पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४१

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> TO हेमशख हेमिया हेमशख-सज्ञा पुं० [सं० हेमशडख] विष्णु का एक नाम [को०] । साहिब आविया, जांह की हुँती चाइ। हियडउ हेमागिर भयउ हेमशिखा-सञ्चा स्त्री० [सं० ] स्वर्णक्षीरी का पौधा । तन पजरे न माइ।-ढोला०, दू० ५२६ । हेमशीत 1-सज्ञा पुं॰ [ स० ] स्वर्णक्षीरी (को०) । हेमा ---सज्ञा स्त्री० [स०] १ माधवी लता । २ पृथ्वी। ३ सुदरी स्त्री। ४ एक अप्सरा का नाम जिससे मदोदरी उत्पन्न हेमशृग--सक्षा पु० [ स० हेमशृङ्ग ] १ सोने का शृग या शिखर । सोने की सीग । २ सोने की चोटी से युक्त एक पर्वत । हुई थी। वह पर्वत जिसकी चोटी सोने की हो । सुमेरु या मेरु नाम का हेमा--सज्ञा पुं० [ स० हेमन् ] बुध नामक ग्रह (को०] । पर्वत किो०] 1 हेमाचल-सज्ञा पुं॰ [ स० ] सुमेरु पर्वत । उ०--हेमाचल उपकठ हेमशैल- 1-सभा पुं० [स०] एक पर्वत का नाम । (सभवत मेरु एक वट वृष्ष उसग । सौ जोजन परिमान साप तस भजि मतग। पर्वत) [को०) । -पृ० रा०, २७।५ । हेमसागर-सज्ञा पुं० [सं०] एक पौधा जो सुदरता और प्रोपधि के लिये हेमाढ्य-वि० जो मोने से परिपूर्ण हो । स्वर्ण से पूर्ण । बगीचो मे लगाया जाता है। हेमाद्रि--स --सज्ञा पुं० [स०] १ सुमेरु पर्वत । २ एक प्रसिद्ध विशेष--यह पौधा पजाब के पहाडो मे आपसे आप उगता है ग्रथकार। और बगीचो मे इसे लगाया भी जाता है। इसे 'जयम हयात' विशेष—यह ईसा की १३वी शताब्दी मे विद्यमान थे और इन्होने भी कहते है। पांच खडो मे, जिनके नाम क्रमश दान, व्रत, तीर्थ, मोक्ष हेमसार-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] नीलाथोथा । तूतिया । और परिशेष हैं, चतुर्वर्गचिंतामणि नामक एक वडा ग्रथ लिखा है जो अपने विपय का प्रामाणिक ग्रथ माना जाता है । हेमसुता--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] हिमशैलसुता । पार्वती । दुर्गा । हेमसूत्र सक्षा पुं० [सं० ] सोने का सूत या तार । एक प्रकार हेमाद्रिका-सज्ञा स्त्री॰ [ पुं० ] स्वर्णक्षीरी नाम का पौधा । का हार [को०] 1 हेमाद्रिजरण [--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ ] स्वर्णक्षीरी । हेमाद्रिका [को०] । हेमसूत्रक-सज्ञा पुं० [स० ] दे० 'हेमसूत्र' । हेमाभ-वि० [ स० ] स्वर्णिम । सोने की कातिवाला । सुनहला । हेमहस्तिरथ-सज्ञा पुं० [सं०] सोने का हस्तिरथ जो १६ महदानो मे हेमवत् । उ०—उस लता कुज की झिलमिल से हेमाभ रश्मि थी खेल रही । विशेप माना गया है । सोने के हस्तिरथ का दान [को०] । कामायनी, पृ० ७८ । हेमाक-वि० [सं० हेमाङ्क ] सोने से भूषित । दे० 'हेमाग' 'को०) । हेमाभा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] सुनहरा प्रकाश । स्वर्णिम दीप्ति । हेमाग'-सक्षा पुं० [ स० हेमाङ्ग] १ चपा जिसके फूल सुनहले सुनहली प्रभा । उ०-उत्तरकूल उदयोन्मुख सूर्य की हेमाभा से रजित होकर सागर की लहरो मे प्रतिफलित हो रहा था। होते हैं । २ सिंह । ३ मेरु पर्वत जो सोने का माना जाता -प्रतिमा, पृ० । है। ४. ब्रह्मा। ५ विष्णु । ६ गरुड। हेमाल' १--सज्ञा पु० [सं० ] एक राग जो दीपक राग का पुत्र कहा हेमाग२- वि० स्वर्णिम । स्वभि । सुनहला [को॰] । जाता है। हेमागद-सज्ञा पु० [ स० हेमाडगद] १ सोने का विजायठ । हेमाल@+२-सबा पुं० [स० हिमालय] हिमालय पर्वत । उ०-ढोला वह जो सोने का विजायठ पहने हो। ३ वमुदेव के एक पुत्र सायधण माणने झीणी यां सलियाँह । कइ लाभे हर पूजियाँ, का नाम । ४ एक गधर्व का नाम (को०] । ५ लिग हेमाले गलियाँह । --ढोला०, दू० ४७७ । देश के एक राजा का नाम । हेमागा-सच्चा स्त्री० [ स० हेमाडगा ] एक लता । स्वर्णक्षीरी [को०] । हेमालय-सज्ञा ० [म० हेमालय] वह जो स्वर्ण की काति से हेमाड- युक्त हो । स्वर्ण का प्रालय । सोने का गृह । हमाचल । -सज्ञा पुं० [सं० हेमाण्ड] १ पुराणवरिणत हेममय अड । हेमगिरि । उ०--अरण अधखुली आँखें मलकर जव तुम २ ब्रह्माड [को०] । उठते हो छविमय । रगरहित को रजित करते बना हिमालय हेमाडक-सञ्ज्ञा पु० [ सं० हेमाण्डक ] दे० 'हेमाड' । हेमालय । -वीणा०, पृ० २० । हेमावु -सञ्चा पुं० [ सं• हेमाम्बु ] द्रवीभूत स्वर्ण । सोने का तरल हेमा ह्व-सज्ञा पुं॰ [स०] १ पीतवर्ण का धतूरा । कनक । धतूरा । रूप । सोने का पानी (को०] । २ वनचपा [को०] । हेमावुज-सज्ञा पुं० [ स० हेमाम्बुज ] दे० 'हेमाभोज' [को॰] । हेमाह्वा-सज्ञा स्त्री० [स०] १ पीतवर्ण की जीवती नाम की एक लता। हेमाभोज-सज्ञा पुं० [स० हेमाम्भोज ] पीतकमल । स्वर्णाभ कमल २ स्वर्णक्षीरी । सत्यानाशी (को०] । पुष्प [को०] । हेमिया 1-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० हेमियह] जलाने की लव डी । जलावन । हेमागिर@f--सा पुं० [स० हेमगिरि] हिमालय । उ०-सखिए इंधन [को०। २