पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४३

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हेराना' हेला पड जाना। कातिहीन होना । उ०-यानन के ढिग होत सखी तिरस्कार करना । अवज्ञा करना । २. क्रीडा करना । केलि अरविदन की दुतिहू है हेरानी । ५ आत्मविस्मृत होना । करना। किलोल करना । ३ अपराध । कसूर । दोप । अपनी सुध बुध भूलना। लीन होना। तन्मय होना । उ० हेलनाg --क्रि० अ० [स० हेलन] १ क्रीडा करना । केलि करना। सासु को रोम मनैवे की लाज लगी पग नूपुर पाटी वजावन । २. विनोद करना । हँसी ठट्ठा करना । ठिठोली करना । सो छवि हेरि हेराय रहे हरि, कौन को रूसिबो काको मनावन-- उ०--मोहिं न भावत ऐसी हँसी 'द्विजदेव' सर्व तुम नाहक अज्ञात (शब्द०)। हेलति । द्विजदेव (शब्द०)। ३ खेल समझना । परवा हेरानारे-क्रि० स० [हिं० हेरना का प्रे०] खोजवाना । ढुंढवाना । न करना । उ०--को तुम अस वन फिरहु अकेले, सुदर जुवा तलाश कराना । उ०-हार गवाइ सो ऐसे रोवा, हेरि हेराइ जीव पर हेले । —तुलसी (शब्द०) । लेइ जौ खोवा ।--जायसी (शब्द॰) । हेलनारे-क्रि० स० १ तुच्छ समझना । अवज्ञा करना। तिरस्कार हेराफेरी -सज्ञा स्त्री॰ [हिं० हेरना + फेरना] १ हेरफेर । अदल बदल । करना । २ ध्यान न देना । परवा न करना । २ यहाँ की चीज वहाँ और वहाँ की चीज यहाँ होना। इधर हेलना--क्रि० अ० [हिं० हिलना, हलना] १ प्रवेश करना । का उधर होना या करना । जैसे,--चोर चोरी से गया तो पैठना । घुसना । दाखिल होना। (विशेषत पानी मे) । क्या हेराफेरी से भी गया? २ तैरना। हेरिव-सञ्ज्ञा पुं० [ देशी ] गणेश । दे० 'हेरव' (को०] । हेलना-सज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'हेलन' [को०] । हेरिक-सज्ञा पुं० [सं०] भेद लेनेवाला दूत । गुप्तचर । हेलनीय-वि० [स०] अवहेलना या हेला के योग्य [को०] । हेरिया -वि० [हिं० ] हेरनेवाला । खोजने या ढूंढनेवाला । तलाश हेलमेल [-सा पुं० [ हिं० हेलमेल ] १ मिलने जुलने, आने जाने, करनेवाला। साथ उठने बैठने आदि का सबध । घनिष्ठता। मित्रता । रब्त जब्त । जैसे,- दस बड प्रादमियो से उनका हेलमेल हेरियाना-क्रि० अ० [देश॰] जहाज के अगले पालो की रस्सियाँ है। २ सग । साथ । सुहबत । ३ परिचय । जान पहचान । तानकर बाँधना । हेरिया मारना। (लश०) । क्रि० प्र०—करना ।-बढाना ।—होना । हेरी@t--सज्ञा स्त्री॰ [सवोधन हे+री] पुकार । टेर। हेलया-क्रि० वि० [स०] १ खेल ही खेल मे। २ सहज मे । मुहा०-हेरी देना = चिल्लाकर नाम लेना । पुकारना । आवाज ३ अवमानना या तुच्छता के साथ । देना । टेरना । उ०-हेरी देत सखा सब आए चले चरावन हेला--संज्ञा स्त्री० [ स०] १ तुच्छ समझना । अवज्ञा । तिरस्कार । गैयाँ।-सूर (शब्द०)। २ ध्यान न देना। बेपरवाई। ३ खेल । खेलवाड । क्रीडा। हेरुक-सना पुं० [स०] १ गणेश का एक नाम । २ महाकाल ४. बहुत सहज वात । बहुत आसान काम । ५ शृगार- शिव का एक गण । ३ एक बोधिसत्व का नाम । चक्रसबर । चेष्टा । प्रेम की क्रीडा । केलि । ६ साहित्य मे अनुभावात- ४ एक प्रकार के नास्तिक । र्गत एक प्रकार का हाव अर्थात् सयोग समय मे स्त्रियो हेरू-वि० [हिं० हेरना] हेरनेवाला । देखनेवाला । खोजनेवाला । की मनोहर चेष्टा । नायक से मिलने के समय नायिका की उ०—प्रात काल सगवाले हेरु इकट्टे हुए ।--राम० धर्म०, विविध विलास या विनोदसूचक मुद्रा। उ०--छोनि पितवर कम्मर ते सु विदा दई मीडि कपोलन रोरी । नैन नचाय कही पृ० २६२। मुसुकाय 'लला फिर आइयो खेलन होरी।'-पद्माकर (शब्द०)। हेलचा-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० हेलञ्चा] दे० 'हिलमोचिका' । विशेष-सस्कृत के प्राचार्यों ने 'हेला' को नायिका के अट्ठाइस हेलची-सशा स्त्री० [स० हेलञ्ची] हिलमोचिका नाम का साग [को०] । सात्विक अलकारो मे गिना है और उसे अति स्फुटता से हेल'. '-सचा पुं० [हि० हिलना] घनिष्ठता । मेलजोल । लक्षित सभोगाभिलाप का भाव कहा है। विशेष--यह शब्द अकेले नही आता, 'मेल' के साथ आता है । ७ स्त्रीसभोग की प्रवल आकाक्षा [को०] । - चाँदनी। चद्रिका' यो०- हेलमेल । (को०] । ६ सगीत मे एक मूर्छना या स्वरकपन (को०] । हेल'---सञ्ज्ञा पु० [ हिं० हील ] १ कीचड, गोवर इत्यादि । २ २-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हल्ला] १ पुकार । चिल्लाहट । हाँक । हल्ला। उ०-सज्जणियाँ बउलाइ कइ मदिर बइठी आइ । मदिर गोबर का खेप। जैसे,--दो हेल गोवर डाल जा । ३ कालउ नाग जिमि हेलउ दे दे खाइ।-ढोला०, दू० ३७१ । मला । गलीज । ४ घृणा। घिन । क्रि० प्र०--मारना ।--देना = आवाज देना। हल्ला मचाना । हेलक-- सज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल की एक तौल । उ०--आठ पहर अमला रा माता हेलो देता डोली । आनंदघन हेलन--सञ्ज्ञा पुं० [ स० | १ तुच्छ समझना । परवा न करना । झूम्याई आवौ कोई गाली देलौ ।--धनानद, पृ० ४४५ । दि० श० ११-२६ हेला-