पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४७

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। ४ हैरण्यवासी हेरण्यवासा-वि० [स०] जिसमे स्वर्णिम पख लगे हो। जिसका पख आदमी। उजड्ड आदमी । उ०-बुद्धिहीन सुद्धिहीन ही सुनहला हो । जैसे, वाण आदि (को०) । अजान हैवाना-जग० वानी, पृ० ५। हैरण्यिक-सज्ञा पुं० [म०] स्वर्णकार । सुनार [को०] । हैवानियत--मञ्चा स्त्री॰ [प्र. देवानीयन] जडता । बेवकूफी । मूर्खता । हैरत-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १ अाश्चर्य । अचरज । अचभा। तअज्जुब । पशुता। उ--कुछ भी हिंद की हैवानियत अब हममे नही उ०-तो उसकी तेग को हम अाह किस हैरत से तकते है।-- रही।--प्रेमघन, भा० २, पृ० ८८ । भारतेदु ग्र०, पृ० ८४७ । २ एक मुकाम या फारसी राग हैवानी-वि० [अ० हैवान] १ पशु का। पशु सवधो। पशुतापूर्ण । का पुत्र । उ०--गुस्सा हैवानी दूरि कर छाडि दे अभिमान। दुई हैरतअगेज--वि० [अ० हैरत + फा० अगेज] आश्चर्यजनक । अजीबो दरोगा नाहिं खुसियाँ दादू लेहु पिछान ।--दादू०, पृ० ६०० । गरीब । अजूबा [को०] । २ पशु के करने योग्य । जैसे,—देवानी काम । हैरतकदा - सञ्ज्ञा पुं० [अ० हैरत + फा० कदह] वह स्थान जहाँ हर बात हैस.१ -~-सच्चा स्त्री॰ [श०] दे० 'हैम'। उ०--बैर करवंदे हैस सिहोर अाश्चर्यजनक हो (को०] । अनास ।--प्रेमघन०, भा० १, पृ० ७५ । हैरतजदा-वि० [अ० हैरत + फा० जदह] १ चक्ति । विस्मित + हैस' - सज्ञा स्त्री० [अ०] १ कलह । युद्ध । लडाई । २ बुरे रास्ते निम्तब्ध । २ हतबुद्धि । भौचक्का (को०] । लगना । कुमार्ग गति। वेगह (को॰] । हैरतनाक वि० [अ० हैरत + फा० नाक] दे० 'हैरतअंगेज' । हैस बैस-सशा पुं० [अ०] १ बहस मुवाहिमा। विवाद। २ उधेड- हैरती--वि० [अ०] आश्चर्य मे पडा हुा । चकित । निस्तब्ध (को०] । बुन । उलझन । उ०--इसो हैस बस मे रात कट गई। रग- हैरॉ वि० [अ० हैरान] दे० 'हैरान' । उ०—मिली कहां से अक्ल बशर भूमि, पृ० ४६८। को अन्ल सरका यह है हैरां ।-भारतेदु ग्र०, भा० २ हैसियत- सज्ञा स्त्री० [अ०] १ योग्यता । सामर्थ्य । शक्ति । २ वित्त । पृ० ५६६। धनबल । समाई । विसात । आर्थिक दशा । जैसे,--उनकी हैसि- हैराज-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हयराज] उत्तम अश्व । श्रेष्ठ घोडा । उ०- यत ऐसी नही है कि गाडी घोडा रख सके । ३ मूल्य । सत्त हेम हैराज इक दिय पातुर प्रतिदान । - पृ० रा०, ६०।६ । श्रेणी। दरजा । जैसे,--इस मकान की हैसियत के हिसाब हैरान-वि० [अ०] १ आश्चर्य । स्तब्ध । चकित । दग। भौचक्का । से ४,०००) दाम वहुत है। ५ मान मर्यादा । प्रतिष्ठा । तौर । ढग । तरीका । ७ धन दौलत। जायदाद । जैसे,- जैसे,—(क) मैं उसे एकवारगी यहाँ देखकर हैरान हो गया । (ख) ताज की कारीगरी देख लोग हैरान हो जाने है। (२) उसने अच्छी हैसियत पैदा की है। श्रम, कष्ट या झभट से व्याकुल । विकल । ३ परेशान। हैसियतदार--वि० [अ० हैसियत + फा० दार (प्रत्य॰)] १ हैसियत- व्यग्र । तग । जैसे,—तुमने मुझे नाहक धूप मे हैरान किया। वाला। प्रतिष्टित । इज्जतदार । २ मालदार । धनवान । क्रि० प्र०-करना ।—होना । सपन्न [को०] । हैरानी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १ विस्मय । हैरत । आश्चर्य । २ व्यग्रता। हैसियतमद--वि० [अ० हैसियत + फा० मद] दे० 'हैसियतदार' । परेशानी [को०] । हैहय-सज्ञा पुं० [सं०] १ एक क्षत्रिय वश जो यदु से उत्पन्न कहा हैरिक-सज्ञा पुं० [सं०] १ भेदिया। गूढचर । गुप्तचर । २ चोर । गया है। तस्कर [को०)। विशेष--पुराणो मे इस वश की पांच शाखाएँ कही गई है---ताल- हैल-सद्या स्त्री० [अ०] ताकत । जोर । वल । शक्ति [को०] । जघ, वीतिहोत्र, पावत्य तुडिकेर और जात । लिखा है कि हैहयो हैली--अव्य० [सवो० हे + अली] दे० 'हेली' । उ०--हैली तीरथ ने शको के साथ साथ भारत के अनेक देशो को जीता था। जाय बुलाए रे हरदम परबे नहाए ।--कवीर म०, पृ० १७४ । प्राचीन काल का इस वश का सबसे प्रसिद्ध राजा कार्तवीर्य हैवत- [-सञ्चा स्त्री० [अ० हैबत] दे० 'हैबत' । उ०--हैवत से तेरी चर्ख सहस्रार्जुन हुआ था जिसे सहस्र भुजाएँ थी। इसने परशुराम के पिता - यह दीवार झूका। -कवीर म०, पृ० ४६८ । जमदग्नि को मारकर उनकी गायो का हरण कर लिया जिससे हैवर-सज्ञा पुं० [स० हय + वर] सुदर घोडा । उ०—कबीर गरवु क्रुद्ध हो परशुराम ने इसे मारा था। न कीजिए चाम लपेटे हाड । हैवर ऊपर छन्न तर ते फुन धरनी इतिहास मे हैहय वश कलचुरि के नाम से प्रसिद्ध है । विक्रम संवत् गाड ।-कवीर ग्र०, पृ० २५२ । ५५० और ७६० के बीच हैहयो का गज्य चेदि देश और हैवानात--सज्ञा पुं० [अ०] हैवान का वहुवचन । जानवरो का समूह । गुजरात में था। हैहयो ने एक सवत् भी चलाया था जो पशुओ का झुड (को०] । कलचुरि सवत् कहलाता था और विक्रम संवत् ३०६ से हैवान-सज्ञा पुं० [अ०] १. पशु । जानवर । 'इसान' का उलटा । प्रारभ होकर १४ वी शताब्दी तक इधर उधर चलता रहा। २ वनपशु । जगली जानवर (को॰) । हेहयो का शृखलाबद्ध इतिहास विक्रम संवत् ६२० के आसपास धारी। प्राणी (को०)। ४ जड मनुष्य । वेवकूफ या गंवार मिलता है, इसके पूर्व चालुक्यो आदि के प्रसग मे इधर उधर ६ ३ प्राणयुक्त । जीव-