पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१६५

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हविष्यंद ५४७७ हसत हविष्यद---शा पुं० [म० हविष्यन्द] विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम । हव्यवाट-तशा पुं० [सं०] अग्नि देवता। हविष्य' - वि० [स०] १ हवन करने योग्य । २ जो हविष्य पाने के हव्यवाह, हव्यवाह-सशा पुं० [सं०] १ अग्नि । २ अश्वत्थ वृक्ष । योग्य हो (को०)। ३ जिसकी आहुति दी जानेवाली हो। पीपल जिसकी लकडी की अरणी बनती है । हविष्य----सज्ञा पुं० १ वह वस्तु जो किसी देवता के निमित्त अग्नि मे हव्याश, हव्याशन -सज्ञा पुं० [सं०] अग्नि । डाली जाय । बलि । हवि । उ०---देव दम्भ के महामेध मे हशफा-सज्ञा पुं० [अ० हशफह, हश्फह] लिंग का अग्रभाग किो०] । सब कुछ ही बन गया हविष्य । -कामायनी, पृ० ७ । २ घृत । हशम--सज्ञा पुं० [अ०] १ नौकर चाकर । सेवक । २ मालिक के घी (को०) । ३ नीवार । मन्यन्न । तिन्नी का चावल (को०) 1 लिये युद्ध मे लडनेवाले नौकर । भृति सैनिक [को०] । ४ घृत मिश्रित चावल, यव प्रादि साकल्य (को॰) । हशमत-सञ्ज्ञा सी[अ०] १ गौरव । श्रेष्ठता । बडाई । वैभव । ऐश्वर्य । हविष्यभक्ष, हविष्यभुज्'--वि॰ [१०] यज्ञ की सामग्री का भक्षण उ०-क्या माल खजाने मुल्क मकां क्या दौलत हशमत फौजे करनेवाला। लश्कर ।-राम० धर्म०, पृ. ६० । २ प्रताप । रोव । दवदवा हविष्यभक्ष, हविष्यभुज्' :-सज्ञा पुं० अग्नि । पावक (को०] । (को०) । ३ नौकर चाकर, टहलुए आदि (को॰) । ४ फौज। हविष्यशन्न-सज्ञा पुं० [स०] यज्ञ मे शेष बचे हुए पदार्थ । सेना। लावलश्कर। हविष्यान्न-सजा पुं० [सं०] वह अन्न या आहार जो यज्ञ के समय हशरात-सझा पुं० [अ० हशरह का बहु व०] वर्षा ऋतु मे पैदा होनेवाले कीडे मकोडे [को०)। किया जाय । खाने की पवित्र वस्तुएँ। जैसे,--जो, तिल, मूंग, चावल इत्यादि। हश्त--वि० [फा०] अष्ट । पाठ । उ०—कर नियत अव्वल मुज कू क्या हविष्याशी-वि०, सच्चा पुं० [म० हविष्याशिन्] दे॰ 'हविष्यभक्ष','हवि हश्त तूं आखिर । पाया मगर हूँ पाँच जनम छूट ई जनम ते ।- दक्खिनी०, पृ० ३२६ । प्यभुज्' (को॰] । यौo-हश्तगुश्त, हस्तमगुश्त = आठ अगुल का । हश्तगोशा: हविस:--सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हवस] दे० 'हवस' । अष्टकोणात्मक । हश्तपहलू-पाठ पहल का। हश्तविहितः हवीत--सञ्चा पुं० [देश॰ ?] लकडियो का बना हुआ एक यन जिसमे आठो स्वर्ग। लगर डालने के समय जहाज की रस्सियाँ वाँधी या लपेटी जाती है (लश०)। हश्तुम-वि० [फा०] अष्टम । पाठवां (को०] । हवेलो 1-पशा श्री० [अ०] १ पक्का वडा मकान । प्रासाद । हर्म्य । २ श्र-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १ कयामत । महाप्रलय । २ विपत्ति । मुसीबत । पत्नी । स्त्री । जोरू । उ०—कर दूंगा अभी हश्र वर्षा देखिए जल्लाद । धब्बा य मेरे हवोलाg+-सा त्री० [० हिल्लोल] लहर। उ०--महल तिस खू का छुडाना नही अच्छा।-भारतेदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ८५४ । दोला रारों के हवोला ।-रघु० रू०, पृ० २३८ । मुहा०-हश्र ढाना = कयामत लाना । श्राफत पैदा करना । हर बरपा करना = दे० 'हश्र ढाना' । हश्र बरपा होना = आफत हव्य--पचा पुं० [सं०] १ घृत । घो। २ आहुति । ३. हवन की सामग्री । वह वस्तु जिसकी किसी देवता के अर्थ अग्नि मे पैदा होना। उपद्रव मचना । आहुति दी जाय । जैसे,-घी, जौ, तिल ग्रादि । हसतिका [-पज्ञा स्त्री० [सं० हसन्तिका ] अंगोठो । गोरसो। बोरसी। विशेप-देवताग्रो के अर्थ जो सामग्री हवन की जाती है, वह हसती'-सज्ञा स्त्री० [स० हसन्तो] १ अँगीठी । गोरसो । बोरसी। उ०- हव्य कहलाती है और पितरो को जो अर्पित की जाती है वह कालागुर की सुरभि उडाकर मानो मगल तारे। हंसे हसती मे कव्य कहलाती है। खिलखिलकर अनलकुसुम अगारे।-साकेत, पृ० २८३ । २. वह आधार जिसपर दीपक रखा जाय । दीवट (को०)।३ मल्लिका यौ०--हव्य कव्य - देवतानो और पितरो को क्रमश दी जानेवाली का एक प्रकार या भेद (को०, । ४ एक प्रकार की आहुति । शाकिनी (को०)। हव्या--वि० हवनीय। हवन के योग्य [को०] । हसती'-वि० स्त्री॰ हास्ययुक्त । हँसती हुई [को०] । हव्यप-पज्ञा पुं० [सं०] तेरहवें मन्वतर के सप्तर्पियो मे एक ऋपि का हस--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ हँसी। हास । २ अानद । उल्लाम। खुशी । नाम (को०)। ३ अवमानना । अपहास । उपहास [को०] । हव्यपाक-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह पात्र जिसमे यज्ञान पकाया जाय । हसत्'-वि० [सं०] हंसता हुमा । उपहास करता हुआ। २ वह वस्तु जो हवन करने के लिये पकाई जाय। चरु [को०]। हसत्-मशा खो० वह अग्निपान (चूल्हा) या वोरमो जो इधर उधर हव्यभुज-सज्ञा ० [सं०] अग्नि । ले जाने के लायक हो [को०] । हव्ययोनि-- 1---ससा पुं० [सं०] देवता । हसत-क्षा पुं० [स० हस्ती] दे० 'हम्तो' । उ०-हसत चढ़े चारण हव्यलेही-सजा पु० [सं० हव्यलेहिन्] अग्नि का एक नाम (को०] । हुवे, माया सरसत मेल।-चौको० ग्र०, भा० १, पृ० ७५ ।