पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४८

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हैहयराज ५५६० होडाहीडी हैहयो का उल्लेख मिलता है। कोकल्लदेव (वि० स० ६२० वहाँ हो। उ०-तू मेरो बालक हो नंदनदन तोहि विसभर राखें । ६६०) मुग्धतुग, वालहर्प, केयूरवर्प (वि० स० ६६c के -पोद्दार अमि० ग्र०, पृ० २३८ । लगभग), शकरगण युवराजदेव (वि० सं० १०५० के लगभग), हो(पु+--नज की वर्तमानकालिक निया 'है' का मामान्य भूत का गागेयदेव, कणदेव ग्रादि बहुत से हैहय राजाप्रो के नाम शिला- रूप। था। उ०- --(क) पहिने हो ही हो तब एक । अमल, लेखो मे मिलते है। अकन, अज, भेद विवजिति मुनि विधि विमल विवेक ।-मूर०, २ हैहयवशी कातवीर्य सहस्रार्जुन । ३ एक देश का नाम जहाँ २।३८ । (ख) दोउ सींग बिच हं हो पायो जहाँ न कोल हो हह्य जाति का निवास था। रसुवया ।-मूर०, १०१३३५ । ४ वृहत्सहिता के अनुसार पश्चिम दिशा का एक पवत । होई -- --सना स्त्री० [हि० होना] एक पूजन या त्यौहार जो दीवाली के हैहयराज--सञ्ज्ञा पुं० [स०] हैहयवशी कार्तवीयं सहस्रार्जुन । उ०-- पाठ दिन पहले होता है। दे० 'अहोई । जब हन्यौ हहयराज इन बिनु छन छितिमटल करया।-- विशेप---इम पूजन को अहोई अष्टमी भी कहते हैं । यह सतान- केशव (शब्द०)। प्राप्ति की कामना से की जाती है। इसमे ऐमी दो स्त्रियो हैहयाधिराज -मज्ञा पुं॰ [सं०] सहन्नार्जुन । उ०--प्रचड हैहयाधिरज की कथा कही जाती हैं जिनमें एक को सतान होती ही नहीं थी दडमान जानिये ।--केशव (शब्द)। तथा दूसरी को सतान होकर मर जाती थी। हैहात--अव्य० [अ] हा हत । हाय । दे० 'है है' [को॰] । होगलाg+-सशा पुं० [देश०] एक प्रकार का नरमल या नरकट । हैहेय --सज्ञा पुं॰ [स०] कातवीर्य सहस्रार्जुन [को॰] । होज--वि० [फा० होज] १ चकित । हैरान। आश्चर्य मे पड़ा हुआ। है है-अव्य० [हा हा] शोक, खेद या दु खसूचक शब्द । हाय । अफसोस । २ तम्त । भयभीत । डरा हुया [को०] । हा हत। होजन-सज्ञा पुं० [फा० होजा( = नरगिस का फूल)] एक प्रकार का हो-त्रि० अ० [H० / भू, प्रा० हव] सत्तार्थक क्रिया 'होना' का बहु हाशिया या किनारा जो कपडो मे बनाया जाता है । वचन सभाव्य काल का रूप । जैसे,—(क) शायद वे वहाँ हो। होटल--सशा ५० [अ॰] वह स्थान जहाँ मूल्य लेकर लोगो को भोजन (ख) यदि वे वहाँ हो तो यह कह देना। कराने या भोजन और ठहरने दोनो का प्रवध रहता है। होकारना पु-क्रि० स० [अनु० सं० हुडकरण] बुलाना । अाह्वान' होठ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रोष्ठ, प्रा०, होछ। दे० 'होठ' । उ०-भूपन करना। उ०-जब साहब हो कारिया ले चल अपने धाम । उतारे साज मडन के दूर डारे ककन ही एक हाथ वाएँ राखि मुक्ति सँदेश सुनाइहीं मैं आयो यहि काम ।-कवीर ग्र०, लीनी है। तातो ताती श्वासन विनास्यो रूप होठन को नीको पृ० ५६४। लाल रग मारि फीको पारि दीनो है।--शकुतला, पृ० १०६ । होठ-मञ्ज्ञा पुं० [स० अोप्ठ, प्रा० होछ, पु० हिं० अोठ] प्राणियो के मुखविवर का उभरा हुआ किनारा जिससे दांत ढंके रहते हैं । होड'-सज्ञा स्त्री॰ [देशी हुड्ड, होड्ड, हिं० होड या स० हार (%D मोष्ठ । रदनच्छद । लडाई, विवाद)] १ दूसरे के साथ ऐसी प्रतिज्ञा कि कोई बात मुहा०—होठ काटना या चबाना भीतरी कोध या क्षोभ प्रकट यदि हमारे कथन के अनुसार न हो, तो हम हार मानें और कुछ दें। शतं । वाजी। करना। होठ चाटना = किसी बहुत स्वादिष्ट वस्तु को खाकर अतृप्ति प्रकट करते हुए और खाने की इच्छा या लालच क्रि० प्र०-बदना।—लगाना । करना। जैसे,- हलवा ऐसा बना था कि लोग होंठ चाटते रह २ एक दूसरे से बढ जाने का प्रयत्न । किसी बात मे दूसरे से गए। होठ चिपकना = मीठी वस्तु का नाम सुनकर लालच अधिक हाने का प्रयास । स्पर्धा। ३ यह प्रयत्न कि जो दूसरा होना । होंठ चूसना = होठो का चुबन करना । होठ मिलाना = करता है, हम भी करेगे। समान होने का प्रयास । बरावरी । चुवन करना । दे० 'होठ चूसना' । होंठ सी लेना = किसी उ०—होड सी परी ह मानो घन घनश्याम जू सो दामिनी को बात पर एकदम चुप हो जाना। कुछ भी न कहना। मौन हो कामिनी को दोऊ अक मे भरे।-तोष (शब्द)। जाना । होठ हिलाना = बोलने के लिये मुंह खोलना । बोलना। क्रि० प्र०-पडना । होठल--वि० [हिं० होठ + ल (प्रत्य॰)] जिसके प्रोष्ठ स्थूल हो । ४ हठा अड। जिद । मोटे होठोवाला। होड'--सञ्चा पु० [सं० होड] तरेदा । नाव । वेडा । होठी-सज्ञा स्त्री० [हिं० होंठ] १ वारी। किनारा । ओंठ । २ छोटा होडा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० होड] लुटेरा। चोर । डाकू किो०] । टुकडा। होडा-सज्ञा पुं० [देशी० हुड्ड, होड्ड] दे० 'होड' । उ०--प्राननाय हो'--सञ्ज्ञा पुं० [40] पुकारने का शब्द या सवोधन । से होडा लागल ब्रह्म पदारथ पाई री।-गुलाल वा०, पृ०६५। हो-क्रि० अ० [स० /भू, प्रा० हव, हो] १ सत्तार्थक क्रिया होना' के होडावादी--सज्ञा स्त्री॰ [हि. होड + बदना] होडा होडी । अन्य पुरुष सभाव्य काल तथा मध्यम पुरुष बहुवचन के वर्तमान होडाहोडी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हि० होड] १ दूसरे के बराबर होने या दूसरे काल का रूप । जैसे,-(क) शायद वह हो। (ख) तुम से बढ़ जाने का प्रयत्न । लागडाँट । चढ़ाऊपरी । उ०-- 1