पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४४

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उ० पृ०२। हेला- हेलार ५५५६ हेवान' -पाडना = दे० 'हेला देना' । उ०--इजत किण विध प्राण सो हेली मेली-सञ्ज्ञा पुं॰ [हि० हिलना+ मिलना मित्र । दोस्त । पूछ हेला पाड ।--बांकी० ग्र०, भा० ३, पृ० २६ । हेलुग्रा -सञ्ज्ञा पुं० [अ० हल्वह्] एक मीठा खाद्य पदार्थ । दे० 'हलवा'। २ वावा । अाक्रमण। चढाई। -हेलया जूती एक नाहि आवै दिलगीरी। रूखा मूखा हेला-मज्ञा पुं० [हिं० रेलना ( = ठेलना )] ठेलने की क्रिया या खाउ मिल जो गम का टुकडा ।-पलटू०, पृ० ६८ । भाव । किसी भारी वस्तु को खिसकाने या हटाने के लिये लगाया हेलुक्का-मज्ञा स्त्री० [देशी] छिवका । छोक (को०] । हुआ जोर । धक्का। हेलुगा -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक वडी मख्या [को०] । क्रि० प्र०--मारना।-देना। हेलुवा-सज्ञा पुं० [हि० हेलना] पानी मे खडे होकर एक दूसरे के हेला --मज्ञा पु० [हिं० हेल, हील ( = गलीज) ] [स्त्री॰ हेलिन] गलीज ऊपर पानी का हिलोरा या छोटा माग्ने का खेल । उठानेवाला । मैला साफ करनेवाला। हलालखोर। मेहतर। हेल्थ-सज्ञा पु० [अ०] स्वास्थ्य । तदुरुस्ती । जैसे,-हेल्थ अाफिमर । डोम । उ०---(क) वीछी साप आनि तह मेला। बांका आइ हेल्थ डिपार्टमेट । छुवावहि हेला ।--जायसी ग्र०, पृ० २६३ । (ख) बांका पानि हेवत- -सज्ञा पुं० [म० हेमन्त] छह ऋतुग्रो मे एक । दे० 'हेमत' । छुवावहि हेले ।-पदमावत, पृ० ६३१ । उ०-नहि पावस प्रोहि देसरा नहिं हेवत बमत । ना कोकिल न हेला' --सज्ञा पुं० [हिं० हेल (= खेप)] १ उतना बोझ जितना एक पपीहरा जेहि सुनि आवै कत।-जायसी ग्र०, पृ० १५८ । वार टोकरे या नाव, गाडी आदि मे ले जा सके । खेप । खेवा। हेवg 2-सज्ञा पुं० [सं० हिम या हेम] हिम । वर्फ। उ०-कीन्हेसि हेवें, २ वारी। पारी। समुद्र अपारा । कीन्हेमि मेरु सिखिद पहारा ।--पदमावत, मुहा०---अब के हेले = इस वार । इस दफा । हेला --सज्ञा पुं० [ला० हलैलह का लघुरूप हेलह] हरे। हरीतकी । हेत -सञ्ज्ञा पु० [सं० हेमन्त) एक ऋतु । दे० 'हेमत' । उ०-रितु हड (को०। हेवंत संग पीउ न पाला |--पदमावत, पृ० ३३६ । 1°~~सज्ञा स्त्री॰ [देशी] क्षिप्रता। शीघ्रता (को॰] । हेव-वि० [देश॰] दो की सख्या का वाचक । दो। उ०-हेव दला अमगल हेलान-मज्ञा पुं॰ [देश॰] डाँडे को नाव पर रखना। (लश०) । हूवी । मुवी सेख मिरजौ पण मूवी ।-रा० रु०, पृ० २८६ । हेलाल--सज्ञा पुं० [अ० हिलाल] १ दूज का चाँद। २ बंधी हुई हेवज्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बौद्धो के एक देवता [को०] । पगडी की वह उठी ऐंठन जो सामने माथे के ऊपर पडती है। हेवर -सज्ञा पुं॰ [स०] एक वडी मया । [बौद्ध] । हेवर --सज्ञा पुं० [सं० हय+वर] दे० 'हैवर'। उ०-सुभ सिघ हेवर हेलावत्-वि० [सं०] प्रमत्त । प्रमादी । लापरवाह [को०) । लीन । अचलेश कारन दीन ।--प- रामो, पृ० ५७ । हेलावुक्क--मज्ञा पु० [H०] घोडो का सौदागर किो०] । हेवर-सज्ञा पुं० [सं० हृत्पट, हिं० हिय + वर] छाती। उ०- हेलि'--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ जाती हुई वारात । २ विलासयुक्त क्रीडा । सौ रत रोमावली सोहाई । हेवर जाय दरलिसी खाई।-चित्रा०, कामचेप्टा (को०) । ३ परिरभन । आलिंगन (को० । पृ० ७५। हेलि२-- २--सज्ञा पुं० दिनकर। सूर्य । हेवाया-स -सज्ञा पुं० [सं० हिमालि] हिम । वर्फ । पाला । हेलिक-सज्ञा पु० [स०] सूर्य । आदित्य । सविता [को॰] । हेवाफ-सचा पुं० [सं०] उत्कट इच्छा । तीव्र स्मृहा । अत्यत प्रवल हेलिन -वन स्त्री० [हिं० हेला] गलीज उठानेवाली। हलालखोरिन । कामना । कामाचार [को०] । मेहतरानी। विशेष-'लडभ' शब्द की तरह आधुनिक प्रयोग होने के करण अाधु- हेलिनी--सशा स्त्री० [हिं० हेला + इनी (प्रत्य॰)] दे० 'हेलिन' । निक कोशकार इमे अरवी या फारसी से गृहीत मानते हैं और हेलिहिल-वि० [स०] क्रीडाशील । कामुक प्रकृति का । विलासी (को॰] । सस्कृत के 'हेवाकस' शब्द से इसे अलग कहते है। मराठी के हेली@-अव्य० [स० हला, अप० हेल्लि, हिं० सवो० हे + अली] हे शब्द 'हेवा' से भी, जो लोभ, ईर्ष्या, डाह आदि का वाचक है, सखी। उ०-(क) अति ही अधीर भई पीर भीर घरि लई, हेली इसका यह रूप माना गया है । कल्हण, विल्हण आदि के द्वारा मनभावन अकेली मोहिं के चले। घनानद०, पृ० ५६ । (ख) इसका प्रयोग किया गया है। दीपक जोय कहा करूं हेली पिय परदेस रहावे । सूनी सेज जहर हेवाकस-वि० [स०] अत्यत तीव्र । उत्कट । प्रचड [को॰] । ज्यूं लागे सुसक सुसक जिय जावे ।--सतवाणी०, पृ० ७३ । हेवाकी-वि० [सं० हेवाकिन्] जो अत्यत इच्छुक हो । तीव्र लालमा से हेली२ २-महा स्त्री० सहेली। सखी। उ०--भार ही के डरन उतारि युक्त [को। देत आभूषन हीरन के हार देति हेलिन हित हित ।—पद्माकर हेवाना'-सचा पुं० [अ० हैवान] पशु । जानवर । म०, पृ० १६१। हेबान २-- वि० जो पशु या जानवर के तुत्य हो। उ०--आएह बत्तीसी।