पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२०६

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भाई था। हिरण्यमाली ५५१८ हिरनाकाप हिरण्यमाली--वि० [सं० हिरण्यमालिन्] [ मी० हिरण्यमालिनी] हिरण्ययन-सा पु० [० हिरण्ययज्] १ गाो ती माता । २ वर सोने की माला धारण करनेवाला । जिमने सोन की माला गा माटीपान गी | हिरण्यय-वि० [सं०] [वि० सी० हिरण्ययो] गोने का । परिणम [को०)। हिरण्या-माझी० [१०] अग्नि सो गाजितानों में से एगदा का नाम । हिरण्यरशन-वि० [सं०] [स्त्री० हिरण्यरशना] मोने की मेगना या कटि- सूत्र धारण करनेवाला । हिरण्याक्ष- [] १ गित देय ना नियमित हिरण्यरेता'---सहा पु. [म० हिरण्यरेतस] १ गुणानु । अनि । याग । २ सूर्य । ३ गिव । ४ वारा ग्रादित्यो मे से एा ।" विणेप-यह दर पन्या धोरण प्राया। गने अर्कवृक्ष । मदार । ६ निवम वृक्ष। चीता (पो०) पृथ्वी गो र पातान में रा छोरा या हा प्रादि. हिरण्यरेता-वि० मोने के मदश वीज या तगा। पी प्रापंना पर बिष्ण ने राग गार प्राण मग माग हिरण्यरोमा-सज्ञा पुं० [सं० हिरण्यरामन्] १ लोरपान जो गगेगि घोर पुष्पी ना उदार रिया के पुत्र हैं। २ महाभारत के अनुसार भोप्पा गा नाम । यो०-हिपाक्षरिपु, हिना-या कि हिरण्यलोमा--सशा पुं० [० हिरण्यनोमन्] एम पि जा पाचर्य • यमुर गाटे माई गामा II मन्वनर मे हुए थे (फो० हिरण्याव-सहा . [] दा ने गिय बनाम पारे हिरण्यव-सया पुं० [सं०] १ मोने का पापण । म्बर्गागरण। की मूर्ति निगरा 7 १८ महामाना। किसी देवता या गदिर पर चढ़ा हुआ धन । देवरव । देवोतर हिरण्याएवरया पुं० [] HIT पग्न में निवजापाया सपत्ति । गाने या पोरा पोर उप। पर दान १६ महारानी में है। हिरण्यवर्चस्-वि० [सं०] स्वणिम दीप्ति मे युक्त । माने गी तरह हिरण्विनी-राया पी० [अ०] मोने यी गान । कातिवाला (को०] । हिरदय-गश • [म. हदग] ३० 'दया। 30-प्रेम प्रमोद हिरण्यवर्ण --सप्मा जी० [सं०] १ वह जिसकी पाति या वगं स्यरिणम पररसर प्रगटत गोर। ना हिन्दप गाग्राम पर दि हि हो । २ एक नदी का नाम । तुलमी प्र०, पृ० ५३ । हिरण्यवान्'-वि० [सं० हिरण्यवत्] [वि० सी० हिरण्यक्ती] मानेपाना। हिरदा@---प्रया पुं० [सं० हुदन] २० 'ग। उपाधि जिसमे या जिसके पाम सोना हो। छिनता कोयस हिरवा मोबा-गावाणी, १०२७। हिरण्यवान्'-सज्ञा पु० अग्नि । हिरदानीg-ent. [हदग] पतरामा । उ न हिरण्यवाह-सया पुं० [सं०] १ शिव । २. सोन नद । मूढ गित सार हिरवानी में।-गर, मा. 101 हिरण्यवीर्य-सया पुं० [०] १ अग्नि । २ गूर्य । हिरदावल-Tato [d० दयान) मोटे यो हानी गरी भारी (पमे हिरण्यशकल--समा पु० [10] स्वर्ण का छोटा छोटा चुदा । सोने का हए रोएँ) जो यदा भारी दोष मानी जाती है । छोटा टुकड़ा (फो०] । हिरन - • [सं० हरिरा ] [ो. हिरनी] इति । ग । पिरोत- हिरण्यशृग-सज्ञा पुं० [सं० हिरण्ययन] १ वह जिसकी चोटी या दे० 'हरिरा'। सीग सोने की हो। २ महाभारतोक्त एक परत सा मुहा०-हिरन हो जाना - भाग जाना । यनुन तेगे में भागा। नाम (को०] । हिरन-सा . [ हिरण्य, प्रा० हिरण] सोगा। सुपरां। हिरण्यष्ठीव-तशा पुं० [सं०] भागवत पुराण के अनुसार एक पयंत उ०-लोहा हिरन हो यो से जो पारग TET-२० विशेष [को॰] । यानी, पृ०१३ । हिरण्यष्ठीवी-वि० [सं० हिरण्यप्ठीविन् ] महाभारत के अनुसार हिरनखुरी--सश सी० [सं० हरिग + गृनि एमा। यो सामा (पक्षीविशेष) जो सोना उगलता या वमन करता हो [को०] । वेल जो बरसात में उगती है और जिसके पत्ते हिन्न पे ने हिरण्यसकाश-वि० [सं० हिरण्यमद्धाश] सोने की तरह दीप्तियुका (फो०] । मिलते जुलते होते हैं । हिरण्यसर-सज्ञा पुं० [स० हिरण्यसरस्] महा मारत में परिणत हिरनननि, हिरनननी -संज्ञा स्त्री० [सं० हरिएनयनी] मगनगनी । उ०-हाँ हसि हसि हां ही करो, नाहि नाहि महि हाल । रि हिरण्यसामुदयिक-सज्ञा पुं० [t०] मुद्रा के रूप में कर वसूल करने हरयत हैरत हिमें हिग्नननि हित ठानि ।-अन० ग्र०, पृ०७ । वाला अधिकारी । उ०---गाल मे नकद कर वसूल करनेवालो हिरनाल-सपा पुं० [सं० हरिणा] मग । को 'हिरण्यसामुदायिक' कहते थे।-पू० म० भा०, पृ० १०७ । हिरनाकच्छप-सपा पुं० [सं० हिरण्यकशिपु] एा दैत्य जो प्रसाद हिरण्यस्थाल-सा पुं० [सं०] स्वर्ण का कटोरा या कटोरे के समान का पिता था । विशेष दे० 'हिरण्यकशिपु' । उ०-हिरनापन्छप कोई पान (को०]। दीन भयो जय, दीनहो सय वरदान ।-जग० २०, पृ०११३ । एक तीर्थ।