पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३५

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हृष्टतुष्ट ५५४७ हेचकस हृष्टतुष्ट-वि० [ सं० ] प्रसन्न और सतुष्ट । जो हर्षित और सतोप- हे वर@--संज्ञा पुं० [सं० हयवर ] दे० 'हेबर' । उ०--फिरि युक्त हो [को०] । राय काय हे वर चढयौ पहरत मोजे पगठस्यौ। भवितव्य वात हृष्टपुष्ट-वि० [ ] मोटा ताजा। तैयार । तगडा । ग्राघात गति इतनी कहि राजन हस्यौ ।पृ० रा०, ११५०६ । हृष्टमना-वि० [स० हृष्टमनस् ] प्रसन्नचित्त । हर्पित [को॰] । --प्रत्य० [सं०] सबोवन शब्द । पुकारने मे नाम लेने के पहले कहा जानेवाला शब्द । हृष्टमानस---वि० [ स०] दे० 'हृष्टमना' [को०] । हृष्टरुप-वि० [ स०] अत्यत उत्फुल्ल । विकसित वदन (को०] । हेल-कि० अ० व्रज 'हो' ( = या) का वहुवचन । थे । उ०--- जहँ के सहज विनोद हे मोहन मन के ।-प्रेमघन०, भा० १, हृप्टरोमा ----वि. [ स० हृष्टरोमन् ] रोमाचयुक्त । रोमाचित । पृ० ३॥ हृष्टरोमा'--सज्ञा पुं० जो खडे और कडे रोम से युक्त हो । एक असुर हेउँती -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] देसावरी रूई । (धुनिया) । का नाम [को०] । हेका-वि० [स० एक ] दे० 'एक' । उ०-हेक प्राण दुय देह, प्रीत हृप्टवदन-वि० [ स०] प्रसन्नवदन । जिसका मुख प्रानद के कारण 'अणरेह परसपर ।--रा० रू०, पृ० ३६ । चमक रहा हो (को०] । हेकड-वि० [हिं० हिया + कडा] १ हृष्ट पुष्ट । मजबूत । कडे हृप्टवृक-सधा पु० [सं०] गर्ग सहिना के अनुसार हिरण्याक्ष दैत्य के वदन का । मोटा ताजा । २ जबरदस्त । प्रवल । प्रचड। नौ पुत्रो मे से एक का नाम । वली। ३ अक्खड । उजड्ड । ४ तौल मे पूरा। जो वजन मे हृष्टसकल्प- वि० [सं० हृप्टसडकल्प] प्रसन्न । खुश । सतुष्ट (को०] । दवता न हो। जैसे-उसकी तौल हेकड है । हृष्टहृदय - वि० [स०] प्रसन्नहृदय । सतुष्ट । आनदमग्न । हर्षित (को०] । हेकडी -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० हेकड ] १ अविकार या बल दिखाने की हृष्टि- सज्ञा स्त्री० [स०] १ हर्प । प्रसन्नता । उ०-मुझमे यह क्रिया या भाव । अक्खटपन । उग्रता। जैसे-हेकडी मत हार्द हृष्टि है, सुख की ऑगन मे सुवृष्टि है ।--साकेत, पृ० दिखायो, सीधे से वात करो। २ हुडदगई । जबरदस्ती। ३२८ । २ इतराना। मान । गर्व । घमड से फूलना । ३ बलात्कार । जैसे,—अपनी हेकडी से वह दूसरो की चीजे ले ज्ञान । जानकारी । समझ (को०) । ४ रोएँ खडे होना । लेता है। रोमाच (को०)। मुहा० To-हेकडी लेना = डीग होकना। वढ चढकर बाते करना । हप्टियोनि-स -सज्ञा पुं० [ स० ] एक प्रकार का नपुसक । नपुसक का उ०-चुप रह । बडी हेकडी की लेता है। चल उधर हट । एक भेद । ईय॑क नपुसक । फिसाना०, भा० ३, पृ० २२४ । हण्यका-- सज्ञा स्त्री० [ सगीत मे एक मूर्छना जिसका स्वरग्राम हेकमन+-वि० [स० एकमत] एक विचार अथवा एक मत का । इस प्रकार है-प ध नि स रे ग म । ध नि स रे ग म प उ.--तीनो ही देवा तने देवी आदर दीध । सरव सयारणों हेकमत ध नि स रे ग । कहवत साँचो कीध । -वाँकी० ग्र०, भाग २, पृ० ११४ । हैं' @--क्रि ० अ० सत्तार्थक क्रिया होना' का वर्तमान रूप है का हेकर -सज्ञा स्त्री० [हिं० हेकडी ] लडाई। उ०-चढइ तुरग बहुवचन । दे० 'है"। उ०--चले जु चपल नयन छवि बढे । होइ अनुरागी। के अहेर के हेकर लागी।-चित्रा०, पृ०६ । चदनि मनहुँ मीन हे चढे ।-नद० ग्र०, पृ० २३४ । हेकली@t--वि० [हिं० हेक ] अकेली। उ०प्रवही मेली हेकनी हे हैं --मज्ञा पुं० [अनु० ) १ धीरे से हँसने का शब्द । उ०- करही करइ कलाप । कहियउ लोपां सामिकउ सुदरि लहाँ खीस वाकर केवल है है की हिनहिनाहट । -प्रेमघन०, सराप ।-ढोला०, दू० ३२३ | भा० २, पृ० २६४ । २ दीनतासूचक शब्द । गिडगिडाने हेक्का--सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] दे० 'हिक्का' [को०] । हेगलg+--सज्ञा स्त्री० [अ० हैकन ] एक आभूपण । हार । दे० मुहा To-हे हे करना = (१) गिडगिडाना । दीनता दिखाना । 'हैकल' । उ०-दाउदी के तुर्रा और मुकुट हजारा की हेगल (२) खुशामद करना। जी हुजूरी करना। हमेल इश्कपेव मन भायो है । -पोदार अभि० ग्र०, पृ० ४३१ । हेगा- -सज्ञा पु० [ स० अभ्यङग ( = पोतना) ] जुते हुए खेत की हेच--वि० [फा०] १ तुच्छ । नाचीज । किसी गिनती मे नहीं । मिट्टो बरावर करने का पाटा। मैडा । पहटा । उ०-नसा सुलफे का और सब हेच । -भस्मावृत०, पृ० २२ । हे गाना--कि० अ० [हिं० हे गा + ना (प्रत्य॰)] जुते हुए खेत की २ जिसमे कुछ तत्व न हो । नि सार । पोच । ३ निकम्मा ।। मिट्टी को पाटे से बराबर करना । वेकार। फजूल । उ०-पावै नही अध्यातम पेच । मानं वाहिज हेगाना। किरिया हेच ।-अर्ध०, पृ०५४। -सशा पुं० जुते हुए खेत की मिट्टी को वरावर करने का काम। हेचकस-वि० [फा०] अधम । नीच । कमीना (को०] । हिं० श०११-२८ SO का शब्द। 1