पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३७

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का नाम। हैति' ५१४१ हैतुविशेपोक्ति हेति'- --सञ्ज्ञा पु० १ प्रथम राक्षस राजा जो मधुमास या चैन मे सूर्य के हेतुता--सज्ञा श्री० [ स० ] कारण या हेतु होना । कारणत्व (को०] । रथ पर रहता है । यह प्रहेति का भाई और विद्युत्केश का पिता हेतुत्व-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] ३० 'हेतुता' । कहा गया है। (वैदिक) । २ भागवत मे वर्णित एक असुर हेतुदुष्ट-वि० [ सं०] जो तर्कसंगत न हो । जो प्रयुक्त हो [को०] । हेती--सज्ञा पुं० [हिं० हेत] १ वह जिससे प्रेम हो। प्रेमी । २ हेतुदृष्टि --मञ्चा सी० [स०] सदेह । कारण की परीक्षा । अविश्वास । रिश्तेदार । सबधी। अविश्वस्तता (को०) । हेतु'--मज्ञा पुं० [ म०] १ वह बात जिसे ध्यान मे रखकर कोई हेतुवंलिक-वि० [सं०] जिसकी युक्ति या तर्क पुष्ट हो । जो तर्क दूमरी वात की जाय। प्रेरक भाव । अभिप्राय । लक्ष्य । उद्देश्य । प्रवल हो |को०)। जैसे,--(क) उसके आने का हेतु क्या है ? (ख) तुम किस हेतुभेद-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० ] वृहत्सहिता के अनुसार ज्योतिप मे ग्रहयुद्ध हेतु वहाँ जाते हो? २ वह वात जिसके होने से ही कोई का एक भेद । उ०-मुनियो से आनेवाले क्रमयोग के हेतुभेद दूसरी वात हो । कारक या उत्पादक विषय । कारण । वजह । आदि चार प्रकार के ग्रहयुद्ध होते है । वृहत्महिता, पृ० ६७ । सवव । जैसे, --दूध बिगडने का हेतु यही है। उ०—(क) कौन हेतु वन विचरहु स्वामी ? --तुलसी (शब्द॰) । (ख) हेतुमानता-सज्ञा स्त्री० । स० ] सिर्फ वहाना या होला। हेतु मात्र केहि हेतु रानि रिसानि परसत पानि पतिहि निवारई ।-तुलसी होना। हेतु का पुष्ट न होना [को०) । (शब्द०)। ३ वह व्यक्ति या वस्तु जिसके होने से कोई बात हेतुमान्'-वि० [ म० हेतुमत् ] [ वि० सी० हेतुमनी] १ जिसका कुछ हो। कारक व्यक्ति या वस्तु। उत्पन्न करनेवाला व्यक्ति या हेतु या कारण हो । २ जो तर्क युक्त हो । तकसगत । ३ वस्तु । उ० --मही सकल अनरथ कर हेतु ।--तुलसी (शब्द०)। आधारयुक्त । जो निराधार न हो (को॰) । ४ वह वात जिसके होने से कोई दूसरी बात सिद्ध हो। प्रमा- हेतुमान् --सज्ञा पुं० वह जिसका कुछ कारण हो । कार्य । णित करनेवाली वात । ज्ञापक विषय । जैसे,—जो हेतु तुमने हेतुमाला-मशा स्त्री॰ [ स० ] काव्य मे एक अलकार। ३० 'कारण- दिया, उससे यह सिद्ध नहीं होता । विशेष--न्याय मे तर्क के पॉव अवयवो मे से 'हेतु' दूसरा अवयव माला'-२ । उ०--उत्तर उत्तर हेतु जहँ, पूरव पूरब काज। इही है, जिसका लक्षण है-उदाहरण के साधर्म्य या वैधयं से साध्य हेतुमाला कहत कविजन बुद्धि जहाज ।-मति० ग्र०, पृ० ४१३ । के धर्म का साधन । जैसे,—प्रतिज्ञा-यह पर्वत वह्निमान् है। हेतुयुक्त-वि० [ सं० ] जिसका कुछ कारण या आधार हो । हेतु से हेतु--क्योकि वह धूमवान् है । उ०--जो धूमवान् होता है, वह युक्त । सहेतुक । मकारण [को०) । वह्निमान् होता है, जैसे,--रसोईघर । हेतुरहित--वि० [सं० ] हेतु से रहित । विना कारण के । अकारण । ५ तर्क । दलील । यौ०-हेतुविद्या, हेतुणास्त्र, हेतुवाद । अहेतुक । उ०--हेतुरहित जग जुग उपकारी । तुम्ह तुम्हार सेवक ६ मूल कारण । (बौद्ध) । असुरारी।-मानस, ७।४७ । विशेष-बौद्ध दर्शन मे मूल कारण के 'हेतु' तथा अन्य कारणो को हेतुरूपक-पञ्चा पु० [सं० ] रूपक अलकार का एक भेद जो हेतुयुवत प्रत्यय कहते है। होता है। ७ बाह्य ससार और उसका विषय । वाह्य जगत् हेतुलक्षण-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] हेतु का लक्षण । हेतु की विशेषता । और चेतना (को०)। ८ मूत्य । दाम । अर्घ (को॰) । ६ एक अर्थालकार जिसमे हेतु और हेतुमान् का अभेद से हेतुवचन-सञ्ज्ञा पुं० [ H० ] वह वचन जो हेतु से युक्त हो । हेतुयुक्त वात । तर्कयुक्त कथन । कथन होता है, अर्थात् कारण ही कार्य कह दिया जाता है। जैसे,-घृत ही वल है। उ०—मो सपति जदुपति सदा विपति हेतुवाद--समा ५० [सं०] १. सव वातो का हेतु ढूंढना या सबके विदारनहार । (शब्द०)। विषय मे तर्क करना। तर्कविद्या। २ कुतर्क । नास्तिकता। विशेप--ऊपर दिया हुआ लक्षण रुद्रट का है, जिसे साहित्य उ०—(क) आयु ही विचारिए निहारिए सभा की गति, वेद दर्पणकार ने भी माना है। कुछ आचार्यों ने किसी चमत्कार मरजाद मानौ हेतुवाद हई है। -तुलसी ग्र०, पृ० ३१३ । (ख) पूर्ण हेतु के कथन को ही 'हेतु' अलकार माना है और किसी राज समाज कुसाज कोटि कट कल्पत कलुप कुचाल नई है। किसी ने उसको काव्यलिंग भी कहा है। नीति प्रतीति प्रीति परिमिति पति हेतुवाद हठि हेरि हई है । --सञ्ज्ञा पुं० [ स० हित] लगाव । प्रेम सबध । २ प्रेम । —तुलसी (शब्द०)। प्रीति । अनुराग । उ०--पति हिय हेतु अधिक अनुमानी। विहसि उमा वोली प्रिय वानी । तुलसी (शब्द॰) । हेतुवादी--वि० [सं० हेतुवादिन्] [वि० लो० हेतुवादिनी] १ तार्किक । दलील करनेवाला । २ कुतर्को । नास्तिक । हेतुक- ---सज्ञा पुं॰ [ त०] १ शिव का एक गण । २ एक बुद्ध । ३ कारण । हेतु । ४ तार्किक । तर्कशास्त्री [को०] । हेतुविद्या-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं• ] तर्कशास्त्र । हेतुक :-वि० जो कारणभूत हो । जो कारणरूप हो । कारणरूप हेतुविशेषोक्ति--सञ्ज्ञा पुं० [ सं० ] एक अलकार जिममे तर्क द्वारा दो होनेवाला या उत्पन्न करनेवाला । पदार्थों का मतर बताया जाय ।