पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१६४

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हवालदार ५४७६ हविष्मान्' खाल । जो नर बकरी खात हैं तिनका कोन हवाल । -कवीर हवि शेप-समा पुं० [सं०] हवि का बचा हुआ भाग को । (शब्द०)। ३ सवाद । समाचार | वृत्तात । हवि श्रवा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हवि श्रवस्] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का यौ०--हाल हवाल = हालचाल । नाम [को०] । हवालदार--सज्ञा पुं० [ हि० ] दे० 'हवलदार'। हवि-सा पुं० [सं० हविम्] १ देवता के निमित्त अग्नि मे दिया जाने- वाला घी, जो या इमी प्रकार की मामग्री । वह द्रव्य जिमको हवाला--सज्ञा पुं० [अ० हवालह, ] १ किसी बात की पुष्टि के लिये किसी के वचन या किसी घटना की ओर सकेत । प्रमाण का आहुति दी जाय । हवन की वस्तु । २ प्राज्य । घी (को०)। उल्लेख । २ उदाहरण । दृष्टात । मिसाल । नजीर । ३ जल । पानी (को०)। ४ शिव (को०)। ५ यज्ञ (को०) । ६ भोजन (को०)। क्रि० प्र०-देना। हविमी-सज्ञा स्त्री० [सं०] हवनकुड । ३ अधिकार या कव्जा । सुपुर्दगी। जिम्मेदारी । हविरद-वि० [सं०] हवि का भक्षण करनेवाला [को॰] । मुहा०---(किसी के ) हवाले करना = किसी को दे देना । किसी को सुपुर्द करना । सौंपना। जैसे,--जिसकी चीज है, उसके हविरशन-सशा पुं० [सं०] १ घी अथवा द्रव्य नामग्री। २ पावक । हवाले करो। किसी के हवाले पडना = वश मे पा जाना। अग्नि । कृशानु । ३ चित्रक नाम का एक वृक्ष [को०] । चगुल मे पा जाना । उ०--अव है हैं कहा अरविद सो आनन हविराहुति-सहा सी० [सं०] हवि की प्राहुति (को०] । इदु के प्राय हवाले परयो । --पद्माकर (शब्द॰) । (किसी हविगंधा-सज्ञा स्त्री० [सं० हविर्गन्धा] शमीवृक्ष [को॰] । के) हवाले रहना = अधिकार मे रहना । उ०--सो मुलुक को हविर्गह-सझा पुं० [सं०] दे० 'हविगेंह' [को॰] । पैसा सब गोपालदास के हवाले रहे ।--दो सौ बावन०, भा० हविर्गह -समा पुं० [सं०] वह स्थान जहां यज्ञ हो । यज्ञस्थल (फो०] । १, पृ० २४२। हविर्दान--सझा पुं० [सं०] हवि प्रदान करना। हवालात-सज्ञा पुं०, स्त्री० [अ०] १ पहरे के भीतर रखे जाने की क्रिया या भाव । नजरबदी । २ पभियुक्त की वह साधारण हविर्धानी -सहा स्त्री० [सं०] कामधेनु । सुरभी। कैद जो मुकदमे के फैसले के पहले उसे भागने से रोकने के लिये हविर्धूम-सशा पुं० [सं०] अग्नि मे हवि देने से उत्पन्न धूम । दी जाती है। हाजत । ३ वह मकान जिसमे ऐसे अभियुक्त हविनिर्वपण पान-सज्ञा पुं० [सं०] वह पान जिससे हवि प्रदान करते रखे जाते हैं। हैं । श्रवा (को०]। क्रि० प्र०-मे देना। हविर्भा-वि० [सं०] हविप्य ग्रहण करनेवाला [को०] । मुहा०-हवालात करना = पहरे के भीतर बद करना। हविर्भुज-सज्ञा पुं० [सं०] १ अग्नि । २ विष्ण, शिव प्रादि देवता जो हवालाती--वि० [अ०] १ जो हवालात मे रखा जा चुका हो। हवि को प्राप्त करते हैं (को०) । ३ क्षत्रियों के पितृ वर्ग (फो०)। जो हवालात में रह चुका हो । २ जो हवालात मे हो। हविर्भू- -सज्ञा स्त्री० [सं०] १ हवन की भूमि । २ कर्दम की पुत्री जो हवाली-सज्ञा पुं० [अ०] पास पास की जगह। चारो ओर का पुलस्त्य की पत्नी थी। स्थान [को०)। हविर्मथ-सञ्ज्ञा पुं० [म० हविर्मन्थ] गनियारी का वृक्ष । गणिकारी हवाली मवाली-सचा पुं० [अ० हवाली+ अनु० या अ० मवाली] नाम का वृक्ष (को०] । साथी। हमराही । आसपास के यार दोस्त । उ०—मिर्जा और हविर्यज-सज्ञा पुं० [म०] घृत का हवन करना । घी की आहुति जो एक साजिद और अरतर और हवाली मवाली की एक न चली। प्रकार का यज्ञ है किो०] । --सर० पृ० ३६। हविर्याजी-सज्ञा पुं० [स० हविर्याजिन्] यज्ञ करानेवाला । हवन कराने- हवास--सज्ञा पुं० [अ०] १ इद्रियाँ । २ सवेदन । ३ चेतना । सज्ञा। वाला, पुरोहित (को०] । होश । सुध। हविर्वर्प- -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ एक वर्ष अर्थान् भूखड का नाम । २ यौ०-हवासगुम = हतसज्ञ । स्तभित । होश हवास । अग्नीध्र के एक पुत्र का नाम [को०] । मुहा०—हवास गुम होना - होश ठिकाने न रहना। भय प्रादि से हविर्तुति-सशा स्त्री० [सं०] हवि का हवन । प्राज्य की प्राहुति [को०] । स्तभित होना । ठक रह जाना। हवास पंतरा होना= दे० हविष्पान--सा पुं० [सं०] हवि रखने का वरतन । हवि का पान । 'हवास गुम होना । उ०—काने को देखते ही दारोगा साहब के हविष्मती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] कामधेनु । हवास पैतरा हुए। काटो तो लहू नही बदन मे ।—फिसाना, हविष्मान्!---वि० [सं० हविष्मत्] [वि० को हविष्मती] जो हवन करता भा० ३, पृ० ५४॥ हो । हवन करनेवाला। हवासवाख्ता-वि० [अ० हवास+ फा० वास्तह.] जो होश हवास मे न हविष्मान्'-सज्ञा पुं० १ अगिरा के एक पुत्र का नाम । २ छठे मन्व- हो । घबड़ाया हुआ [को॰] । तर के सप्तपियो मे से एक । ३ पितरो का एक गण ।