पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१९५

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हिंसाकर्म ५५०७ हिंव विशेष--हिसा तीन प्रकार से हो तकती है-मनसा, वाचा और ४ भयकर । भयदायक । भयानक (को०)। ५ कूर । निर्दय । कर्मणा । पुराणो मे हिसा लोभ की कन्या और अधर्म की भार्या निष्कृप (को०)। कही गई है । जैन शास्त्रानुसार हिसा चार प्रकार की होती है- हिस्र-सज्ञा पुं० १ खूखार पशु । जगली जानवर । हिसा करनेवाला अाकुट्टी हिसा, दर्प हिसा, प्रमाद हिसा और कल्प हिसा । जानवर । २ विनाश करनेवाला व्यक्ति । ३ शिव । ४ भीम । ३ लूट। डकैती (को०)। ५ वह व्यक्ति जो जीवित प्राणियो को कष्ट पहुंचाने मे सुख का हिंसाकर्म--सखा पुं० [स० हिंसाकर्मन्] १ वध करने या पीडा पहुंचाने अनुभव करे । ६ क्रूरता । निर्दयता (को॰] । का कर्म । मारने या सताने का काम । २ दूसरे का अनिष्ट करने हिंस्रक-सज्ञा पुं॰ [स०] जगली जानवर । हिसक पशु । शिकार करने- के लिये मारण, उच्चाटन, पुरश्चरण आदि तानिक प्रयोग । वाले जानवर किो०] 1 हिंसात्मक-वि० [स०] १ जिससे हिसा हो । २ हिसा से युक्त । हिंस्रजतु-सधा पुं० [स० हिस्रजन्तु] हिमक पशु (को०] । हिंसाप्राणी--सञ्ज्ञा पुं० [ स० हिसाप्राणिन् ] हानि पहुंचानेवाले या हिस्रपशु--सज्ञा पुं० [स०] खूखार पशु । शिकारी जानवर (को०] । हिंसक पशु । खूखार जानवर (को०] | हिस्रयत्र [--सज्ञा पुं॰ [ स० हिंस्रयन्त्र ] १ कूटयन । पाश । जाल । फदा। हिंसाप्राय-वि० [सं०] सामान्यतया हानिकारक (को०] ।' २ मारण, मोहन, उच्चाटन आदि कर्मों का विधायक अभिचार हिंसारत--वि० [सं०] दुष्टतापूर्ण कार्य मे प्रानद लेनेवाला। उ० मन [को०] हिंसारत निपाद तामस वपु पसु समान वनचारी।-तुलसी ग्र०, हिस्रा- सच्चा स्त्री० [सं०] १ नस । नाडी। शिरा । २ जटामासो पृ० ५४२ । ३ गुजा का पौधा । ३ एक प्रकार का अनाज । गवेधु । हिंसारू-सञ्चा पुं० [सं०] १ हिंसक पशु । हिंस्र पशु । खूखार जानवर। ४ चर्वी । वमा [को०] । २ वाघ । शेर। हिस्रिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] दुश्मनो या डाकुओ की नाव । हिंसारुचि-वि० [स०] दे० 'हिंसारत' (को०] । हिँकरना-क्रि० अ० [ अनु० हिन हिन ] घोडो का वोलना । हिंसालु'--वि० [सं०] १ हिंसा करनेवाला । मारनेवाला या सताने हिनहिनाना । हीसना। उ०-जो कहु रामलखन वैदेही । हिकरि वाला । २ हिंसा की प्रवृत्तिवाला । हिंकरि हित हेरहिं तेही ।-मानस, २११४३ । हिंसालु -सज्ञा पुं० कटहा कुत्ता या दुष्ट कुत्ता। जगली या शिकारी हिँगाइन-वि० [हिं० हीग] हीग के समान गधवाला। जिसकी गध कुत्ता (को०] । कच्ची हीग की महक के समान हो। हिंसालुक--सशा पुं० [सं०] दे० 'हिंसालु" । हिँगाना -क्रि० स० [हि० हंगा] खेत को पटेले से ठीक करना। पटेला चलाना । हिंसाविहार-वि० [सं०] दे० 'हिंसारत' । हिंसासमुद्भव-वि० [सं०] जो हिंसा से उत्पन्न हो [को०] । हिंगाना-क्रि० अ० [हि० होग+ पाइन (प्रत्य॰)] हीग के समान गध पाना। हीग की तरह महकना । हिसित'- वि० [स०] १ जिसकी हिंसा की गई हो । जिसे मार डाला हिंगायाg+---वि० पटेला चलाकर वरावर किया हुआ। हेगाया हुआ गया हो । २ जिसे हानि पहुंचाई गई हो। ३ जिसे आघात [खेत] । उ०--जुते हिंगाए खेत बनत उज्वल दुतिधारी।- पहुंचा हो । पाहत (को॰] । प्रेमघन॰, भा० १, पृ० ३३ । हिंसित- -संज्ञा पुं० १ आघात । चोट । २ क्षति। हानि (को०] । हिँछनाल --क्रि० प्र० [स० इच्छन ] इच्छा करना । चाहना । हिंसितव्य-वि० [स०] १ हिंसा करने योग्य या जिसकी हिसा करनी हिँडोर-सज्ञा पुं० [हि हिडोल] हिँडोला । उ०--के तरग की डोर हो । २ जिसे पीडा या कष्ट पहुंचाया जाय (को०)। हिंडोरन करत कलोले ।-भारतेदु ग्र०, भा० १, पृ० ४५५ । हिंसीन-सज्ञा ० [स०] हिसक पशु । जगली जानवर । शिकारी जान- हिंडोरना--सज्ञा पुं० [हि० हिडोल ] दे० 'हिंडोला' । उ०-- वर [को०] । (क)माई झूलत नवल लाल, झुलावत व्रज की बाल कालिदी हिंसीर'-वि० [स०] १ हिसा करनेवाला । हिंसक। २ पीडित करने, हिँडोरा-सज्ञा पुं० [हि० हिंडोला ] दे० 'हिंडोला' । के तीर माई रच्यो है हिंडोरना।--नद० ग्र०, ० ३७८ । बुराई करने या सतानेवाला। हिंडोरी--सज्ञा स्त्री० [हि० हिँडोला ] छोटा हिंडोला । हिंसीर --सज्ञा पुं० १ वाघ । २ खग । पक्षी (को०) । ३ निदक अथवा हिंडोल-सज्ञा पुं० [हि०] १ हिडोना। २ एक राग । बुराई करनेवाला व्यक्ति (को०) । हिंयवै @-अव्यः [ हि० ] दे० 'यहाँ' । उ०-मोर पिया बस पुर हिंस्य--वि० [सं०] १ हिसा के योग्य । २ जिसकी हिंसा होनेवाली पाटन, हम धन हिय हो ललना। अपने पिय की सुदि जो पौति हो । ३ जिसे सताया या कष्ट पहुंचाया जाय (को०) । हम धन कहवी हो ललना।-पलटू०, भा० ३, पृ० ७५ । हिंस्र'-वि० [सं०] १ हिंसा करनेवाला। खूखार । जैसे,--हिंस्र पशु । हिंयाँ@+--प्रव्य० । हि० ] दे० 'यहाँ । २ निदा करने या हानि करनेवाला। ३ विध्न सक। विनाशक । हिव-ससा पुं० [सं० हिम] दे० 'हिम'। हिं० श० ११-२३