पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१९२

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हिडोलना ५५०४ हिंदी गाने का समय रात को २१ या २६ दड से लेकर २६ दट तक है। ऐसा प्रसिद्ध है कि यह राग यदि शुद्ध गाया जाय तो हिडोला आपसे आप चलने लगता है। हनुमत् के मत से इसका स्वरग्राम इस प्रकार है--सा ग म प नि मा नि प म ग सा । विलावली, भूपाली, मालश्री, पटमजरी और ललिता इसकी स्त्रियाँ तथा पचम, वसत, विहाग, सिंधुडा और सोरठ इसके पुन माने गए है । इसकी पुत्रवधुएँ, सिधुरई, गाधारी, मालिनी और त्रिवेणी कही गई है। हिडोलना:--सञ्ज्ञा पुं० [ स० हिण्टोल ] दे० 'हिडाला' । उ० - झूलत गुरुमुख सत अलख हिडोलने । -चरण ० बानी, पृ० १४४॥ हिडोला-सज्ञा पु० [ स० हिन्दोल] १ नीचे ऊपर घूमनेवाला एक चक्कर जिसमे लोगो को बैठने के लिये छोटे छोटे मच बने रहते हैं। विशेप--विनोद या मनबहलाव के लिये लोग इसमे बैठकर नीचे ऊपर घूमते हैं। सावा के महीने मे इमपर झूलने की विशेप चाल है। २ पालना। ३ झूला। उ०-अली फूल को हिडोलो वनो फूल रही जमुना ।--नद० ग्र०, पृ० ३७४ । हिंडोली -सन्ना स्त्री० [सं० हिण्डोली ] एक रागिनी जो हनमत के मत से हिडोल राग की प्रिया है। हिंता--सज्ञा पुं० [अ० हितह ] गेहूँ । गोधूम (को०। हिंताल-सज्ञा पु० [स० हिन्ताल ] एक प्रकार का जगली खजूर जिसके पेड छोटे छोटे-जमीन से दो तीन हाथ ऊँचे- होते हैं । उ०--शाल ताल हिताल वर सोभित तरुन तमाल।- श्यामा०, पृ० ३६। विशेप-यह पेड देखने मे बहुत सु दर होता है और दक्षिण के जगलो मे दलदलो के किनारे और गीली जमीन में बहुत पाया जाता है। अमरकटक के आसपास यह बहुत होता है। संस्कृत के पुराने कवियो ने इसका बहुत वर्णन किया है । हिंद--सज्ञा पुं॰ [फा० ] हिदोस्तान । भारतवर्ष । उ०-गिल जाय हिद खाक मे हम काहिलो को क्या ।--भारतेंदु ग्र०, भा० १, 'हफ्तहिद' का उत्लेस है जो वेदो मे भी 'सप्तसिधु' के नाम से पाया । धीरे धीरे 'हिद' शब्द मारे देश के लिये प्रयुक्त होने लगा। प्राचीन यूनानी जब फारस पाए, तब उन्हें इस देश का परिचय हुमा और वे अपने उच्चारण के अनुसार पारसी 'हिंद' को 'इड' या 'इडिका' कहने लगे, जिससे अाज- काल 'इडिया' शब्द बना है। हिंदवा-सज्ञा स्त्री० [फा] एक वनोपधि । कामनी [को०] । हिंदवाँ - -सज्ञा पुं० [फा० हिंदू ] हिंदू का बहुवचन । हिंदू लोग । उ०- जवन जोस वरजोर, हेक मम तोर हजारां । हीण तवै हिंदवां, एक लेखवै अपारीं । -- रा० रू०, पृ० २३ । हिंदवाना - सग पुं० [फा० हिंद + वान] १ तन्यूज । कलीदा। हिंदु- आना । २ हिंदुस्तान । भारतवपं । उ०--केती हुती रिद्धी सिद्धी केते हुते सत वृद्ध, छोडा हिंदवाना तुर्कान हद्द लामी है ।- पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ४३३ । हिंदवी-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] हिंद या हिंदोस्तान की मापा । हिंदी जो उत्तरीय भारत के अधिकतर भाग मे बोली जाती है । उ०- कोई हिंदवी मे हिंदू सिद्ध करते ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ३८२ । हिदसा--सज्ञा पुं० [अ० हिंदमह] १ सय्या । अदद । २ गणित [को०] । हिंदी-वि० [फा०] हिंद का । हिंदुस्तान का । भारतीय । हिंदी-सज्ञा पुं० हिंद का रहनेवाला । हिंदुस्तान या भारतवर्ष का निवासी। भारतवासी। उ०-मालिक व प्रादम व जिन्नो परी । हवशी हिंदी व संवर और ततरी ।-कवीर सा०, पृ० ६७६ हिंदी--सज्ञा स्त्री० १ हिंदुस्तान को भापा । भारतवर्ष की वोली । २ हिंदुस्तान के उत्तरी या प्रधान भाग की भापा जिसके अतर्गत कई बोलियाँ हैं और जो बहुत से अशो से सारे देश की एक सामान्य भाषा मानी जाती है। विशेप--मुसलमान पहले पहल उत्तरी भारत मे ही आकर जमे और दिल्ली, आगरा और जौनपुर अादि उनकी राजधानियां हुई । इसी से उत्तरी भारत में प्रचलित भापा को ही उन्होने 'हिंदवी' या 'हिंदी' कहा । काव्यभापा के रूप मे शौर- सेनी या नागर अपभ्रश से विकसित भाषा का प्रचार तो मुसल- मानो के आने के पहले ही से सारे उत्तरी भारत में था। मुसलमानो ने पाकर दिल्ली और मेरठ के आसपास की भाषा को अपनाया और उसका प्रचार वढाया। इस प्रकार वह भी देश के एक बडे भाग की शिष्ट वोलचाल की भाषा हो चली। खुसरो ने उसमे कुछ पद्यरचना भी प्रारभ की जिसमे पुरानी काव्यभापा या ब्रजभाषा का बहुत कुछ आभास था। इससे स्पष्ट है कि दिल्ली और मेरठ के आसपास की भापा (खडी बोली) को, जो पहले केवल एक प्रातिक बोली थी, साहित्य के लिये पहले पहल मुसलमानो ने ही लिया । मुसलमानो के अपनाने से खडी बोली शिष्ट बोलचाल की भाषा तो मानी गई, पर देश के साहित्य की सामान्य काव्यभाषा वही ब्रज पृ० ४८० । विशेष--यह शब्द वास्तव मे 'सिधु' शब्द का फारसो उच्चारण है। प्राचीन काल मे भारतीय पार्यो और पारसोक प्रार्यो के बीच बहुत कुछ सवध था। यज्ञ करानेवाले याजक बराबर एक देश से दूसरे देश मे आते जाते थे । शाकद्वीप के मग ब्राह्मण फारस के पूर्वोत्तर भाग से ही आए हुए हैं। ईसा से ५०० वर्ष पहले दारा (दारयवहु) प्रथम के समय मे सिधु नदी के श्रासपास के प्रदेश पर पारसियो का अधिकार हो गया था। प्राचीन पारसी भाषा मे सस्कृत के 'स' का उच्चारण 'ह' होता था । जैसे,-सस्कृत 'सप्त' फारसी 'हफ्त' । इसी नियम के अनुसार 'सिंधु' का उच्चारण प्राचीन पारस देश मे 'हिदु' या 'हिंद' होता था। पारसियो के धर्मग्रंथ 'मावस्ता' मे