पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हृदयज्वर ५५४४ हृदयहारी DO HO हृदयज्वर-सज्ञा पुं० [ स० ] हृदय की जलन । मनोवेदना [को०] । हृदयविदारक--वि० [सं०] १ अत्यत शोक उत्पन्न करनेवाला । हृदयदाह-सज्ञा पु० [ स०] मन को वेदना। हृदयगत दाह या २ अत्यत करुणा या दया उत्पन्न करनेवाला । जैसे,-- जलन [को०] । हदयविदारक घटना । हृदयदाही-वि० [ स० हृदयदाहिन् ] दिल को जलाने या पीडित हृदयविध्---वि० [ ] दे० 'हृदयवेधी'। करनेवाला कि०] । हृदयविरोध -सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] हृदय की पीडा या उपग्लव [को०] । हृदयदीप, हृदयदीपक-पना पुं० [म० } बोपदेव द्वारा रचित श्रीपध हृदयवृत्ति--मझा ग्पी० [ म० ] हृदय की प्रकृति या प्रवृत्ति। मन की शास्त्र सवधी एक अभिधान ग्रय । सद्भावना या माधशीलता [को०)। हृदयदेश [-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] हृदय का स्थान या क्षेत्र । हृदय (को०] । हदयवेधी--वि० [ सं० हृदयवेधिन् ] [ वि० म्नी हृदयविनी] १ मन हृदयदौर्वल्य सज्ञा पुं० [सं०] हृदय की दुर्बलता । मन की कमजोरी। का अत्यत मोहित करनेवाला । जैसे,-हृदयवेधी कटाक्ष । कायरता। भीम्ता। २ अत्यत शोक उत्पन्न करनेवाला । ३ बहुत अप्रिय या बुरा हृदयद्रव-सज्ञा पुं० [ म० ] हृदय का तीन गति से धडकना । तेजी लगनेवाला । प्रत्यत कटु । जैमे,-हृदयवेधी वचन । से दिल की धडकन। हृदयव्यया-सज्ञा मी० [म०] हृदय की पीडा। मन को व्यथा [को०] । हृदयनिकेत-सच्चा पु० [ स० ] वह जिसका निवासस्थान हृदय है। मनसिज। कामदेव । उ०--सकल कला.. करि कोटि विधि हृदयव्याधि [-सज्ञा स्त्री० [ म० ] हृदय का रोग (को०] । हारेउ सेन समेत । चली न प्रचल समाधि सिव, कोपेउ हृदयशल्य-सज्ञा पुं० [ ] १ हृदय का शूल। मन का कांटा। हृदयनिकेत ।-तुलसी (शब्द०) २ हृत्प्रदेश का घाव, चोट या जरम [फो०] । हृदयनिकेतन-सज्ञा पुं० [ स० ] कामदेव [को०) । हृदयशून्य--वि० [सं०] १ जो सहदय न हो । अरसिक । २ र । हृदयपीडा-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] मनोवेदना। हृत्पीडा [को०] । निष्ठर । हृदयहीन [को०)। हृदयपुडरीक- -सज्ञा पुं॰ [ स० हृदयपुण्डरीक ] पुडरीक सदृश हृदय । हृदयशैथिल्य--सज्ञा पुं० [सं०] हृदय की शिथिलता या विषण्णता । कमल सदृश हृदय (को०] । हृदयदौर्वल्य [को०)। हृदयपुरुष-सज्ञा पुं० [सं० ] हृदय की धडकन या म्पदन । हृदयशोषण-वि० [स०] हृदय या मन का शोपण करनेवाला [फो०] । हृदयप्रमाथी-वि० [स० हृदयप्रमाथिन्] [वि॰ स्त्री० हृदयप्रमाथिनी] हृदयसघट्ट--सज्ञा पुं० [ स० हृदयसङघट्ट ] हदय की गति का रक १ मन को क्षुब्ध या चचल करनेवाला । २ मन मोहनेवाला। जाना । हृदय की जडता या अत्यत शक्तिहीनता । दिल एक- हृदयप्रस्तर- वि० [स० ] पत्थर सदृश हृदयवाला । कठोरहृदय । वारगी वेकाम हो जाना। क्रूरहृदय । निष्ठुर । सगदिल (को०] । हृदयससर्ग--सञ्ज्ञा पुं० [म.] मन का मिलना । हृदय का मेल [को०) । हृदयप्रिय-वि० [सं०] १ स्वादयुक्त । स्वादिष्ट । सुस्वादु । २ हृदय हृदयसमित-वि० [स० हृदयसम्मित] १ वह जो मन को इष्ट या को प्रिय लगनेवाला । जो मन को प्रिय हो (को०] । प्रिय हो । २ हृदय अर्थात् वक्ष के वरावर ऊंचा (को०] । हृदयबधन-वि० [ सं० हृदयवन्धन ] हृदय को बाँधने या मुग्ध हृदयस्थ-वि० [स०] १ हृदय में स्थित या रहनेवाला। उ०-- करनेवाला (को०] । कही कोई सौदर्यप्रेमी एकात भाव से उम महाशोक के सौंदर्य हृदयमथन- सज्ञा पुं० [सं० हृदय + मन्थन ] भावो का पालोडन को अपलक तृपित नेनो से हृदयस्थ किए जा रहे थे।-ज्ञान०, विलोडन । भावो का पारस्परिक सघर्प । उ०-पत जी का पृ० १६७ । २ जो शरीर मे हो । शरीर में स्थित । शरीरस्थ । हृदयमथन एक नवीन आशावाद मे परिणत हो गया।- जैसे,—कीटाणु (को०)। युगात, पृ० (छ)। हृदयरज्जु-सज्ञा पु० [स० .] वह रेखा जो देशातर निकालने के हृदयस्थलो-सा स्त्री० [ मे० ] | 'हृदयस्थान' (को०] । लिये कल्पित की जाती है। विशेप दे० 'मध्यरेखा'। हृदयस्थान--सज्ञा पु. [ सं० ] छाती । वक्ष स्थल [को०] । हृदयरोग -सचा पुं० [सं०] हृदयसवधी रोग । दे० 'हृद्रोग' [को०। हृदयस्पृक्-वि० [ स० ] मन को छूने या स्पश करनेवाला । दे० हृदयलेख-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १. औत्सुक्य । चिंता । व्यग्रता । 'हृदयस्पर्शी' । २ बोध । ज्ञान (को०] 1 हृदयस्पर्शी-वि० [सं० हृदयस्पर्शिन् ] [वि॰ स्त्री० हृदयस्पर्शिणी ] हृदयलेख्य--वि० [ ] हर्प या आनद देनेवाला (को०] । १ हृदय पर प्रभाव डालनेवाला। दिल पर असर करनेवाला । हृदयवल्लभ-सज्ञा ० [ स०] प्रेमपान । प्रियतय । २ चित्त को द्रवीभूत करनेवाला । जिससे मन मे दया या हृदयवान्-वि॰ [ स० हृदयवत् ] [ वि० स्त्री० हृदयवती ] १ जिसके करुणा हो। मन मे प्रेम, करुणा आदि कोमल भाव उत्पन्न हो । सहृदय । हृदयहारी-वि० [सं० हृदयहारिन् ] [वि॰ स्त्री० हृदयहारिणी ] २. भावुक । रसिक। मन मोहनेवाला । जी को लुभानेवाला। BO ।