पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१९४

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यात्रा । भगवतयात्रा। हिंदुस्थान हिंसा हिदुस्थान-सा पुं० [सं०, फा० हिंदू + स० स्थान ] हिंदुस्तान । हिंदोल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हिन्दोल] १ हिंडोला । झूना । उ०-न कर भारतवर्ष । उ०—जितनी प्रजा हिंदुस्थान की है ।-प्रेमघन०, वेदनासुख से वचित, वढा हृदय हिंदोल । -साकेत, पृ० २७० ॥ भा०२, पृ०२६७। २ हिंडोल नाम का राग । उ०--इतिहासकार स्मिथ ने लिखा हिदू -सज्ञा ० [म०, फा०] भारतवर्ष मे बसनेवाली आर्य जाति है कि कुछ रूटिवादी हिंदू सगीतज्ञ तानसेन की भत्सना इसलिए के वशज जो भारत मे प्रवर्तित या पल्लविन ग्रार्य धर्म, करते है कि परपगगन दो राग हिंदोल और मेघ इनके ममय मे सस्कार और समाजव्यवस्था को मानते चले आ रहे हो। लुप्त हो गए थे ।-अकवरी०, पृ० १०५। ३ श्रावण के वेद, स्मृति, पुराण आदि अथवा इनमे से किसी एक के शुक्लपक्ष मे दोलोत्सव जिसमे श्रीकृष्ण की मूर्ति हिंडोले मे रख- अनुसार चलनेवाला । भारतीय आर्य धर्म का अनुयायी। कर उपवनादि मे उत्सवार्थ ले जाते हैं । ४ इस प्रकार की विशेप-यह नाम प्राचीन पारमियो का दिया हुआ है जो उनके द्वारा ससार मे सर्वत्र प्रचलित हुना । प्राचीन भारतीय आर्य हिंदोलक-मसा पुं० [स० हिन्दोलक ] दे० 'हिडोला' । अपनी धर्मव्यवस्था को 'वर्णाश्रम धम' के नाम से पुकारते हिदोला-सज्ञा पुं० [स० हिन्दोला] दे० 'हिडोला' । थे । प्राचीन अनार्य द्रविड जातियो को उन्होने अपने समाज हिंदोस्तान-- [-सज्ञा पुं० [फा०] दे० 'हिदुस्तान' । उ०—वह भाषा कि मे मिलाया, पर उन्हे अपनी वर्णव्यवस्था के भीतर जो समस्त हिद वा हिंदोस्तान को हो ।-प्रेमघन०, भा० २, करके अर्थात् सिद्धात रूप मे किसी आर्य ऋपि, पृ० ३८१॥ राजा इत्यादि की सतति मानकर । पीछे शक, हूण और हिंदोस्तानी--वि०, सज्ञा पुं०, सज्ञा स्त्री॰ [फा० हिदुस्तानी] ३० यवन ग्रादि भी जो मिले, वे या तो वसिष्ठ ऋषि द्वारा उत्पन्न (गाय से सही) वीरो के वशज माने जाकर अथवा ब्राह्मणो के 'हिदुस्तानी' । प्रदर्शन से पतित क्षत्रिय माने जाकर । साराश यह कि भारतीय हिन---सज्ञा पुं० [स० हरिण, हि० हिरन] मृग । हिरन । उ०-- आर्य अपनी धर्मव्यवस्था को मजहब की तरह फैलाते नही थे, महा मुछछ पुछर ही है उन सी। नरी पांतरी अातुरी हिन जैसी। आसपास की या आई हुई जातियाँ उसे सभ्यता के सस्कार के -पद्माकर ग्र०, पृ० २८१ । रूप मे आपसे पाप ग्रहण करती थी। प्राचीन काल मे आर्य हिंमत -सज्ञा स्त्री० [अ० हिम्मत] दे० 'हिम्मत' । उ०-दास को सभ्यता के दो केद्र ये भारत और पारस । इन दोनो मे भेद बहुत प्रनाम मन धारिक, दयालु मात, दीजिए हिमत वल कल ब्रह्म- कम (दे० 'हिंद') था । हूणो ने पहले पारसी सभ्यता ग्रहण की, वालिका !-पोद्दार अभि ० ग्र०, पृ०४३६ । फिर भारत मे पाकर वे भारतीय पार्यों से मिले। शक जाति हिंस--सज्ञा स्त्री० [स० हेपा या अनु० हि हि घोडो के बोलने का शब्द । तो आर्य जाति की ही एक शाया थी। पीछे जब पारस के निवासी हीम। हिनहिनाहट । उ०--गरजहि गज, घटाधुनि घोरा । मुसलमान हो गए तव उन्होने 'हिंदू' शब्द के साथ 'काफिर', रथ रव बाजि पि चहुँ पोरा । तुलसी (शब्द०)। 'काला', लुटेरा आदि कुत्सित अर्थों की योजना की । जब तक वे हिंसक १--वि० [स०] १ हिसा करनेवाला । हत्यारा । वध करनेवाला। आर्य धर्म के अनुयायी रहे, तब तक 'हिंदू' शब्द का प्रयोग आदर घातक । २ मारने या पीडित करनेवाला। कष्ट पहुंचानेवाला। के साथ 'हिंद के निवासी' के अर्थ मे ही करते थे। यह शब्द ३ वुराई करनेवाला । हानि करनेवाला । इसलाम के प्रचार के बहुत पहले का ह (दे० 'हिंद') । अत पीछे से मुसलमानो के बुरे अर्थ की योजना करने से यह शब्द बुरा हिसक' २-मज्ञा पुं० १ जीवो को मारनेवाला पश् । बूंखार जानवर । नही हो सकता । भविष्य पुराण 'हप्त हिंदु' शब्द का उल्लेख करता २ शत्नु । दुश्मन । ३ मारण, उच्चाटन आदि प्रयोग करनेवाला है। कालिका पुराण, राम कोश, हेमत कवि कोश, अदभुतरूप ब्राह्मण । तानिक ब्राह्मण। कोश, मेरुतत्र (आठवी शताब्दी आदि), कुछ अाधुनिक ग्रथो मे हिंसन--सज्ञा पुं० [सं०, वि० हिसनीय, हिमित, हिस्य] १ जीवो का इस शब्द को सम्कृत सिद्ध करने का जो प्रयत्न किया गया है, वध करना । जान मारना । घात करना । उ०-गोभक्षन द्विज उसे कल्पना मात ही समझना चाहिए। श्रुति हिसन नित जासु कर्म मैं ।--भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० हिंदूकुश--सज्ञा पुं॰ [फा०] एक पवतश्रेणी जो अफगानिस्तान के ५४० । २ जीवो को पीडा पहुंचाना। कष्ट देना । सताना । उत्तर मे है और हिमालय से मिली हुई है । पीडन। ३ बुराई करना । अनिष्ट करना या चाहना। ४ वैरी । हिंदूधर्म--सज्ञा पुं० [फा० हिंदू + म० धर्म] हिंदुओ का धर्म । वर्णाश्रम शन्नु । दुश्मन (को०)। धर्म । भारतीय आर्य धर्म । हिंसना--सज्ञा स्त्री॰ [म०] दे० 'हिमन', 'हिसा' । हिंदूपन-सञ्ज्ञा पुं० [फा० हिंदू + हिं० पन (प्रत्य॰)] हिंदू होने का भाव हिसनीय--वि० [म०) १ हिंमा करने योग्य । २ जिमकी हिसा की या गुरण । जानेवाली हो । ३ वध करने योग्य । वध्य (को०)। हिंदोरना-क्रि० स० [सं० हिन्दोल + हिं० ना (प्रत्य॰)] पानी के हिसा-सज्ञा मी० [स०] १ वध या पीडा। जीवो को मारना या समान पतली चीज मे हाथ या कोई चीज डालकर इधर उधर सताना । प्राण मारना या कष्ट देना। २ हानि पहुंचाना । घुमाना । घुषोलना । फेंटना। अनिष्ट करना।