पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२०८

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पृ० ४६८। हिरिस १५२० हिलगाना यह फागुन चैत मे फनता है। इसके फल खटमीठे होते है और हिलकना-नि० अ० [अनु० या म० हिक्का] १ हिचरियां लेना। कही कही खाए जाते है। हिचाना । २ गिसकना। हिरिस -सझा स्त्री० [अ० हिस] दे० 'हिर्स' । हिलकना-क्रि० स० [देश॰] मुफ़ोरना। (गुंह) ऍटना या गिकोडना । हिरीसि-सज्ञा स्त्री० [अ० हिस] हिग' ) 30---जाहि वात्न, हिलकना-क्रि० प्र० [म० हिमा (= गगीप)] ३० 'हिग्कना । जिकीरि, फिकीरि, हिरीमि, हवा सग दूरि गुग्रा ।--रात० हिलकी@---सा स्त्री० [अनु० या मुं० हिमा] १ हिचको। २ दरिया, पृ० ६६ । भीतर ही भीर गने में रह रहार वायु के निकलने का मौका हिरोदक-सज्ञा पुं० [सं०] रक्त । सून [को०] । या प्राधान । मिमकाने का गब्द । गिगा। उ० - (क) देवी हिरोरा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हिल्लोल] दे० 'हिलोर', 'हिलोग' । उ०--- माई कान्ह लिपि पनि गर्य।- गृ०, १० । ३८८ । (प) सकल कटक मै पर्यो हिरोरा । छूट फिर हायि प्रो घोरा । (माई) नकुह न दग्द करति रिलपिनि हरि रोपे ।- सूर०, --हिं० क० का०, पृ० २१६ । १० । ३१८ । (ग) कमल नयन हरि हितफिन रोवै वधन हिरौ जी;--सज, स्त्री० [अ० हिरमजी] । दे० 'हिरमजी' । छोरि जसोवै।-गर (शब्द०)। (प) उरलाय लई अकुनाय तऊ अधिगतिलो हितकीन रही।-शव (गन्द०)। हिरोल --सज्ञा पुं० [तु० हरावल, हि• हर्गल] २० 'हरावल' । नि० प्र०--भरना।-नगा। हिर्दया-मना । [म० हृदय] दे० 'हृदय' । उ०-चीरा पाय राय भय भागा । सत्य ज्ञान हिदय मे जागा ।-पावीर सा०, हिलकोर-पशा ५० [ ० हिल्लोन हिलोर । नहर । तरग । हिल की सी० [हिं० हिलना] उमग। तरग । हिर्फत ---सज्ञा स्त्री० [अ० हिर्फत] दे० 'हिरफत' । हिलकोरना-मि० स० [हिं० हितकोर + ना (प्रत्य॰)] पानी को हिलाकर तरगें उठाना । जल को क्षुध करना। यौ० - हिर्फबाज = दे० 'हिरफत माज' । मयो० कि०-डानना ।-देना। हिर्स --सचा स्त्री० [अ०] १ तृष्णा। लालच । लोभ । २ इच्छा का हिलकोरा-समा पुं० [सं० हित्तोर ] तरग । सहर । वौचि । वेग । कामना की उमग । हिलोग । हिलकोर । उ०-नदी का जल हिलकोरा मार मुहा०--हिर्स करना = तृष्णा करना । हिसं छूटना = मन मे रहा था ।-प्रेमपन०, मा०, पृ० ४४४ । लालच होना। तृष्णा होना । हिर्स दिलाना या देना = (१) प्रवन्न मुहा०--हिलकोरा देना = (१) तरगित करना । (२) लहराना । इच्छा उत्पन्न करना। लालसा जगाना। कामना उत्तेजित करना। (२) लालच दिलाना । हिर्स मिटना = (१) इच्ग का वेग हिलकोरा मारना या हिलकोरे लेना= नहराना। तरगित होना। शात होना । (२) कामेच्छा शात होना । काम का वेग शात होना । हिस मिटाना = (१) इच्छा पूरी करना । लालसा पूरी हिलग -सशानी० [हिं हिलगना] १ लगाव । सपथ। २ परिचय । करना । (२) काम का वेग शात करना। हिसं होना = दे० हेलमेल । हिलने मिलने या परवने का भाव । ३ नगन । 'हिसं छूटना'। प्रेम। उ० -देव भूलियन कळू फहत न प्राव सखी, इनकी हिलग नई नई देखियत है।-धनानद, पृ० २१४ । ३ किसी की देखादेखी कुछ काम करने की इच्छा । टीम । सार्धा। हिलगत [-सरा बी० [हिं० हिलगता] १ हितगने या परचने का क्रि० प्र०-करना ।होना । माव। २ टेव। आदत । वान । यौ०-हिर्माहिी। हिलगना'-क्रि० अ० [सं० अधिनग्न, प्रा० अहितग्न] २ अटकना हिर्साहा --वि० [अ० हिस] १ लालची । लो मी । २ ईयालु । लाग- टॅगना । किसी वस्तु से लगकर ठहरना। २ फेंमना । वझना। डाट करनेवाला। ३ हिलमिल जाना । ४ परचना। हिर्साहिर्सी-- --सज्ञा स्त्री० [अ० हिर्स ] लाग डाट । देखा देखी। हिलगना-क्रि० अ० [सं० हिरुक् ( समीप । स)] पास हिर्सी-वि० [अ० हिस + हिं० ई (प्रत्य॰)] १ हिसं रखनेवाला । होना । इतने ममीप होना कि स्पर्श हो । सटना। भिडना। लालची । २ ईर्ष्यालु । द्वेपी। दे० 'हिरकना' । हिर्मोहवस-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हिर्स + फा० हवस] हिसं और हवस । हिलगाना'--क्रि० स० [हि. हिलगना] १ अटकाना। टांगना । लोभ और लालच (को०)। किसी वस्तु से लगाकर ठहराना। २ फंसाना। वझाना। हिर्मोहवा -सक्षा स्त्री० [अ० हिस + फा० हवा] लोभ और लालच । ३ मलजोल मे करना। घनिष्ठता स्थापित करना। ४. अधिक लोभ । उ०--गाफिल हुए सव हिर्मोहवा ढग लगाए । परचाना । परिचित और अनुरक्त करना। जैसे-बच्चे को -कबीर म०, पृ० ४६६ । हिलगाना। हिलदा-सञ्ज्ञा पुं० [देश॰] [खी० हिलदी ] मोटा ताजा आदमी । तगडा हिलगाना -क्रि० स० [सं० हिरुक् ( = पास)] सटाना । भिड़ाना । या तदुरुस्त भादमी। दे० 'हिरकाना' । 1