पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४

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स्ट्राइक स्तंभन थभा। विगप--टाइक मप्रदायवालो का सिद्धात है कि मनुष्य को विपय- मुखो का त्याग करक बहुत सयमपूर्वक रहना चाहिए। २ उक्न मप्रदाय को माननेवाला व्यक्ति। विपयमुखो का त्याग कन्नवाला व्यक्ति । विषयविमुख व्यक्ति । स्ट्राइक--ज्ञा स्त्री॰ [अ०] हडताल । जैसे,-रेलवे स्ट्राइक । स्ट्रीट- --- पी० [अ०] नगर के मोतरी माग की पतली छोटी सडक । म्ट्रेट-सरा पु० [अ०] १ जलडमम् मध्य । २ वह जो टेढामेढा न हो, सीधा हो। स्तकु-मज्ञा पु० [स० स्नदकु] प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जिमपर चमडा मढा होता था। स्तव-सजा पु० [म० स्तम्ब] १ ऐमा पौधा जिसकी एक जड से कई पौध निकले और जिसम कडी लकडी या डठल न हो। गुल्म । २ भाडी। मुरमुट (को०)। ३ घास की ऑटी। ४ अन्न के पौधो की प्रॉटी या पूली (को०)। ५ झड । पुज । गुच्छा (को०)। ६ सभा। स्तम (को०) । ७ असवेद्यता। जडता। म्नम (फो०)। ८ वह स्तम या खूटा जिसमे हाथी बाँधे जाते है (को०) । ६ रोहिडा । रोहतक वृक्ष । १० एक पर्वत का नाम । स्तवक-तग पु० [म० स्तम्वक] १ गुच्छ । गुच्छा २ नकछिकनी । क्षवक वृक्ष । छिक्कनी। स्तवकरि--सग पुं० [स० स्तम्बकरि] धान । स्तवकरि-वि० अनाज के पौधो की पूली बनानेवाला [को॰] । स्तवरिता--मा सी० [स० स्तम्बकरिता] धान्यादि के पौधो की पाटी या पूली बनाना ।—मुद्राराक्षस । स्तवकार--वि० [स० स्तम्बकार] गुच्छे बनानेवाला । स्तवघन-सज्ञा पुं० [स० स्तम्वधन) १ दाँती जिमसे घास आदि काटते है। हमिया । २ खुरपा (को०)। ३ तिन्नी या धान एकत्र करने की टोकरो (को०)। स्तवघात-सशा पु० [स० स्तम्वघात) दे० 'स्तवघन'। स्तवघ्न--पग पुं० [स० स्तम्बघ्न] दे० 'स्तवधन'। स्तवज-वि० [१० स्तम्बज] गुच्छेदार । स्तवकित (को०] । स्तवपुर--संज्ञा पुं० [म० स्तम्बपुर] ताम्रलिप्तपुर का एक नाम । स्तवमित्र--सज्ञा पुं० [म० स्तम्पमित्र] महाभारत के अनुसार जरिता के एक पुत्र का नाम। स्तवयजु-ससा पुं० [स० स्तम्बयजुप्] घास और गुल्म अथवा गुच्छ को पनने और तोटने का एक धार्मिक कृत्य [को०] । स्तवहनन-सा पु० [सं० स्तम्बहनन] [स्त्री० स्तवहननो] घास आदि खादन की सुरपी। स्तबी'-सा पुं० [स० स्तम्बिन्] घास खोदने की खूसी। स्तवी-वि० भाडी या गुच्छेदार (को०] । स्तबेरम-मरा पुं० [स० स्तम्बेरम] हाथी ' हस्ति । स्तवेरमासुर-सज्ञा पुं० [स० स्तम्बेरमासुर] एक असुर का नाम । गजासुर स्तभ-सज्ञा पुं॰ [स० स्तम्भ] १ ख मा । थभा । थूनी। २ पेड का तना। तरुस्कध । ३ साहित्यदर्पण के अनुसार एक प्रकार का सात्विक भाव । किसी कारण विशेप से सपूण अगो की गति का अवरोध । जडता। अत्रलता। उ०--देखा देखी भई, छूट तव ते सँकुच गई, मिटी कुलकानि, कसो घूघुट को करिवो । लागी टकट की, उर उठी धकधकी, गति यकी, मति छकी, ऐसो नेह को उघरिवो। चित्र कैसे लिखे दोऊ ठाढे रहे 'कासीराम' नाही परवाह लाख लाख करो लरिवो। वसी को वजैवो नट- नागर विसरि गयो, नागरि विसरि गई गागरि को भरिवो।-- रमकुसुमाकर (शब्द०)। ४ प्रतिवध । रुकावट । ५ एक प्रकार का तानिक प्रयोग जिससे किसी की चेष्टा या शक्ति को रोकते है। ६ काव्य क सात्विक भावो में से एक । ७ विष्णपुराण के अनुसार एक ऋपि का नाम । ८ अभिमान । गर्व । घमड । दभ । ६ रोग आदि के कारण होनेवाली बेहोशी। १० स्थिरता । कडापन (को०)। ११ नियनित करना। दमन (को०)। १२ भरना (को०) । १३ सहारा । प्राथय । टेक (को॰) । स्तभक'- वि० [स० स्तम्भक] १ रोकनेवाला। रोधक । २ कब्ज करनेवाला। ३ वीर्य रोकनेवाला। स्तभकर--सञ्ज्ञा पु० १ खभा । २ शिव के एक गण का नाम। स्तभकर'-वि० [म० स्तम्भकर] १ रोकनेवाला । रोधक । २ जडता उत्पन्न करनेवाला। स्तभकर--सचा पु० घेरा । वेष्टन । टट्टी । स्तभकारण--सज्ञा पुं॰ [स० स्तम्भकारण] रोक या बाधा का कारण । स्तभकी--सा पु० [स० स्तम्भकिन्] प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जिसपर चमडा मढा होता था। स्तभकी--सज्ञा स्त्री॰ [स० स्तम्भकी] एक देवी का नाम । स्तभता-सज्ञा ओ० [स० स्तम्भता। १ स्तभ का भाव । २ जडेता । स्तभतीर्थ --सज्ञा पु० [स० स्तम्भतीर्थ] एक प्राचीन स्थान का नाम । विशेप- आजकल यह स्थान खभात के नाम से प्रसिद्ध है। किसी समय यह एक प्रसिद्ध तीर्थ और व्यापार का बहुत बडा केंद्र था। स्तभन-सज्ञा पु० [स० स्तम्भन] १ रुकावट । अवरोध । निवारण । २ विशेषत वोय आदि के स्खलन मे वाधा या विलव । ३ वह औषध जिससे वीर्य का स्खलन विलव से हो। वीर्यपात रोकने- वाली दवा। विशेष---इस अर्थ मे लोग भ्रम से इस शब्द का स्तभक के स्थान पर प्रयोग करते है। ३ सहारा । टेकान । टेक । ४ जड या निश्चेष्ट करना। जडी- करण । ५ रक्त के प्रवाह या गति का रोकना । ६ एक प्रकार का तात्रिक प्रयोग जिससे किसी चेष्टा या शक्ति को रोकते हैं। ७ वह ओपध जो रूखी, ठढी और कसली हो, जिसमे पाचन शक्ति कम हो और जो वायु करनेवाला हो। ८ कब्ज । मलाव- रोध । ६ कामदेव के पाँच वाणो मे से एक । (शेप चार वाण ये है-उन्मादन, शोपण, तापन और समोहन)। १०. शात