पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१८३

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हाय हाय' ' हानिकारक हानिकारक-वि० [सं०] ३० 'हानिकर' । हानिकारी-वि० [H० हानिकारिन् ] दे० 'हानिकर' । हानीय-वि० [ स०] जो छोडने अथवा परित्याग करने के योग्य हो। दे० 'हातव्य' [को०। हानु-सज्ञा पुं० [सं०] दत । दाँत [को०] । हान्यौल-वि० [सं०] हनन] मारा हुआ । उ०--नदमुवन तव ही पहि- चान्यौ । दुष्ट न दुरै दई को हान्यो ।-नद० ग्र०, पृ० २८५ । हापन-सज्ञा पुं० [सं०] १ परित्याग करने या हटा देने के लिये वाध्य करने की क्रिया । २. ह्रास । अभाव [को०] । हापुत्रिका, हापुत्री -सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक प्रकार का खजन (को०] । हाफ-वि० [अ० ] आधा । अर्ध । हाफिका-मज्ञा स्त्री० [सं०] जंभाई। जु भा [को॰] । हाफिज --सचा ५० [अ० हाफिज़ ] १ वह धार्मिक मुसलमान जिसे कुरान कठ हो। उ०--दादू यह तन पिंजरा मांही मन सूवा । एक नांव अलह का, पढि हाफिज हवा ।--दादू०, पृ० ४७ । २ वह जिसकी स्मरण शक्ति तीन हो (को॰) । हाफिज-वि० बचानेवाला । रक्षक । उ०—वह अपना संभाले हमारा भी खुदा हाफिज है ।-रगभूमि, भा० २, पृ० ७०४ । हाफिजा-सधा पुं० [अ० हाफिजह] याददाश्त । स्मरणशक्ति (को॰) । हाफूल-मचा पुं० [ यू० प्रोपियम, अ० अफयून, फा० अफ्यून, मरा० अफू, हिं० अफीम, आफू ] अफीम । उ०-रज्जव रजमा पाइए हाफू जली गुनाह । -रज्जव०, पृ० ३ । हाविस [--सज्ञा पुं॰ [देश॰] जहाज का लगर उखाडने अथवा उसे खीचने की क्रिया। हावी --सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हॉवी ] अभिरचि । शौक । उ०-लाला भगवानदीन जी की हाबी थी-पढाना पढना, पढना पढाना ।-- अपनी०, पृ० १०१। हावी-वि० [अ० हावी ] दे० 'हावी'। उ०--वरिक उनपर बदजेहा हावी है।-प्रेमघन०, भा० २, पृ० ८६ । हाबुस--संज्ञा पुं॰ [सं० हविष्य ] जी की कच्ची बाल जो प्राय भूनकर और नमक मिर्च मिलाकर खाई जाती है। हावूडा--सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की पिछडी जाति जिसका काम लूटमार और चोरी आदि करना है हामिद-वि० [अ०] १ तारीफ या प्रशसा करनेवाला । प्रशसक । २ ईश्वर का स्तवन करनेवाला (को०] । हामिल-वि० [अ०] [वि॰ स्त्री० हामिला] १ बोझ उठानेवाला । वाहक । २ रखनेवाला । धारण करनेवाला (को०] । हामिला--सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हामिलह] वह स्त्री जिसके पेट मे वच्चा हो। गभिणी स्त्री। हामी'-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० हाँ] 'हाँ' करने की क्रिया या भाव । स्वीकृति । स्वीकार । उ०—तनिक जवान से भरी हामी ।-पलटू०, पृ० २। मुहा०--हामी भरना= किसी बात के उत्तर मे 'हाँ' कहना। स्वीकार करना । मजूर करना । मानना। हामी'--वि०, सज्ञा पुं० [अ०] १ वह जो हिमायत करता हो । पक्षपाती । समर्थक । पृष्ठपोपक । उ०-शुक्ल जी देशभक्त लेखक थे, वह साहित्य मे देशभक्ति के हामी थे ।--प्राचार्य०, पृ० २२ । २ सहायक । मददगार । हाय--प्रत्य० [सं० हा] १ शोक और दुख सूचित करनेवाला एक शब्द । घोर दुख या शोक मे मुंह से निकलनेवाला एक शब्द । प्राह । २ कष्ट और पीडा सूचित करनेवाला शब्द । शारीरिक व्यथा के समय मुंह से निकलनेवाला शब्द । क्रि० प्र०—करना । यौ०--हाय तोबा = हाय हाय करना । चिल्ल पो मचाना । उ०- बडी हायतोग के बाद वह टाँगे पर बैठी।--पिंजडे०, पृ०५६। मुहा०-हाय करके या हाय मारकर रह जाना = निरुपाय होकर कष्ट सहन करना। हाय मारना = (१) शोक से हाय हाय करना । कराहना । (२) दहल जाना । स्तभित हो जाना। हाय--सज्ञा स्त्री० १ कष्ट । पीडा । दुख । जैसे,---गरीब की हाय का फल तुम्हारे लिये अच्छा नही। उ०—तुलसी हाय गरीब की हरि सो सही न जाय ।। (चलित) (शब्द०)। मुहा०-(किसी की) हाय पडना = पहुंचाए हुए दुख या कष्ट का बुरा फल मिलना । जैसे,—इतने गरीबो की हाय पड रही है, उसका कभी भला न होगा। २ जलन । ईर्ष्या । डाह । मुहा०--हाय करना, हाय होना = किसी की उन्नति, धन सपत्ति, समान आदि देखकर ईर्ष्या करना । हायक-वि० [स०] परित्याग करनेवाला । छोड देनेवाला [को०) । हायन-मञ्चा पुं० [स०] १ वर्प । सवत्सर । साल। २ एक प्रकार का चावल (को०) । ३ आग की ली। लपट (को०)। ४ छोड देना। परित्याग (को०)। ५ गुजर जाना । गुजरना (को॰) । हायनक-सा पुं० [स०] एक प्रकार का माटा चावल जो लाल होता है। हाय भाय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० हाव + भाव ] भावभगिमा । मुद्रा । हावभाव । उ०-प्रद्भुत अकह अनृप अनत हायभायनि की, लुरति लरी की लरी भरी अति चितचायनि की ।-रत्नाकर, भा० १, पृ० १५ । हायल-वि० [स० हात ( = छोडा हुआ), प्रा० हाय, अथवा हिं० घायल ] घायल । शिथिल । मूछित । बेकाम । उ०—किय हायल चित चाय लगि बजि पायल तुव पाय । पुनि सुनि सुनि मुख मधुर धुनि, क्यो न लाल ललचाय ।-बिहारी (शब्द॰) । हायल'--वि० [अ०] दो वस्तुओ के बीच मे पडनेवाला । व्यवधान रूप से स्थित । रोकनेवाला । अतरवर्ती। हाय हाय'-अव्य. [स० हा हा] शोक, दुख या शारीरिक कष्ट- सूचक शब्द । दे० 'हाय' । उ०-सुनि कटु बचन कुठार सुधारा । हाय हाय सव सभा पुकारा।-मानस, १२७६ । -