पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१९१

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पदार्थ (को०] । हिगुपत्री ५५०३ हिंडौल हिंगुपनी मी-सज्ञा स्त्री॰ [सं० हिदगुपनी] एक तरह की हीग । वशपत्नी(को०] विजीरे के रस के सात सात पुट देकर सुखा डाले । यह वृकनी हिगुपणी --सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० हिड गुंपर्णी ] वशपत्नी [को०] । गुल्म अनाह, अर्श, संग्रहणी, उदावंत, शूल और उन्माद आदि हिगुल-सहा पु० [ स० हिडगुल ] १ ईंगुर सिगरफ। २ एक रोगो मे दी जाती है । नदी का नाम। हिंच-सञ्ज्ञा पुं० [अ० हिच] झटकी । आघात । चोट । (लश्करी)। हिंगुला-संज्ञा स्त्री॰ [म० हिड गुला] एक प्रदेश का नाम जो सिध और हिछना--क्रि० अ० [स० इच्छण] इच्छा करना । चाहना । वलूचिस्तान के बीच मे है और जहाँ 'हिंगुलाजा या 'हिंगलाज' हिंछा @ - सज्ञा स्त्री० [सं० इच्छा] दे० 'इच्छा' । उ०--महादेव कर देवी का स्थान है। विशेप दे० 'हिंगलाज' । मडप जगत जातरा आउ । जो हिंछा मन जेहि के सो तैसे फल हिंगुलाजा-सज्ञा जी० [स० हिङगुलाजा] दुर्गा या देवी का एक रूप । पाउ।-जायसी ग्र० (गुप्त), पृ०२३१ । हिंगलाज देवी । हिजीर-- यह - सहा पुं० [म० हिज र] हाथी के पैर मे बाँधने की रस्सी या हिगुलि- ---मज्ञा स्त्री० [म० हिङगुलि] ईंगुर (को०] । जजीर । हिंगुलिका-मज्ञा स्त्री० [स० हिङ्गुलिका] कटकारी [को० । हिंडक'--वि० [स० हिण्डक] हिंडन करनेवाला । घूमने फिरनेवाला । हिंगुलु--सञ्ज्ञा पु० [हिङगुलु] मिंगरफ । इंगुर [को०] । हिडक'---सज्ञा पुं० एक प्रकार का विप जिसे नाडीतरग भी कहते है। काकोल नाम का विप [को०] । हिंगुली-सज्ञा स्त्री॰ [स० हिङगुली] दे० 'हिंगुदी' [को०] । हिडन-- 1--सज्ञा पुं० [स० हिण्डन] १ घूमना । फिरना । चक्रमण । २ हिंगुलेश्वर रस--सज्ञा पुं॰ [स० हिडगुलेश्वरस ] ईगुर से बनी हुई एक लिखना । लेखन (को०) । ३ सभोग । मैथुन (को॰) । रसीपध जिसका व्यवहार वातज्वर की चिकित्सा मे होता है । हिडना--क्रि० अ०[म० हिण्डन] घूमना। फिरना । चक्रमण करना। हिंगूज्ज्वला--संज्ञा स्त्री० [स० हिडगूज्ज्वला] एक प्रकार का सुगधित जाना । उ०- विरचयो लोहबर सिंघ सुग्र पड षड तन षडयो । निढर निसक झुझ्झत रन अळ कोस नृप हिंडयो ।--पृ० हिंगूल--सञ्ज्ञा पुं० [सं० 'हिड गूल] हिज्जल नाम का पौधा । रा०,६१४२२०८ । हिंगोट-संज्ञा पुं० [स० हिंड् गुपन, प्रा० हिंगुवत्त] एक झाडदार कॅटोला हिडिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हिण्डिक] फलित ज्योतिषी । जगली पेड । इगुदी । हिंडिर--सञ्ज्ञा पुं० [स० हिण्डिर] दे० 'हिंडीर' । विशेष—यह पेड मझोले आकार का होता है और इसकी इधर उधर हिडी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० हिण्डी] दुर्गा का एक नाम । सीधी निकली हुई टहनियाँ गोल गोल और छोटी तथा श्यामता हिडीकात--सज्ञा पु० [स० हिण्डीकान्त ] शिव का एक नाम । लिए गहरे हरे रग की पत्तियो से गुछी होती है । इसमे हिडीप्रियतम-पञ्चा पु०[स० हिण्डीप्रियतम] शिव । हिंडीकात [को०] । वादाम की तरह के गोल छोटे फल लगते है जिनकी गुठलियो हिडीवदाम--सद्या पुं० [देश॰ हिंड + फा० बादाम] अडमान टापू मे होने से बहुत अधिक तेल निकलता है । छाल और पत्तियो मे कसाव वाला एक प्रकार का बडा पेड जिसमे एक प्रकार का गोद निक- होता है। प्राचीन काल मे जगल मे रहकर तपस्या करनेवाले लता है और जिसके बीजो से बहुत सा तेल होता है । मुनियो और तपस्वियो के लिये यह पेड वडे काम का होता था, इसी से इसे 'तापसतरु' भी कहते थे । हिडीर-सज्ञा पु० [ स० हिण्डीर ] १ एक प्रकार की समुद्री मछली की हड्डी जो 'समुद्रफेन' के नाम से प्रसिद्ध है । २ पर्या०-इगुदी। हिंगुपन । जगली बदाम । मर्द । नर । पुरुप । ३ वृताक । वार्ताकु । वैगन (को०) । हिग्वाष्टक चूर्ण-सञ्ज्ञा पु० [सं० हिडग्वष्टक चूर्ण] दे० 'हिंगाष्टकचूण' । ४ अग्निदीपन (को०) । ५ अनार का पेड। 'हिंग्वादिगुटिका-संज्ञा स्त्री॰ [ स० हिडग्वादि गुटिका ] हीग के योग हिंडुक-सञ्ज्ञा पुं० [ स० हिण्डुक ] शिव का एक नाम । से बनी हुई एक विशेप'प्रकार की गोली । हिंडुल--वि० [हिं० हिडोल] हिलता हुआ । भूलता हुआ। उ०- विशेप-भुनी होग, अमलवेत, काली मिर्च, पीपल, अजवायन, कठसरी बहु क्राति मिली मुकताहला । हिंडुल नोसरहार जलूस काला नमक, सांभर नमक, संधा नमक इन सबको पीसकर जलाहला ।-वाँकी० ग्र०, भा० ३, पृ० ३६ । विजौरे नीबू के रस मे गोलियाँ बनाते है जो गरम पानी के साथ हिंडोर-सज्ञा पुं० [हि० हिडोल ] दे० 'हिंडोरा' । खाई जाती हैं। इसके सेवन से पेट का दर्द दूर होता है। हिडोरना-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हिडोर ] दे० 'हिँडोला' । हिंग्वादि चूर्ण- -सज्ञा पुं॰ [हिटग्वादि चूर्ण] हीग के योग से बनी हुई हिंडोरा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'हिंडोला' । एक बुकनी। हिडोरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ हि० हिडोरा ] छोटा हिंडोला । विशेप--भूनी हीग, पिपलामूल, धनिया, जीरा, वच, चव्य, चीता, हिंडोल-सञ्ज्ञा पुं० [ स० हिन्दोल] १ हिंडोला । २ एक राग जिसे गाधार स्वर की सतान कहा गया है। पाठा, कचूर, अमलवेत, सांभर नमक, काला नमक, सेधा नमक, जवाखार सज्जी,अनारदाना, हड का छिलका, पुष्करमूल, डाँसरा, विशेप-एक मत से यह प्रोडव जाति का है और इसमे पचम झाऊ को जड, इन सबका चूर्ण कर डाले और अदरक तथा तथा गाधार वर्जित हैं। इसकी ऋतु वसत और वार मगल है।