [हिं० हल + वत या प्रोत (प्रत्य॰)] वर्ष मे पहले खूब जोर से हिलाना डुलाना । झकझोरना। ३ जोरो से पहल खेत मे हल ले जाने की रीति या कृत्य । हरीती। भीतर घुसेडना या प्रवेश कराना। हलवा-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १ एक प्रकार का मोठा भोजन या मिठाई हलहलाना--क्रि० अ० कांपना । थरथराना । कपित होना । जैसे,- मारे बुखार के हलहला रहा है । २ भयादि के कारण जो मैदे या सूजी को घी मे भूनकर उसे शरवत या चाशनी मे पकाने से बनती है । मोहनभोग। २ गीली और मुलायम अपने स्थान से एकदम हिल उठना या च्युत होना । उ०- धमकत धरनि अहि सिर निहाय । हलहलिय द्विग्ग उद्दिग्ग चीज । ३ आसान कार्य । सरल काम । थाय।-पृ० रा०, ११६२५ । हला'--सज्ञा स्त्री० [सं०] १ वयस्या। सहेली। सखी। २ पृथ्वी। मुहा०हलवे मांडे से काम = केवल स्वार्थ साधन से ही प्रयोजन । ३ जल । ४ सोमरस [को०] । अपने लाभ ही से मतलब । जैसे,—तुम्हें तो अपने हलवे मांडे हला--अव्य० सखी के लिये नाटक मे प्रयुक्त सबोधन (को०] । से काम, किसी का चाहे कुछ हो। हलवा निकल जाना- हलाक'-वि० [अ० कचूमर निकल जाना। अत्यत दुर्गति होना । हलवा निकालना% १ मरा हुआ । मृत । २ मारा हुआ । वध किया हुआ । उ०--प्राण प्रयाण किया पछ, नर बहुत पीटना। खूब मारना । जैसे,--मारते मारते हलवा निकाल नाम हलाक !--बाँकी० ग्र०, भा० १, पृ० ५२ । ३ आकाक्षा- देंगे। हलवा समझना= सरल और यासान समझना। युक्त । इच्छुक (को०)। हलवाइन-सञ्ज्ञा सी० [हिं० हलवाई] १. हलवाई की स्त्री। २ वह हलाक-सज्ञा पु० १ मार डालना। वध करना । २ मृत्यु । मौत । स्त्री जो मिठाई बनाने का काम करती हो। ३ वरवाद होना । नष्ट भ्रष्ट होना । वरवादी । विनाश [को०] । यौ०-सोहन हलवा।