पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२२४

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हुमायूँ हुलसाना HO म० हुमायूं :--सज्ञा पुं० मुगल सम्राट अकबर का पिता जो वावर का बेटा था। लाज, कित धौं हेरानी हुरिहारन के बीच मे ।-पद्माकर हुमुकना-क्रि० स० [अनु॰] दे॰ 'हुमकना' । उ.--अचल से मुंह निकाल ग्र०, पृ० ३१६ । (य) दोनो ही हुरिहार बड़े सुकुमार निकालकर माता के स्नेह प्लावित मुख की ओर देखता है, हुमुकता है।--पोद्दार अभि० प्र०, ० १८६ । है और मुसकिराता है।--रगभूमि, भा० २, पृ० ४५७ । हुएटक --सञ्ज्ञा पुं० [ ] हाथी का अकुश । हमेल- 1-सज्ञा स्रो॰ [प्र. हमायल] १ अशफियो या रुपयो को गूथकर बनी हुरुमयी -सचा त्री० [ ] एक प्रकार का नृत्य । उ०-उलया, हुई एक प्रकार की माला जिसे स्त्रियाँ पहनती हैं । उ०---फूलन टेकी, पालमस, पिंड । पलटि हुरुमयी निशक चिंड।- की दुलरी, हुमेल हार फूलन के, फूलन की चपमाल, फूलन गजरा केशव (शब्द॰) । री ।-नद० ग्र०, पृ० ३८०१ २ घोडो के गले का एक गहना । हुर्छन-सञ्ज्ञा पुं० सं०] विश्वासघातकता । धोखेबाजी [को०) । हुम्मा-सशा पुं० [हि० उमगो लहरो का उठना । वान । (लश०)। हुर्रा--सञ्ज्ञा पुं० [अ०] एक प्रकार की हपध्वनि । हुरक-सज्ञा पु० [म. हुडुक] हुडुक नाम का एक वाद्य । उ०--- हुल'--सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का दोधारा छुरा । ढाढी और ढाढिनि गावै ठाढे हुरकै बजावे, हरपि असीस देत हुल-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० शूल ] पोडा । वेदना । कसक । उ०-उर मस्तक नव ई के।--सूर, १०॥३१ । लीने अति चटपटी सुनि मुरली धुनि धाइ। हो हुलसी निकसी हुरकरणीgt-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] वेश्या । रडी । उ०--सावल अरिणयाँ सु तो गी हुल सी हिय लाइ ।--पद्माकर ग्र०, पृ० ७५ । साँकही, चोरॅग वणिया चेत । भणियाँ सू भेलप नही, हुरक- हुल-सज्ञा स्त्री॰ [ अनु० या ? ] भीतर से बाहर की ओर आने का वेग। णियाँ तूं हेत ।-वॉकी० ग्र०, भा॰ २, पृ० १ । हुरकिनी-सज्ञा नी० [देश॰] दे॰ 'हुरकरणी' । हुलक-सज्ञा स्त्री॰ [ अनुध्व० ] वेग । गति । हूल । उ० - हुलक हुलक्का से सुतुक्का से तरारिन मे ललित ललाम जे लगाम हुरदग-सञ्ज्ञा पु० [अनु॰ हुड, हुर + हिं० दग] दे० 'हुडदग' । लेत लक्का से ।-पद्माकर ग्र०, पृ० ३०० । हुरदगई:-- --मचा स्त्री० [हिं० हुरदग) हुरदगी होने का भाव या क्रिया। हुलकना-क्रि० अ० [अनु० हुलहुल ] के करना । वमन करना हुरदगा--सज्ञा वि० पुं०, [ अनु० ] दे० 'हुडदगा'। हुलकी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० हुलकना ] १ के। वमन । उलटी । हुरदग-वि० [हिं०,हुइदगा] दे॰ 'हुडदगी'। २ हैजे की बीमारी। हुरमत--सज्ञा स्त्री० [अ०] १ सतीत्व । अस्मत । २ इज्जत । मान । मर्यादा । उ०--ऐसी होरी खेल, जामे हुलक्का-सज्ञा स्त्री॰ [स० उल्का ] आकाश से रात के समय तीव्र वेग से गिरनेवाला ज्योतिपिंड। विशेष दे० 'उल्का' । हुरमत लाज रहो री। सील सिँगार करो मोर सजनी धीरज मॉग भरो री।- कवीर श०, भा०४, पृ. २१ । उ०--हुलक हुलक्का से सुतक्का से तरारिन मे ललित ललाम जे लगाम लेत लक्का से ।- पद्माकर ग्र०, पृ० ३०६ । मुहा०-हुरमत उतारना = किसी की मान प्रतिष्ठा को समाप्त हुलना--क्रि० अ० [हिं० हूलना] लाठी, भाले आदि को जोर से ठेलना। करना। वेइज्जत करना । हुरमत लेना = दे० 'हुरमत उतारना' । रेलना। पेलना । हुरमति- --सज्ञा स्त्री० [अ० हुरमत ] दे॰ 'हुरमत' । हुलमातृका-सज्ञा स्त्री॰ [स० ] बडी दुधारी कटार (को०) । हुरसा--सज्ञा पुं॰ [देश० ] वह गोलाकार पत्थर जिसपर चदन हुलराना-क्रि० स० [अनु॰] दे॰ 'हलराना' । उ०-यसोदा मइया रगडते हैं। दे० 'होरसा' । उ०--नाम तेरो ग्रासन, नाम लाल को झुलावे । पाछे वार कान्ह को हुलरावे ।-अकबरी०, तेरो हुरसा, नाम तेरो केसर ले छिडका रे।-सत रवि०, पृ०४८। पृ० १२६ । हुलसना'--क्रि० अ० [हिं० हुलास + ना (प्रत्य०1 ] । १ उल्लास हुरहुर--सज्ञा पुं० [देश० १] एक वरसाती पौवा । अर्कपुष्पिका । विशेष मे होना । आनद से फूलना। उमगना । खुशी से भरना । दे० 'हुलहुल'। उ०--उर लीने अति चटपटी सुनि मुरली धुनि धाइ । हौं हुलसी निकसी सु तो गौ हुल सी हिय लाइ ।--पद्माकर ग्र०, हुरहुरिया-सज्ञा स्त्री० [अनु० हुलहुली] एक प्रकार की चिडिया । हुरिंजक--सञ्ज्ञा पु० [ स० हुरिजक ] निपाद और कवरी स्त्री से पृ० ७५ । २ उभरना । उठना । ३ उमडना । बढना । उ०-सभु प्रसाद सुमति हिय हुलसी। रामचरितमानस कवि उत्पन्न एक सकर जाति । तुलसी । तुलसी (शब्द॰) । ४ शोभायमान होना । उल्लसित हुरिहाई-वि०, सज्ञा स्त्री० [हिं० होली + हाई] होरी खेलनेवाली। होना । सुशोभित होना । उ०-हिये हुलसै वनमाल सुहाई। उ०-रूप प्रलवेली सु नवेली एरी तेरी आँखें, ताकि छाकि हुलसनाg:-क्रि० स० १ आनदित करना। प्रफुल्लित करना । मारे हुरिहाई न कहूँ छिकै ।--धनानद, पृ० ४५ । २ उभारना । उठाना। ३ अभिवधन करना । बढाना। हुरिहार--वि०, संज्ञा पुं॰ [ हिं० होली + हार ( = वाला) ] होली हुलसाना-क्रि० स० [हिं० हुलसना ] उल्लसित करना। प्रानद- खेलनेवाला। उ०- --(क) हाय इन ननन ते निकरि हमारी पूर्ण करना । हर्ष की उमग उत्पन्न करना। प्रावरू। उ.-पवन