पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२१

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एक भेद। स्कंधेपथ स्काउंट स्कधपथ--शा पु० [म० स्कन्धपयं] एक मनुष्य के चलने लायक तग स्कधिक--सज्ञा पुं० [सं० स्कन्धिक) कधे पर बोझ ढोनेवाला बैल । वृष । रास्ता। पगडडी। स्कधी-वि० [म० स्कन्धिन्] [वि॰ स्त्री० स्कधिनी] १ काउ से युक्त । स्कधपरिनिर्वाण-- T--मज्ञा पु० [सं० स्कन्धपरिनिर्वाण] बोद्धो के अनुसार तने से युक्त । २ कधेवाला (को॰) । शरीर के पांचो स्कधो का नाश । मृत्यु । स्कधी-सञ्ज्ञा पु० वृक्ष । पेड । स्कधपाद-सना पु० [स० स्कन्धपाद] मार्कंडेय पुराण के अनुसार स्कधेमुख'---वि० [स० स्कन्धेमुख] जिसका मुख कधे पर हो । एक पर्वत का नाम । स्कधेमुख'---सज्ञा पु० स्कद के एक अनुचर का नाम । स्कधपीठ-सज्ञा पुं० [स० स्कन्धपीठ कधे की हड्डी । मोढा । स्कधोनीवी-सज्ञा स्त्री० [स० स्कन्धोगीवी] बृहती नामक वर्णवृत्त का स्कधप्रदेश--सञ्ज्ञा पु० [स० स्कन्धप्रदेश] दे० 'स्कधदेश' । स्कधफल-सञ्ज्ञा पु० [स० स्कन्धफल] १ नारियल का पेड । नारिकेल स्कधोपनेय-सच्चा पु० [स० स्कन्धोपनेय] राजानो मे होनेवाली एक वृक्ष । २ गूलर । उदुबर वृक्ष । ३ विल्व वृक्ष (को॰) । प्रकार की सधि। स्कधवधना-सज्ञा पु० [स० स्कन्ध बन्धना] सोफ । मधुरिका । स्कधोपनेय-वि० कधे द्वारा ढोने या वहन करने योग्य । स्कधबीज-सज्ञा पु० [स० स्कन्धवीज। वह वनस्पति या वृक्ष जिसके स्कधोपनेयसधि-सज्ञा स्त्री० [स० स्कन्धोपनेयसन्धि] कामदक नीति स्कट से ही शाखाएँ निकलकर जमीन तक पहुँचती और वृक्ष का अनुसार वह सधि जिसके अनुसार नियत या निश्चित फल रूप धारण करती हो। जैसे,--बड, पाकर आदि । थोडा थोडा करके प्राप्त किया जाय । स्कधमणि-सज्ञा पुं० [स० स्कन्धमणि] एक प्रकार का जतर या स्कध्य-वि० [स० स्कन्ध्य] १ स्कन्ध या कधे का। स्कध सबधी। तावीज। २ स्कध के समान । स्कधमल्लक--सज्ञा पु० [स० स्कन्धमल्लक] कक पक्षी। सफेद चील । स्कभ-वि० [स० स्कम्भ] १ खभा । स्तभ। २ विश्व को धारण करनेवाला, परमेश्वर । ३ टेक । सहारा । बालबन (को०)। स्कधमार-सज्ञा पुं० [स० स्कन्धमार] बौद्धो के चार मारो मे से एक। ४ एक वैदिक देवता (को०) । स्कधरुह--सञ्ज्ञा पु० [स० स्कन्धरुह] वड का पेड । वट वृक्ष । स्कभन-सञ्ज्ञा पु० [स० स्कम्भन १ खभा । स्तभ । २ सहारा देना। स्कधवह-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० स्कन्धवह] दे० 'स्कधवाह' । सहारा देने की क्रिया (को॰) । स्कधवाह-सज्ञा पु० [सं० स्कन्धवाह] वह पशु जो कधो के बल बोझ स्कभसर्जन-सञ्ज्ञा पुं० [स० स्कम्भसर्जन] दे० 'स्कभसर्जनी' । खोचता हो । जसे, बैल, घोडा आदि । स्कभसर्जनी--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्कम्भसर्जनी] बैलगाडी के जुए की कील स्कधवाहक'-वि० [स० स्कन्धवाहक कधे पर बोझ उठानेवाला। जो या खूटी जिससे बैल इधर उधर नही हो सकते । कधे पर वोझ उठाता हो। स्कन्न-वि० [सं०] १ गिरा हुआ। पतित । च्युत । स्खलित । (जैसे, स्कधवाहक'-~-सज्ञा पु० ८० 'स्कधवाह। वीर्य)। २ गया हुआ । गत । ३ सूखा । शुष्क । ४ बूंद बूंद स्कधवाह्य-वि० [सं० स्कन्धवाह्य] कधे पर ढोने योग्य (को०] । करके टपका हुा । रिसा हुआ (को०)। ५ छिडका हुआ। स्कधशाखा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्कन्धशाखा] किसी वृक्ष की मुख्य शाखा। फैलाया हुआ (को०)। पेड की प्रमुख डाल । यौ०-स्कन्नभाग = जिसका अश नष्ट हो गया हो। स्कधशिर--सज्ञा पु० [स० स्कन्धशिरस्] कधे की हड्डी । मोढा। स्कन्ध-वि० [स०] १ टेक दिया हुअा। सहारा दिया हुआ। २ स्कधशृग - सज्ञा पुं० [स० स्कन्धशृङ्ग] भैसा। महिप । रोका हुआ (को०)। स्कधा--सज्ञा ली० [म० स्कन्धा] १ डाल । शाखा । २ लता । वेल । स्कभन-सज्ञा पु० [स०] शब्द । आवाज । स्कधाक्ष-सज्ञा पुं० [स० स्कन्धाक्ष) कार्तिकेय के अनुचर देवतागो का स्काद'--वि० [सं० स्कान्द] [वि॰ स्त्री० स्कादी] १ स्कद सबधी। स्कद का । २ शिव सवधी (को०)। स्कधाग्नि-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० स्कन्धाग्नि] मोटे लक्कडो या वृक्ष के तने स्काद-पुं० स्कद पुराण। की आग। स्कादायन-सज्ञा पु० [स० स्कान्दायन] दे० 'स्कादायन्य । स्कधानल-सज्ञा पु० [स० स्कन्धानल] दे० 'स्कधाग्नि' । स्कादायन्य-सज्ञा पु० [स० स्कान्दायन्य] स्कद के गोत्र मे उत्पन्न स्कधावार--सचा पु० [स० स्कन्धावार १ राजा का डेरा या शिविर । व्यक्ति। कपू । २ छावनी। सेनानिवास । उ०--पिता से स्कधावार मे जाने की आज्ञा मांगी।- दाधर सिंह (शब्द॰) । ३ राजा स्कादी-सञ्ज्ञा पु० [स० स्कान्दिन्] स्कद के शिष्य या उनकी शाखा का निवासस्थान । राजवानी। (हेम) । ४ सेना । फौज । के अनुयायी। ५ वह स्थान जहाँ बहुत से व्यापारी या यात्री ग्रादि डेरा स्काउट-सज्ञा पु० [अ०] १ समाजसेवा के उद्देश्य से विद्यार्थियो का डालकर ठहरे हो। एक प्रकार का सैनिक ढग का सघटन। वालचर । दे० 'वाय- एक गए।