पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

म० हैमकरके ५५५१ हेमदुग्धी हेमकरक-मज्ञा पुं० [ स० ] सोने का कमडल या करवा। हेमघ्न-सञ्ज्ञा पु० [सं० ] सीमा वातु । स्वर्णपात्र [को०] । हेमघ्नी--सञ्ज्ञा सी० म०] हलदी । हेमकर्ता--मज्ञा पु० [ सं० हेमकर्तृ ] सुनार । स्वर्णकार [को॰] । हेमचद्र'--सज्ञा पुं० [ हेमचन्द्र] १ इक्ष्वाकुवशी एक राजा जो हेमकलश--मज्ञा पुं० [.H० ] मदिर या गुवद पर लगाने का सोने का विशाल का पुत्र था। २ एक प्रसिद्ध जैन प्राचाय । वना हुअा शिखर या कलश [को०] । विशेप-इनका समय ईसवी सन् १०८६ और ११७३ के बीच हेमकाति'--सज्ञा श्री० [ स० हेमकान्ति ] १ बनहलदी । २ अावा माना जाता है। ये देवचद्र सूरि के गिप्य ये और गुजरात के हलदी। राजा कुमारपाल के गुरु थे। इनका एक नाम हेम मूरि भी था। इन्होने व्याकरण और कोश के कई ग्रथ लिखे है । हेमकाति ----वि० हेमप्रभ । सोने की तरह दीप्त । जैमे,--अनेकार्थकोश, अभिवानचितामणि, सस्कृत और प्राकृत हेमकार--मज्ञा पु० [ स० ] स्वर्णकार । सुनार [को०] । का व्याकरण, देशी नाममाला, उणादिमूववृत्ति इत्यादि । हेमकारक-सज्ञा पुं० [सं० ] सुनार । हेमचद्र २-पि० (रथ अादि)जो स्वर्ण निर्मित चद्रमा मे भूपित हो किो०] । हेमकारिका-मचा मी० [ स०] एक क्षुप का नाम । हेमचक्र-वि० [स०] जिसका चक्का या पहिया सोने का हो किो०] । हेमकिंजल्क--सज्ञा पु० [स० हेमकिजल्क] नागकेसर का पुष्प [को०]। हेमचूर्ण -मज्ञा पु० [सं०] मोने का चूरा । स्वर्णधूलि [को०) । हेमकुट @--सज्ञा पुं० [स० हेमकूट ] हिमालय के उत्तर का पर्वत । हेमचूली-वि० [सं० हेमचुलिन्] जिसका शिखर या चूडा स्वर्णनिर्मित हेमकूट । उ०--हेमकुट की आहै दूजा ।--प्राण०, पृ० ४७ । हो। सोने के शिखरवोला [को० । हेमकुम--सचा पु० [ सं० हेमकुम्भ ] सोने का घडा। स्वर्णघट [को०] । हेमछन्न-वि० [सं०] हेम से टका हुआ । स्वर्ण से आच्छादित । हेमकूर- --सञ्चा पु० [स०] हिमालय के उत्तर का एक पर्वत जो सोने के आच्छादनवाला । पुराणानुसार किंपुरुप का वर्ष और भारत की सीमा पर हेमछन्न-सञ्ज्ञा पुं० स्वर्णिम अाच्छादन । सोने का प्रावरण किो०] । स्थित है। हेमछरीली-सज्ञा स्त्री॰ [स० हम + हिं० छडी] स्वर्गछडी । कनक छडी। हेमकेतकी-सछा स्त्री॰ [ स० ] केतक वृक्ष जिसके पुष्प पीतवर्ण के उ०--अंग अँग प्रेम उमॅग अस सोहे। हेगछरी जराय जरि को होते हैं। स्वर्णक्षीरी [को०] । हे ।-नद० ग्र०, पृ० १३१ । हेमकेलि- त-सज्ञा पुं० [ स०] १ चित्रक नाम का पौधा। २ अग्नि हेमज---सञ्ज्ञा पु० [स०] राँगा । हेमजट--सज्ञा पुं० [स०] किरातो का एक वर्ग या जाति [को०] । का एक नाम को०] । हेमकेश-सञ्चा पु० [सं०] शिव का एक नाम । हेमजीवती-सज्ञा स्त्री० [सं० हेमजीवन्ती] स्वर्ण जीवती । पीतवर्ण की जीवती [को०] । हेमक्षीरी --सज्ञा स्त्री॰ [ स०] स्वर्णक्षीरी जिसका निर्यास या दुग्ध स्वर्ण हेमज्वाल-सज्ञा पुं॰ [सं०] वह जिमकी ज्वाला स्वर्ण की तरह दीप्त के वर्ण का होता है (को०] । हो। अग्नि (को॰] । हेमखेमा -सज्ञा पुं० [अनु० हेम + स० क्षेम ] १. कुशल प्रश्न । कुशल हेमतरु-सक्षा पुं० [स०] पीत वर्ग का धतूरा । क्षेम । उ०--पढन लगे वाराणसी लिखी आठ दस पॉति । हेम- सेम ताके तले समाचार इस भॉति ।-अर्ध०, पृ० ४३। २ हेमतार--मशा पुं० [म०] नीला थोथा । तूतिया । परस्पर मवध । लगाव । मैत्री। हेमताल--मज्ञा पुं० [स०] उत्तराखड का एक पहाडी देश । हेमगधिनी --सज्ञा स्त्री० [सं० हेमगन्धिनी ] रेणुका नामक गधद्रव्य। हेमतुला-'ज्ञा स्त्री० [स०] तील मे किसी के बरावर सोने का दान । हेमगर्भ १--सज्ञा पुं॰ [ स०] वाल्मीकि रामायण मे वणित उत्तर दिशा सोने का तुलादान । का एक पर्वत । हेमदत-वि० [स० हेमदन्त ] जिसके दांत सोने से मढे हो । हेमगर्भ-वि० जिसके भीतर स्वर्ण हो । हिरण्यगर्भ (को०] । हेमदता-सञ्चा बी० [सं० हेमदन्ता] हरिवण पुराण के अनुसार एक हेमगिरि--मचा पुं० [सं०] सुमेरु नाम का एक पर्वत जो सोने का अप्सरा । कहा गया है। हेमदीनार-सशा पुं० [म०] सोने का एक पुराना सिक्का जिसे दीनार हेमगुह-सज्ञा पुं० [सं०] एक नागासुर का नाम (को॰) । कहते थे (को०] । हमगौर-स -सा पुं० [ ] १ किंकिरात वृक्ष । कटसरैया। २ हेमदुग्ध - सच्चा पुं० [सं०] गूलर । अमर । अशोक का वृक्ष (को०) । हेमदुग्धक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] गूलर (को०] । हेमगौराग-वि० [स० हेमगौराग] जिसका अग हेम की दीप्ति से हेमदुग्धा -सञ्चा ली० [स०] स्वर्णक्षीरी [को०] । युक्त हो [को०] । हेमदुग्धी' ' पुं० [सं० हेमदुन्विन्] गूलर । उदुवर [को०] । FO