पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिम' ५५१३ हिमभूधर हिम'--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पाला । वर्फ । जल का वह ठोस रूप जो यौ०-हिमगिरिसुता = पावंती। सरदी से जमने के कारण होता है । तुपार । उ०—(क) काननु, हिमगु-सज्ञा पुं० [सं०] चद्रमा । कठिन भयकरु भारी । घोर घामु हिम वारि बयारी।--मानस, हिमगृह-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] वह घर या कोठरी जो बहुत ठढी हो और २।६२ । (ख) ऊपर हिम था नीचे जल था। --कामायनी, पृ० २ । जिसमे ठढक के सामान इकट्ठे हो । सर्दखाना । २ जाडा । ठढ। ३ जाडे की ऋतु । ४ चद्रमा । ५ चदन । हिमगृहक-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'हिमगृह' । ६ कपूर । ७ रांगा। ८ मोती। ९ ताजा मक्खन । १० कमल । ११ पृथ्वी के विभागो या वर्षों मे से एक । हिमगौर-वि० [स०] हिम के समान श्वेत । वर्फ की तरह सफेद [को॰] । १२ वह दवा जो रात भर ठढे पानी मे भिगोकर सबेरे मलकर हिमघ्न-वि० [४०] जिससे शीत दूर हो । ठढक या हिम को दूर करने- छान ली जाय । ठढा क्वाथ या काढा । खेशांदा । १३ हिमवान् । वाला [को०] । हिमालय (को०)। १४ रजनी। निशा । रात्रि (को०) । १५ हिमज' - वि० [सं०] १ वर्फ मे होनेवाला। २ हिमालय मे होने- एक वृक्ष । पद्मकाष्ठ । पद्माख । विशेष दे० 'पदम। वाला। ३ हिमालय से उत्पन्न । हिम'-वि० १ ठढा । सर्द । २ तुपार या पाला से भरा हुआ [को०] । हिमज-सज्ञा पुं० मैनाक पर्वत । हिम@!-सज्ञा पुं० [सं० हेम] ३० हेम' । उ०—राजा मन मोदित हिमजा- सज्ञा स्त्री० [स०] १ खिरनी का पेड ! २ यवनाल से निकली भयो, धीरज धर्म निधान । पच कोटि मँगवाइ हिम, दिय विप्रन हुई चीनी । ३ पार्वती। कहें दान ।--प० रासो, पृ० १६ । हिमज्वर सञ्ज्ञा पु० [सं०] जाडा देकर आनेवाला बुखार । जड़या । हिमउपल-मचा पुं० [सं०] पोला । पत्थर । जमा हुअा मेह । उ०- विशेप दे० 'जूडी' (को०]। जिमि हिम उपल कृपी दलि गरही।-तुलसी (शब्द॰) । हिमझटि--सज्ञा स्त्री० [सं० हिमझण्टि] दे० 'हिमझटि' । हिमऋतु--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] जाडे का मौसम । हेमत ऋतु । हिमझटि--सज्ञा स्त्री० [म०] पाला । कोहरा (को०] । हिमक-सञ्ज्ञा पु० [१०] तालीशपन्न । हिमति -सज्ञा स्त्री० [अ० हिम्मत] दे० 'हिम्मत' । उ०~ हजरति हिमकण-सचा पुं० [०] वर्फ या पाले के महीन टुकडे । हिमति न छाडिये, धरिये मन मैं धीर ।-ह० रासो, पृ० १०६ । हिमकणिका-सबा स्त्री० [सं०] बर्फ की छोटी कनी। उ०--वन की एक हिमतल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कपूर देकर बनाया हुआ तेल । एक हिमकणिका जैसी सरस और शुचि है। क्या सौ सौ नागरिक हिमदीधिति 1-सञ्ज्ञा पुं० [स०] चद्रमा । जनो की वैसी विमल रम्य रुचि है ?--पचवटी, पृ०६। हिमदुग्धा-सज्ञा स्त्री० [सं०] खिरनी। क्षीरिणी । हिमकर --सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ चद्रमा । हिमाशु । उ०-सीय वदन हिमदिन-सन्ना पु० [सं०] ठढक का मौसम । ठढक का बुरा सम हिमकर नाही ।—मानस, ११२३७ । २ कपूर । मौसम [को०] । यौ०-हिमकरतनय, हिमकरसुत = बुध ग्रह का नाम । हिमद्युति- हिमकर'--वि० शीतप्रदायक । ठढ लानेवाला। [--सज्ञा पु० [स०] चद्रमा [को०] । हिमकरधर--सच्चा १० [सं०] चद्रधर । शिव । उ०--सो सभी हिमद्रुट्--सज्ञा पुं० [स० हिमद्रुह्] सूर्य (को॰) । हिमद्रुम-सज्ञा पुं॰ [स०] वकायन का पेड । सूलिन सिव सकर । हर हिमकरधर उग्र भयकर ।--नद० ग्र०, हिमधर-सचा पुं० [सं०] हिमालय (को०)। पृ० १५४। हिमकिरण-सा पुं० [स०] चद्रमा । हिमधातु-सज्ञा पुं० [सं०] हिमालय [को०] 1 हिमकूट-सचा पुं० [स०] १ शीतकाल। ठढक का मौसम। शिशिर हिमधामा-सञ्ज्ञा पु० [सं० हिमधामन्] चद्रमा यिो०। ऋतु । २ हिमालय पर्वत । ३ हिमालय का कूट । हिमालय हिमध्वस्त--वि० [सं०] पाले से नष्ट किया हुआ। पाला मारा की चोटी [को०] । हुया को०)। हिमखड-सञ्ज्ञा पुं० [स० हिमखण्ड] १ हिमालय पहाड । २ अोला। हिमपात-सज्ञा पुं० [म०] पाला पडना । बर्फ गिरना। बनौरी । पत्थर (को०)। हिमप्रस्थ--सज्ञा पु० [सं०] हिमालय पहाड । हिमगर- सञ्चा पुं० [स० हिम + हिं० गर (प्रत्य॰)] पाला। हिम। हिमवारि-सज्ञा पु० [सं० हिमवारि] १ दे० 'हिमवारि'। २ वह दे० 'हिंवार' । उ०--जीवजल हिमगर होत है सकत सीत के सग। जो अत्यत शीतल हो। उ०-घोर घामु हिमवारि वयारी। -मानस, २०६२। सो पखान पानी वह्या गुरु गोषम के अग।-रज्जव०, पृ० १६ । हिमगर्भ-वि० [स०] वर्फ से परिपूर्ण । हिमवालुक-सज्ञा पुं॰ [सं०] कपूर [को०] । हिमगिरि-सज्ञा ॰ [toj हिमालय पर्वत। उ०--(क) तेहि कारन हिमभानु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] चद्रमा । हिमगिरि गृह जाई। जनमी पारवती तनु पाई।-मानस, हिमभूधर-सञ्ज्ञा पुं० [स० हिम + भूधर] हिमाचल । हिमालय । १६६५ । (ख) हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर ।-कामा उ.--जहँ तहँ मुनिन्ह सुअाश्रम कीन्हें । उचित वास हिमभूधर दीन्हें।-मानस ११६५। यनी, पृ०१॥