पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३६

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हेति' - पक। प्रधानाध्यापक। हेचपोच' ५५४८ हेचपोच'-- 1--वि० [फा०] १ प्रदना । तुच्छ मामूली । २ निकम्मा । हेडक्वार्टर-सज्ञा पुं० [अ०] १ वह स्थान या मुकाम वेकार । वेफायदा । व्यर्थ । जहाँ सेना का या किसी विभाग का प्रधान अधिकारी और हेचयोच'- ---मज्ञा पुं० १ माधारण व्यक्ति । तुच्छ व्यक्ति । २ मामूली उसका कार्यालय रहता हो । जैसे-सेना का हेडक्वार्टर शिमला मे है। २ किसी सरकार या अधिकारी का प्रधान स्थान । चीज । माधारण वस्तु किो०] । जैसे-जाडे मे भारत सरकार का हेडक्वार्टर दिल्ली में रहता हेचमदानी--सज्ञा स्त्री० [फा०] कुछ न जानना । अज्ञता । मूर्खता [को॰] । है । ३ वह स्थान जहाँ कोई मुय्यत रहना या कारोवार हेचमर्द-वि० [फा०] दीन । दुखी । (प्रादमी)। करता हो। सदर । सदर मुकाम । केद्र । जैसे,—वे अभी हेजम--सज्ञा पुं० [फा०] द्वारपाल दरवान । प्रतिहार । उ०-रुकि हेडक्वार्टर से लौटे नहीं है । कविंद हेजम बुल्लिय हसि। कोन थान वर चलिय कोन दिसि । -पृ० रा०, ६१४६६ । (ख) सुनत हेत हेजम उडिग दिति हेडज-सचा धुं० [सं०] १ नाखुशी । नाराजी । अप्रमन्नता । २ कोप । क्रोध [को०)। चद वरदाइ।-पृ० रा०,६११४७ । हेडमास्टर-मज्ञा पुं० [अ० ] किसी विद्यालय का सबसे बडा अध्या- हेजै--सज्ञा पुं॰ [ पु० हिं० अजी, मि० गुज० हजु, कुमा० प्राजि (= अभी तक)] अभी तक । उ०—जियरा चेति रे, जनि जार, हेडा--सञ्ज्ञा पुं० [ देश० ] मास । गोश्त । हेज हरि सौ प्रीति न कीन्ही ।--दादू०, पृ० ४७७ । हेडाg -सज्ञा पुं० [देश० तुल० स० हेडावुक्क - घोडो का हेट--मशा पुं० [हिं० सहेट] सकेतस्थल जहाँ नायक नायिका परस्पर सौदागर)] भाडा । किराया । उ०-हेडाउँ का तुरीय ज्यु । मिलते हैं। सहेट स्थान । उ०---या विधि की अनेक विधि तुये दिन दिन हाथ फेरनइ सो वार ।-बी० रासो, पृ० ४६ । हेटै । छली छैल को पेठं पेट।-धनानद०, पृ० २६२ । हेडाऊg -सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] द्रव्य प्राप्न करके यात्रा पर जानेवाला हे' ---वि० [स० अध स्थ, प्रा० अहट] १ नीचा । जो नीचे हो । २ व्यक्ति । दूत । उ०-चोरी लिखी धन प्रायगड हाथ। जगह घटकर। कभ। चलायो हेडाऊ के साथ। -बी० रासो, पृ० ७४ । हेठ@-क्रि० वि० नीचे । उ०--(क) परे भूमि जिमि नभ ते भूधर। हेडाबुक्क, हेडावुवक-संज्ञा पुं० [सं०] अश्व का व्यापार करनेवाला हेट दावि कपि भालु निसाचर |--मानस, ६७० । (ख) व्वक्ति । घोडो का सौदागर [को॰] । पर्वत हेठ अहा देवहरा । रहौ तहाँ निसि जो एक सरा- हेडिंग -सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ] वह शब्द या वाक्य जो विषय के परिचय चित्रा०, पृ० २७ । के लिये किसी समाचार, लेख या प्रवध के ऊपर दिया जाय । हेठ'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ विघ्न । वाधा । २ क्षति । हानि । शीर्षक । जैसे,--अखबारो मे महत्व के समाचार बडी बडी ३ आघात । चोट। हेडिंग देकर छापे जाते हैं। हेठा-वि० [हिं० हेठ ] १ नीचा । जो नीचे हो । २ प्रतिष्ठा या हेडी'-- '--सज्ञा स्त्री॰ [हिं० लेहँडी ] चौपायो का समूह जिसे बनजारे वडाई मे घटकर । कम । ३ तुच्छ । नीच । बिक्री के लिये लेकर चलते हैं। हेठाई--सज्ञा पुं० [हिं० हेठ ] दे० 'हेठापन' । उ०—जिनकी समझ हेडी -सञ्ज्ञा पुं० [हिं० अहेगे] अहेर करनेवाला व्यक्ति । शिकारी। मे वाइसराय का हिंदुस्तानी तरह पर सलाम करना बडे हेठाई और लज्जा की वात थी।-भारतेंदु ग्र०, भा० ३, पृ० १६१। हेत@-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० हेतु] कारण । प्रयोजन । दे० 'हेतु' । उ०-- हेठापन--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हेठ० + पन (प्रत्य॰)] तुच्छता । नीचता। कामिनि मुद्रा काम की सकल अर्थ को हेत । मूरख याको क्षुद्रता। तजत है झूठे फल को हेत ।-व्रज० ग्र०, पृ० ६६ । हेठी-- --मन्ना स्त्री० [हिं० हेठा ] १ प्रतिष्ठा मे कमी । मानहानि । हेतg२--सञ्ज्ञा पुं० [सं० हित ] १ प्रेमसवध । अनुराग । प्रीति । प्रेम। गौरव का नाश । हीनता। तौहीनी। २०-(क) देखी करनी कमल की (रे) कीन्ही रवि सी हेत। क्रि० प्र०करना।-होना। प्रान तज्यो प्रेम न तज्यो (रे) सूख्यो सलिल समेत। -पूर०, २ जहाज मे पाल का पाया । (लश.)। १६३२५ । (ख) इहिं विधि रहमत विलसत दपति हेत हिंय -सज्ञा पुं॰ [ सं० ] तिरस्कार । उपेक्षा। [को०] । नहिँ थोरे। सूर उमगि प्रानद सुधानिधि मनु बेला फल फोरै । सूर०, १०१७३२ । २ श्रद्धाभाव । अनाग । उ०--जज्ञभाग '--सज्ञा पुं० [अ०] १ प्रमुख अधिकारी'। ऊँचा अफसर । नहिं लियौ हेत सौ रिपिपति पतित विचारे। भिल्लिनि के फल प्रधान या मुखिया। जैसे-हेडमास्टर । हेड कास्टेवुल । २ खाए भाव सौ खाटे मीठे खारे ।--सूर०, १२५ । सिर । शीर्प । ३ सिरनामा। खाता या मद । हेति'-सज्ञा - [म० | १ वज्र । भाला। २ अस्त्र । ३ घाव । यौ०-हेडटेल = मिर और दुम । किसी भी सिक्का या अन्य वस्तु जख्म । ४ प्राघात । चोट। ५ आग की लपट | लौ । ६ का अगला और पिछला हिस्सा । सूर्य की किरन । ७ धनुप की टकार । ८ औजार। यत्न । हेडग्राफिस-सज्ञा पुं० [अ०] प्रधान कार्यालय । ६ ज्योति । प्रकाश । तेज। दीप्ति । १० अकुर । अँखुवा । व्याध। .