पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३३

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मैं मधु 1 - हृदयहीन ५५४५ हृद्घटन हृदयहीन-वि० [सं०] १ कठोर हृदयवाला । २ क्रूर । निष्ठुर। हृदयोन्मादिनी'. १-वि० सी० [सं०] १ हृदय को उन्मत्त या पागल जो सहृदय न हो । अरमिक। उ०--हृदयहीन कह ले मलीन करनेवाली । २ मन को मोहनेवाली । वारिधि का मुग्ध मीन । अपवर्ग व्यर्थ केवल निसर्ग, हृदयोन्मादिनी'-सञ्ज्ञा ली सगीत मे एक श्रुति । सगीत, सुरा, सुदरी स्वर्ग।--मधु०, पृ० ३३ । हृदय्य-वि० [स०] जो हृदय को अत्यत प्रिय हो (को०] । हृदयाकाश-स पृ० [सं० हृदय + अाकाश] हृदय का विस्तारक्षेत्र । हृदा+--सञ्ज्ञा पु० [म० हृदय, पृ० हिं• हिरदा] दे॰ 'हृदय' । उ०- हृदयरूपी अाकाश । सपूर्ण हृदय [को०] । गुरगम मत्र जाप करु अजपा हृदा पुस्तक कीजै ।-रामानद०, हृदयात्मा--मज्ञा पुं० [सं० हृदयात्मन्] कक या क्रौच नागक पक्षी |को०] । पृ० २७ । हृदयाधिकारी-वि० [स० हृदय + अधिकारिन्] हृदय पर शासन करने- हृदामय-सज्ञा पुं॰ [स०] हृदय का रोग । हृद्रोग (को॰] । वाला। प्रेमान। अतिशय प्रिय । उ०--हृदयाधिकारी रघुकुलमणि रघुनाथ के । -अपरा, पृ० ८० । हृदावर्त -सज्ञा ० [स०] घोडे की छाती पर की भी री जिसे घोडे का बहुन बडा दोष या ऐव माना जाता हे [को०] । हृदयानुग-वि० [सं०] सतोपकर । तुष्टिकारक [को०] । हृदयामय-सञ्ज्ञा पुं० [स०] हृदय का रोग । हृद्रोग [को॰] । हृदि'-सन्ना पु० [सं० हृद् का अधिकरण रूप] हृदय मे । उ०-द्वद्व हृदयारुढ-वि० [स० हृदय + प्रारुढ] हृदय पर चढा हुा । हृदयस्थ । विपति भयफद विभजय । हृदि वसि राम काममद गजय ।- उ०-सो याके व्रज को स्वरुप हृदयारूढ ह रह्यो ।-दो सौ तुलसी (शब्द॰) । वावन०, भा०१, पृ० २२६ । हृदि' -सज्ञा पुं० [स० ] एक यादवकुमार का नाम [को०] । हृदयालकार-सज्ञा पुं० [सं० हदय + अलङ्कार] हृदय का आभूपण । हृदिशय-वि० [स०] हृदय मे शयन करने अथवा रहनेवाला [को॰] । हृदय की शोभा । उ.-यह तृष्ण ही कौस्तुभमणि वन हृदिस्थ-वि० [ स० ] दे० 'हृदयस्थ'। मुझे दिखायेगी वह द्वारवन उसका हृदयाल कार |-वीणा, हृदिस्पृक्--वि० [ सं० हृदिस्पृश् ] हृदय को स्पर्श करनेवाला । हृदय- पृ०२६ । स्पर्शी । मनोहर (को०] । हृदयालु-वि० [सं०] १ सहृदय । रसिक । भावुक । २ अच्छे स्वभाव हृदुत्क्लेद, हृदुत्क्लेश--सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ हृदय का रोग। २ वमन । के। का । सुशील। हृदै--सञ्ज्ञा पुं॰ [स० हृदय] दे० 'हृदय' । उ०- अनोखी तुही हृदयावर्जक-वि० [म० हृदय + आवर्जक] हृदय को लुभानेवाला । मन नई एक नारि । पावस रितु मै मान करै कोउ लखि तो हृदै को खीचनेवाला । आह्लादक (को०] । विचारि ।--भारतेदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ५११ । हृदयाविध्-वि० [सं०] हृदयवेधक । मर्मतुद [को०] । हृदौल -सज्ञा पुं० [स० हृदय] दे० 'हृदय' । उ०-दुखी दीन प्राणी हृदयासन-सञ्ज्ञा पुं० [म० हृदय+ग्रासन] हृदयरूपी या हृदय का कही ब्रह्मवाणी । हृदौ प्रेम भीजै अभैदान दीजै ।--सु दर ग्र०, आसन । उ०-बैठे हृदयासन स्वतन्त्रमन। किया समाहित रूप भा० १, पृ० १२ । विचिंतन ।-अर्चना, पृ०५ । हृद्ग-वि० [सं० ] हृदय तक पहुँचनेवाला । जो अतस्तल तक हृदयिक-वि० [स०] सहृदय । भावुक । हृदयालु (को०] । पहुँचा हो । जैसे--आचमन का जल [को॰] । हृदयी-वि०[स० हृदयिनन्] १ हृदयवाला । सहृदय। २ सुशील [को॰] । हृद्गत'-वि० [सं०] १ हृदय का । मन का। प्रातरिक । हृदयेश-सज्ञा पुं० [स०] [स्त्री० हृदयेशा] प्रेमपान । प्यारा । प्रियतम । भीतरी । जैसे,-हृद् गत भाव । २ मन मे बैठा या जमा २ पति । स्वामी। भर्ता। हुआ । समझ या ध्यान मे आया हुआ। हृदयेशा–मज्ञा स्त्री॰ [स०] १ प्रियतमा। प्राणेश्वरी । २ पत्नी [को॰] । क्रि० प्र०- करना।—होना । हृदयेश्वर-सज्ञा पु० [स०] [मी हृदयेश्वरी] दे॰ 'हृदयेश' । ३ ईप्सित । मनचाहा । ४ प्रिय । रुचिकर । ५ हृदयसबधी। हृदयेश्वरी -सज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'हृदयेशा' । हृदय का [को०] । हृदयोद्गार-सज्ञा पुं० [सं० हृदय + उद्गार] मनोभाव । कामना । हृद्गत -सज्ञा पुं० अभिप्राय । मतलब । निष्कर्ष [को०] । इच्छा। उ०-सुख दुख की प्रियकथा स्वप्न, वदी थे ] हृदय का रोग। हृद्रोग (को०] । हृदयोद गार । एक देश था सही एक था क्या वाणी व्यापार । हृद्गम - वि० [ सं०] हृदय मे गमन या प्रवेश करनेवाला (को०] । -युग०, पृ० ६४ 1 -सज्ञा पुं० सं०] एक पर्वत का नाम । हृदयोद्वेष्टन-सच्चा पुं० [सं०] हृदय या मन का सकोच । हृदय का हृद्गोल- उद्वेप्टन या वधन [को०] । हृद्ग्रंथ-सज्ञा पुं० [सं० हृद्ग्रन्थ] हृदय का ग्रथ । हृदयव्रण [को॰] । हृदयोन्मादकर-वि० [स०] हृदय को उन्मत्त या उन्माद से युक्त हृद्ग्रह-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] हृदय की वेदना । कलेजे का ऐंठना [को०] । करनेवाला [को॰] । हृद्घटन - सज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का हृदयरोग [को०] । । co हृद्गद् - वि० [