पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२१६

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हीर ५५२८ हीरादोषी हीर'. -सज्ञा पुं० [सं०] १ हीरा नामक रत्न । २ वज्र । विजली। ३ जाते है । यह रत्न सवसे बहुमूल्य माना जाता है और भिन्न ३ सर्प । सॉप । ४ सिंह । ५ मोती की माला । ६ शिव का भिन्न रगो की आभा या छाया देता है । रत्नपरीक्षा की पुस्तको नाम । ७ नेपधचरित महाकाव्य के रचयिता श्रीहर्ष के पिता का मे हीरे की पांच छायाएँ कही गई है-लाल, पीली, काली, नाम (को०) । छप्पय के ६२ वें भेद का नाम । एक वर्ण हरी और श्वेत । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण द्वारा वृत्त जिमके प्रत्येक चरण मे भगण, सगण, नगण, जगण, भी इसका भेद किया गया है। श्वेत रग का विप्र, रवितम रग का नगरण और रगण होते हैं । १० एक मात्रिक छद जिसमे ६-६ क्षत्रिय, पीतवर्ण का वैश्य और असित अर्थात् नीला, हरा या और ११ के विराम से २३ मात्राएँ होती है । काले रंग का हीरा शूद्र वण का माना गया है। व्यवहार के हीर' -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हीरा] १ किसी वस्तु के भीतर का सार भाग । लिये हीरा कई रूपो मे काटा जाता है जिससे प्रकाश छोडने गूदा या सत । सार । जैसे,—जौ का हीर, गेहूँ का हीर, सीफ के पहलो के बढ जाने से इसकी प्राभा वढ जाती है। इसके का हीर । २ लकडी के भीतर का सार माग जो छाल के नीचे पहल काटने मे भी वडी तारीफ है। बहुत अच्छे हीरे को 'पहले होता है । जैसे,--इमके हीर की लकडी मजबूत होती हे । ३ पानी' का हीरा कहते हैं । रत्नपरीक्षा मे हीरे के पाँच गुण शरीर की सार वस्तु । धातु । वीर्य । जैसे,—उसकी देह का कहे गए ह-अठपहल छकोना होना, लघु, उज्वल और हीर तो निकल गया। ४ शक्ति । बल । नुकीला होना । मुख्य दोप है-मलकोप । यदि वीच मे मल हीर-सज्ञा पुं॰ [देश०] एक प्रकार की लत।। (मैल) दिखाई दे तो वह हीरा बहुत ही अशुभ कहा गया है । विशेप-यह लता प्राय सारे भारत में पाई जाती है और अाजकल हीरा दक्षिण अफ्रिका मे बहुत पाया जाता है। भारतवर्ष की खानें अब प्राय खाली हो गई है। 'पन्ना' आदि इसकी टहनियो और पत्तियो पर भूरे रंग के रोएँ होते है। यह चैत वैशाख मे फूलती है । इसकी कुछ स्थानो मे अब भी थोडा बहुत हीरा निकलता है। किसी जड और पत्तियो का व्यवहार प्रोपधि रूप मे होता है। इसके समय दक्षिण भारत हीरे के लिये प्रसिद्ध था । जगत्प्रसिद्ध पके फलो के रस से बैंगनी रग की स्याही बनती है जो बहुत 'कोहेनूर' नाम का हीरा गोलकुडे की खान का कहा टिकाऊ होती है। जाता है । हीरक--मज्ञा पुं॰ [स०] १ हीरा नामक रत्न । उ०- नव उज्ज्वल यौ०-हीरा आदमी या व्यक्ति = स्वभाव, विचार और व्यवहार जलधार, हार हीरक सी सोहति ।-भारतेदु ग्र०, भा०१, आदि की दृष्टि से बहुत ही अच्छा व्यक्ति । हीरा कट = (१) पृ० २८२ । २ हीर नामक एक छद । दे० 'हीर' । हीरे की तरह कटा हुअा। (२) कई पहलो का कटाव । हीरकजयती--मज्ञा स्त्री० [म० हीरक + जयन्ती] १ किसी शासन या डायमड कट । डवल काट । हीरा कसीस। हीरा दोषी। किसी व्यक्ति के जीवन के साठवे वर्ष का उत्सव या समारोह । हीरानखी। हीरामन । पप्ठिपूर्ति उत्सव २ किसी सस्था, समाज या सभा की मुहा०- हीरा खाना या हीरे की कनी चाटना = हीरे का चूर स्थापना के साठ वर्ष पर होनेवाला समारोह । डायमड जुविली। खाकर आत्महत्या करना । हीरकहार--सज्ञा पुं॰ [स०] हीरे की माला । हीरे का हार । २ बहुत ही अच्छा प्रादमी । नररत्न। (लाक्षणिक)। जैसे- हीरद-सा पु० [सं० हृदय, प्रा० हिअय, अप० हिअड] दे० 'हृदय' । वह हीरा आदमी था। ३ बहुत उत्तम वस्तु। वहुत वढिया उ०-हीरद कमल माही तेरो ध्यान करती हूँ।--दक्खिनी०, या चोखी चीज । (लाक्षणिक)। ४ दुवे भेडे की एक जाति । ५ रुद्राक्ष या इसी प्रकार का और कोई एक अकेला पृ० १२६ । मनका जो प्राय साधु लोग गले मे पहनते हैं । हीराग-सज्ञा स्त्री० [म० हीराग ] इद्र का वज्र [को०] । विकार जो गधक और प्राक्सिजन के रासायनिक योग से होता तिलचट्टा । ३ काश्मरी । गभारी । ४ पिपीलिका [को०] । है और जो देखने मे कुछ हरापन लिए मटमैले रग का होता है । हीरा--सज्ञा पुं० [म० हीरक] १ एक रत्न या बहुमूल्य पत्थर जो विशेष-लोहे को गधक के तेजाब मे गलाने से हीरा कसीस अपनी चमक और कडाई के लिये प्रसिद्ध है । वज्रमणि । निकल सकता है, पर इस क्रिया मे लागत अधिक पडती है। हीरक । हीर। खान के मैले लोहे को हवा और सीड मे छोड देने से भी विशेप-याधुनिक रसायन शास्त्र के अनुसार हीरा कारवन या कसीस निकलता है। हवा और सीड के प्रभाव से इससे कोयले का ही विशेष रूप है जो प्राकृतिक दशा में पाया जाता एक प्रकार का रस निकलता है जिसमे कसीस और गधक का है। यह ससार के सब पदार्थों से कडा होता है, इसी से कवि तेजाव दोनो रहते हैं । इसमे लौहचूर का थोडा योग कर देने कठोरता के उदाहरण के लिये इसका नाम लाया करते है जैसा से सवका हीरा कसीस हो जाता है। इसका व्यवहार स्याही, कि तुलसीदास जी ने कहा है-'सिरिस सुमन किमि वेधै रग आदि बनाने मे तथा औषध के लिये भी होता है। हीरा । यह अधिकतर तो सफेद अर्थात् विना रग का होता है, हीरादोषी-सज्ञा स्त्री० [हिं० हीरा + दोष ] विजयसाल का गोद जो पर पीले, हरे, नीले और कभी कभी काले हीरे भी मिल दवा के काम मे पाता है । हीरा'-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ लक्ष्मी का एक नाम । २ तैलावुका। हीरा कसीस--सज्ञा पुं० हि० हीर+ स० कसीस] । लोहे का वह 1