पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२१७

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खाते है। हीरानखी ५५२९ हुंकृति हीरानखी -सज्ञा पुं० [हि० हीरा + नख ] एक प्रकार का वढिया हीस'--सञ्ज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार की कैंटीली लता । धान जो अगहन मे तैयार होता है और जिसका चावल विशेप--यह लता प्राय मारे भारत मे बहुत बडे बडे पेडो पर बहुत महीन तथा सफेद होता है। चढी हुई पाई जाती है । यह गरमी मे फूलती और बरसात मे हीराना-क्रि० स० [हिं० हिलाना (=घुसाना) ] खाद के लिये फलती है। इसकी पत्तियाँ और टहनियाँ हाथी वडे चाव से खेत मे गाय, भेंड, बकरी आदि रखना। हीरामन--सज्ञा पु० [हिं० हीरा+ स० मणि या हिरण्मय] सूए या तोते हीस २--सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० या स० ईर्ष्या ] १ दे० 'हिर्स' । २ की एक कल्पित जाति । ईया । स्पर्धा । डाह । उ०-एक सीस का मानवा, करता विशेप--इस कल्पित तोते का रग सोने का सा माना जाता है। बहुतक हीस । लकापति रावन गया, वीस भुजा दस सीस । कवीर सा०, पृ० ११॥ इस प्रकार के तोते का वर्णन कहानियो मे और पृथ्वीराज रासो, पदमावत, प्रेमाख्यान प्रादि काव्यग्रयो मे बहुत प्राता है। हीसका -सज्ञा स्त्री० [ म० ईर्ष्या ] डाह । दे० 'हिमिप' । हील' १-मज्ञा पु० [ स० .] वीर्य । शुक्र । ही ही -सज्ञा स्रो० [अनु॰] ही ही शब्द करके हँसने की क्रिया । हील- तुच्छतापूर्वक हँसना । -सक्षा पुं० [देश] भारत के पश्चिमी किनारे पर और सिहल मे पाया जानेवाला एक सदावहार पेड । यौ०-ही ही ठी ठी करना (१) व्यर्थ और तुच्छतापूर्वक हँसना । २ हँसी मजाक करना । उ०-चारो ओर झोटा फैलाकर शेप-इस पेड से एक प्रकार का लसीला गोद निकलता है। डाकना कूदना वद कर और उससे-उससे-समझी ? ही ही यह गर्नेद बाहर भेजा जाता है। इस पेड को 'अरदल' और ठी ठी रोक ।-शराबी, पृ० १२ । 'गोरक' भी कहते है। हीला --सज्ञा स्त्री० [हिं० गीला] पनाले प्रादि का गदा कीचड़। हु---अव्य० [सं० उप, प्रा० उव] एक अतिरेकबोधक शब्द । अगि । भी । दे० 'हूँ। गलीज। हील --सञ्ज्ञा पुं० खौफ । भय । डर। उ०-धूत वजारी धरम री हु'- अव्य० [स० हुम्] १ एक शब्द जो किसी बात को मुननेवाला यह हिए न माने हील । मन चलाय खॉपडा मही काढं नको सूचित करने के लिये बोलता है कि हम सुन रहे है । २ कुचील ।-बांकी० ग्र०, भा० २, पृ० ६७ । स्वीकृतिसूचक या स्मृतिसूचक शब्द । हाँ । ३ सदेह । शका हील-सच्चा स्त्री० [फा०] छोटी इलायची । एला (को०] । (को०)। ४ अाक्रोण । क्रोध (को०)। ५ विरक्ति । विरति (को०)। ६ भर्त्सना । व्यग्य (को०)। ७ मन्न, तन आदि के अत मे हील ---सज्ञा पुं० [अ०] १ पैर के पजे का पिछला भाग । एंडी। प्रयुक्त शब्द । जैसे-ॐ कवचाय हुम् अादि मे भी इस शब्द के पाणि । २ पशुओ का खुर (को०] । प्रयोग मिलते है। हीलना'--सज्ञा स्त्री० [ स०] क्षति । अपकृति । हानि (को०] । हुकना-कि० अ० [सं० हुकरण] दे॰ 'हुकारना' । हीलनाg:--क्रि० अ० [ स० हल्लन या देश० ] दे० 'हिलना' । हुकरना--क्रि० अ० [स० हुङ्करण] दे० 'हुकारना' । हीला'-- -सज्ञा पुं० [अ० हीलह, ] १ किसी बात के लिये गढा हुआ हुकार-सज्ञा पु० [सं० हुड्वार] १ ललकार । दपट । डांटने का शब्द । कारण। वहाना । मिस । २ घोर शब्द । गर्जन । गरज । ३ चीत्कार । चिग्घाड । क्रि० प्र०—करना ।-ढूंढना ।--होना । चिल्लाहट । ४ धनुप की प्रत्यचा के टकार की ध्वनि (को०) । यौo-हीलागर, हीलावाज, हीलासाज = चालवाज । वहानेवाज । ५ शूकर के गुर्राने का शब्द (को०)। धोखेबाज । हीलागरी, हीलाबाजी, हीलासाजी = चालबाजी । धोखेवाजी। हुकारना-क्रि० अ० [स० हुडकार + हिं० ना (प्रत्य॰)] १ गर्व मे हु शब्द का उच्चारण करना। ललकारना। दपटना। डांटना । २ कामधधा । रोजगार । ३ किसी बात की सिद्धि के लिये २ घोर शब्द करना। गर्जन करना। गर्जना । गरजना। ३ निकाला हुआ मार्ग । निमित्त । द्वारा । वसीला । व्याज । चिग्धाडना । चिल्लाना। जैसे,--इसी हीले से उसे चार पैसे मिल जायेंगे । उ०-कोई चाहे हीला मिलने कतै । वजुज वास्ता मिलना कुछ खूब नई । हुकारनिg-. --सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० हुडकार] हुकारने का कार्य । हुटकना। -दक्खिनी० पृ० २१३ । उ.---अति गति पग डारनि हुकारनि । सीचति धरनि दूध की मुहा०--हीला निकलना = रास्ता निकलना । ढग निकलना । धारनि ।-नद० ग्र०, पृ० २६६ । हीला होना = (१) वसीला होना । जरिया होना। (२) हुकृत-सज्ञा पुं० [स० हुडकृत] १ गाय आदि के भाने का शब्द । २ कोई काम धधा मिलना । विजली की गडगडाहट । ३ जगली सूअर की गुर्राहट या गर्जन । हीला --सज्ञा पुं० [हिं० गीला कोचड । ४ ललकार । दपट । हुकार (को०] | होलाज-सज्ञा पुं० [अ० ] जन्मकुडली । जन्मपत्री (को०) । हुकृति--सज्ञा स्त्री० [स० हुदकृति] हुकार का शब्द । उ०--छू मत तू होलुक--सञ्ज्ञा पुं० [स० ] इक्षुसार से निर्मित एक प्रकार का युद्ध गान, हुकृति, वह प्रलय तान । बज न उठे जजीरें, हथकड़ियाँ भासव [को० । छू न प्राण!--हिम० त०, पृ०६१ । -