पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हल्क ५४७३ हवस हल्क-सञ्ज्ञा पुं० [अ० हल्क ] दे॰ 'हलक' । हल्लीशक-सज्ञा पु० [स०] १ दे० 'हल्लीशक' । २ एक प्रकार का हल्का-वि० [सं० लघुक, प्रा० लहुक, विपर्यय हलुक] दे॰ 'हलका'। वाद्य [को०] । हल्का --सचा पुं० [फा० हल्कह] । इलाका । हलका । क्षेत्र । उ०-- हल्लोषक, हल्लीसक--सज्ञा पुं॰ [सं०] मडलाकार नृत्य। घेरा बनाकर अब चलो शराब पिला दो और जल्द इस हल्के से कुछ कमा नाचना । उ०-उनका प्रधान नृत्य हल्लीषक कहलाता था। लो।-चोटी०, पृ० १९ । ( अन्य अर्थों के लिये दे० प्रा० भा०प०, पृ०८६ । 'हलका )। हल्लू हल्लू--क्रि० वि० [हिं० हौले हौले] धीरे धीरे । उ०--मिट्ठा हल्द-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० हलदी] दे॰ 'हलद' । मिट्ठा मोट का पानी। मै मोट चलावउँ हल्लू हल्लू ।-- दक्खिनी०, पृ० ३८७ । हल्दहात--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० हल्दी+ हाथ] विवाह के तीन या पांच दिन पहले वर और कन्या के शरीर मे हल्दी लगाने की रीति । हवग-सज्ञा पुं० [सं० हवङ्ग] फूल नामक मिश्रित धातु के पात्र मे दधि और प्रोदन खाना (को०] । हल्दी चढाना। हल्दी-सज्ञा स्त्री० [सं० हलदी या हरिद्रा ] दे० 'हलदी' । हव--सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ किसी देवता के निमित्त अग्नि मे दी हुई आहुति । बलि । २ अग्नि । अाग । ३ स्तुतिपूर्वक आवाहन हल्य-वि० [सं०] १ जोती जानेवाली (जमीन)। २ भद्दा । करना (को०) । ४ अाह्वान । पुकार (को०) । ५ आदेश । प्राज्ञा कुरूप । ३ हल सवधी (को॰] । (को०)। ६ चुनौती (को०)। हल्य-सज्ञा पुं० १. जोती हुई जमीन । २ खेत, जो जोतने योग्य हो । ३ भद्दापन । कुरूपता [को०] । हवदा-सञ्ज्ञा पुं० [अ० हौदज, हौदा] दे॰ 'होदा'। कसिय हवदा ध्वजधार बली।--ह० रासो, पृ० १२६ । हल्या-सज्ञा स्त्री० [सं० ] अनेक हल । हल समूह (को॰] । हवन--सक्षा पुं० [स०] १ किसी देवता के निमित्त मन पढकर घी, हल्लक-सञ्ज्ञा पुं० [०] लाल कमल । जौ, तिल आदि अग्नि मे डालने का कृत्य । होम । हल्लन--सज्ञा पु० [सं०] १ करवट बदलना। २ इधर से उधर क्रि० प्र०--करना ।--होना । २ अग्नि । आग। ३ अग्निकुड! हिलना डोलना। ४ अग्नि में आहुति देने का यज्ञपान । हवन करने का चमचा । हल्लना-क्रि० अ० [हि हिलना ] दे० 'हिलना' । उ०-कभू श्रुवा । ५ हवन करना (को०)। ६ स्तवन या प्रार्थनापूर्वक आवाहन हल्लवै भुम्मि गज्जत वीर । कभू घोर अधार वर्ष त पीर । (को०) । ७ लडने के लिये चुनौती या ललकार (को०)। ह० रासो, पृ० ८४ । हवनायु-सज्ञा पु० [हवनायुस्] आग । अग्नि [को०] । हल्लर फल्लर-सज्ञा पुं० [अनु० ] टालमटोल । हीलाहवाली । हवनी-सबा स्त्री॰ [स०] अग्निकुड । हविनी [को॰] । उ.--माहव सूम मिलाव मत, अंडा घराँ हिसाव । के हल्लर हवनीय–वि० [स०] जो हवन के योग्य हो । जिसे आहुति के रूप मे फल्लर कर, पाव कल्लर राव।---बाँकी० ग्र०, भा० ३, पृ० ८१। अग्नि मे डालना हो। हल्ला-सञ्ज्ञा पुं० [अनु०] १ एक या अधिक मनुप्यो का ऊँचे स्वर से हवनीय'-सञ्ज्ञा पुं० वह पदार्थ जो हवन करने के समय अग्नि मे डाला बोलना । चिल्लाहट । शोरगुल । कोलाहल । जाता है । जैसे,-घी, जौ, तिल आदि । क्रि० प्र०-करना ।--मचना।-मचाना।--होना। हवन्नक-वि० [अ० हवन्नक] १ अहमक । गावदी । बुद्धू । बीडम । २ यौ०-हल्ला गुल्ला = शोर गुल । वदशकल । भद्दी आकृति का [को०] । २ लडाई के समय की ललकार। धावे के समय किया हुआ शोर । हवलदार---सज्ञा पुं० [अ० हवाल ( = सुपुर्दगी) + फा० दार( = रखने- हाँक । ३ सेना का वेग से किया हुआ आक्रमण । धावा । वाला)] १ वादशाही जमाने का वह अफसर जो राजकर की हमला । जैसे,--राजपूतो ने एक ही हल्ले मे किला ले लिया। ठीक ठीक वसूली और फसल की निगरानी के लिये तैनात मुहा०--हल्ला बोलना = सेना का हमला करना । ललकारते रहता था। २ फौज मे वह सबसे छोटा अफसर जिसके हुए शत्नु टूट पडना। मातहत थोडे से सिपाही रहते है। उ०--रग महल मे जग खडे हल्लीश, हल्लोष--सज्ञा पुं० [सं०] १ नाट्यशास्त्र मे वर्णित अठारह है, हवलदार और सूवेदार ।--कवीर श०, भा०३, पृ० ५० । उपरूपको मे से एक। हवलेल–क्रि० वि० [हिं०] दे० 'होले' । उ०-योछा कुल मे ऊपना, विशेष-इसमे एक ही अक होता है और नृत्य की प्रधानता दोभा डावडियाह । हवले वोल होट मे, मूरख मावडियाह ।- रहती है । इसमे एक पुरुप पान और सात, पाठ या दस बाँकी० ग्र०, भा०२, पृ० १७ । स्त्रियाँ पानी होती हैं। हवस--सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १ लालसा । कामना । चाह । जैसे,--हमे अब २ मडल वाँधकर होनेवाला एक प्रकार का नाच जिसमे एक किसी बात की हवस नही हे । उ०--हवस कर पिय मिलन की, पुरुप के आदेश पर कई स्त्रियाँ नाचती हैं। प्रो सुख चाहै अग । पीड सहे विनु पद्मिनी पूत न लेत हल्लीस--सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे० 'हल्लीश' [को॰] । उछग ।--३ वीर सा० स०, पृ० ४२ । २ लोभ । लालच (को०)।