पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१९३

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हिंदीरे वद ५५०५ हिंदुस्तानी' (जिसके अतर्गत राजस्थानी भी आ जाती है) और अवधी रही। चीन के पश्चिमोत्तर भाग मे होता है और उमको जड काइसो- इस वीच मे मुसलमान खडी वोली को अरवी फारसी द्वारा फेनिक एसिड के अश के कारण पीसने पर खूब पीली थोडा बहुत बरावर अलकृत करते रहे, यहाँ तक कि धीरे धीरे निकलती है। रेवद की जड दवा के काम मे पाती है और उन्होंने अपने लिये एक साहित्यिक भाषा और साहित्य अलग यह पुष्ट, उदरशूलनाशक तथा कुछ रेचक होती है। यह कर लिया जिसमे विदेशी भावो और सस्कारो की प्रधानता आमातिसार मे उपकारी होती है, पर ग्रहणी मे नही । रही । ध्यान देने की बात यह है कि यह साहित्य तो पद्यमय हिंदु -सज्ञा . [ स० फा० हिंदू ] भारतवासी आर्य जाति के ही रहा, पर शिष्ट बोलचाल की भाषा के रूप मे खडी बोली वशज । विशेष दे० 'हिंदू' । उ०--हुए हिंदु बलहीण, धरा का प्रचार उत्तरी भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक हो पण खीण सुरॉ ध्रम । मिटे बेद मरजाद, भेद गुण पाद गया । जब अंगरेज भारत मे आए, तब उन्होने इसी बोली को पडे भ्रम।--रा० रू०, पृ० २२ । शिष्ट जनता में प्रचलित पाया । अत उनका ध्यान अपने हिदुआना [-सज्ञा पु० [फा० हिंदुग्रानह ] तरबूज । सुवीते के लिये स्वभावत इसी खडी बोली की ओर गया और हिदुई है--सज्ञा स्त्री॰ [फा० हिंदी>हिंदवी ] दे० 'हिंदी' । उ०- उन्होने इसमे गद्य साहित्य के आविर्भाव का प्रयत्न किया। पर खुसरो ने फारसी, अरबी, तुर्की भाषामो के वर्णन के साथ जैसा ऊपर कहा जा चुका है, मुसलमानो ने अपने लिये एक भारत की सर्वप्रचलित भाषा हिंदी (हिंदुई) का भी उल्लेख साहित्यिक भाषा उर्दू के नाम से अलग कर ली थी। इसी से किया है।-अकबरी०, पृ० २६ । गद्य साहित्य के लिये एक ही भाषा का व्यवहार असभव प्रतीत हिदुगी -सच्चा स्त्री॰ [फा० हिंदी = हिंदवी ] दे० 'हिंदी' । उ०-- हुआ। इससें कलकत्ते के फोर्ट विलियम कालेज के प्रोत्साहन मूलदास जिनदास के भयौ पुत्र परधान । पढयों हिंदुगी पारसी से खडी बोली के दो रूपो मे गद्य साहित्य का निर्माण प्रारभ भागवान वलवान ।-अर्ध०, पृ० २। हुआ- उर्दू मे अलग और हिंदी मे अलग। इस प्रकार 'खडी वोली' का ग्रहण हिंदी के गद्य साहित्य मे तो हो गया, पर पद्य हिदुत्व--सज्ञा पुं॰ [स० हिन्दुत्व या फा० हिंदू + म० त्व (प्रत्य॰)] की भाषा बहत दिनो तक एक ही-वही व्रजभाषा -रही। हिंदू का भाव । हिंदूपन । भारतेंदु हरिश्चद्र के समय तक यही अवस्था रही। पीछे हिंदी हिदुनिल-सज्ञा स्त्री० [ फा० हिंदू + इनि (प्रत्य॰) ] हिंदू स्त्री । साहित्यसेवियो का ध्यान गद्य और पद्य की एक भाषा करने की विवाहिता हिंदू महिला । उ०---हिंदुनि सो तुरकिनि कहै, ओर गया और बहुत से लोग 'खडी बोली' के पद्य की ओर जोर तुम्हें सदा सतोप ।--भूपण ग्र०, पृ० १२६ । देने लगे। यह बात बहुत दिनो तक एक आदोलन के रूप मे हिदुवान-सज्ञा पुं० [हि० हिन्दु + वान् (प्रत्य॰)] वह स्थान जहां रही, फिर क्रमश खडी बोली मे भी बरावर हिंदी की हिंदू रहते है। हिंदुप्रो का जनपद । हिंदवान । हिंदुस्तान । कविताएँ लिखी जाने लगी । इस प्रकार हिंदी साहित्य के उ०--इक्क मत्त किन्नव सवन, मिट्टव कह हिंदुवान !--40 तीन बोलियाँ गई---खडी बोली, रासो, पृ० १०२ । ब्रजभाषा और अवधी। हिंदी साहित्य की जानकारी के लिये हिदुसथॉन--सज्ञा पुं॰ [ फा० हिंदू + सं० स्थान] दे० 'हिंदुस्तान' । अव इन तीनो वोलियो का जानना आवश्यक है। साहित्यिक उ०--मेक मपत समत्त मैं, पैतीस जसराज । गौ हरि धाम खडी बोली की हिंदी और उर्दू दो शाखाएँ हो जाने से साधा- जिहान तज, हिंदुसान जिहाज ।-रा० रू०, पृ० १७। रण बोलचाल की मिलीजुली भापा को अँगरेज हिदुस्तानी हिदुस्तान--सज्ञा पुं० [फा० हिंदोस्तान ] १ भारतवर्ष । विशेष दे० कहने लगे। 'हिद' । २ भारतवर्ष का उत्तरीय मध्य भाग । यौ०--हिंदीदा = हिदी मापा का जानकार । हिदी का ज्ञाता। विशेष--भारतवर्ष का यह भाग दिल्ली से लेकर पटना तक और हिदीदानी हिंदी लिखना और पढना जानना । हिदीसाज = दक्षिण मे नर्मदा के किनारे तक माना जाता है। यह खास हिदी को संवारनेवाला। हिंदी का तुकबाज । उ०-कोई हिंदुस्तान कहा जाता है । पजाव, बगाल, महाराष्ट्र आदि के हिदीसाज इनके नाच और वाजे की तारीफ मे यो कह गया निवासी इस भूभाग को प्राय हिंदुस्तान और यहां के निवासियो है कि वपारन वाजा लगा वजने झार मन । प्रेमघना, भा० को हिंदुस्तानी कहा करते हैं। २, पृ० १५२ । हिदुस्तानी'--वि० [ फा०] हिंदुस्तान का । हिंदुस्तान सबधी। हिंदीरें वद-सा --सझा पुं० [फा०] एक प्रकार का पौधा । हिंदुस्तानी'--मज्ञा पु० १ हिंदुस्तान का निवासी। भारतवासी । २ विशेष--यह पौधा हिमालय मे ११,००० से १२,००० फुट की उत्तरीय भारत के मध्य भाग का निवासी। भारतवासी। ऊँचाई तक उगता है। यह काश्मीर, लद्दाख, नेपाल, सिक्किम ( पजावी, वगाली प्रादि मे भेद सूचित करने के लिये )। और भूटान मे पाया जाता है । इसकी जड प्रोपध के काम हिंदुस्तानी-सला स्रो० १ हिंदुस्तान की भापा। २ बोलचाल या मे आती है और चीनी रेवद या रेवदचीनी कहलाती है । व्यवहार की वह हिंदी जिसमे न तो बहुत अरवी फारसी के इसका रग भी मैला होता है और सुगध भी कम होती है, पर शब्द हो न सस्कृत के । उ०-साहिब लोगो ने इस देश की चीनी रेवद की जगह यह बाजारो मे वरावर विकती है। भापा का एक नया नाम हिंदुस्तानी रखा।-प्रेमघन०, भा० २ चीनी जाति का पौधा तिब्बत के दक्षिणपूर्व भाग मे तथा पृ०४१४ । भीतर प्रव श्रा