पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२५

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स्तंभनी ५३३७ स्तनपोषिक ] होना । स्वस्थचित्त होना (को०)। ११ दृढ या कडा करना (को०)। १२ दवाना । नियत्रित करना (को०)। १३ स्तभवत् करने की क्रिया । स्तभ करना (को०)। स्तभनी-सज्ञा स्त्री० [स० स्तम्भनी] एक प्रकार का इद्रजाल या जादू । स्तभनीय-वि० [स. स्तम्भनीय] स्तभन के योग्य । स्तभपूजा-सञ्ज्ञा पु० [स० स्तम्भपूजा] विवाह, यज्ञ प्रादि के समय मडप मे गडे खमे की पूजा। स्तभमित्र-सञ्ज्ञा पु० [स० स्तम्भमित्र] एक महर्पि का नाम । स्तभवृत्ति-- [--सज्ञा स्त्री० [स० स्तम्मवृत्ति] प्राण को जहाँ का तहाँ रोक देना, जो प्राणायाम का एक अग है। स्तभि-सज्ञा पु० [स. स्तम्भि] समुद्र । सागर। स्तभिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्तम्भिका] १ चौकी या आसन का पाया। २ छोटा खभा। खभिया । स्तभित--वि० [स० स्तम्भित] १ जो जड या अचल हो गया हो । जडीभूत । निश्चल । निस्तब्ध । सुन्न । २ ठहरा या ठहराया हुा । स्थित । ३ रुका या रोका हुा । अवरुद्ध । निवारित । ४ एकत्रीकृत या भरा हुअा (को०) । यौ०-स्तभितवाष्प = जिसका वाष्प या अश्रु रुक गया हो। स्तभितवाष्पवृत्ति = उमडते आँसुओ को रोक लेनेवाला । स्तभितवाष्पवृत्तिकलुप = उमडते अाँसुप्रो को रोक लेने से जिसकी दृष्टि धूमिल या अस्पष्ट हो गई हो। स्तभिताश्रु--वि० [स० स्तम्भिताश्रु] जिमके अश्रु आँखो मे ही रुक गए हो । रुके हुए अाँसुग्रोवाला । स्तभिनी-सज्ञा स्त्री० [म० स्तम्भिनी] १ योग के अनुसार पाँच धारणाश्रो मे से एक । २ पच तत्त्वो मे से एक । क्षिति पृथ्वी (को०)। स्तभी'-वि० [म० स्तम्मिन्] १ स्तभ या खभो से युक्त । २ अवरुद्ध करने या रोकनेवाला। ३ दाभिक । ४ सहारा देनेवाला । स्थिर करनेवाला (को०)। स्तभी-सज्ञा पु० समुद्र। स्तभोत्कीर्ण-वि० [स०] जो स्तभ पर उत्कीर्ण हो । खभो पर उकेरा हुपा (प्रतिमा, चिन्न आदि)। स्तत्क--सज्ञा पु० [स०] कतरा । बूंद । ठोप । विदु (को०] । स्तनध-वि० [स० स्तनन्ध] दे० 'स्तनधय' । स्तनधयः-सज्ञा पु० [स० स्तनन्धय] [मी० स्तनधया, स्तनधयी] १ दूधपीता वच्चा । स्तनपायी शिशु । २ बछडा । वत्स । स्तनधयः-वि० दूधपीता । स्तनपान करनेवाला। स्तन-सज्ञा पुं० [म०] १ स्त्रियो के वक्ष पर उभरनेवाला विशेप अग। कुच । २ मादा पशुओ का थन या छाती जिसमे दूध रहता है। जैसे,—गौ का स्तन । ३ कुच का अग्रभाग। चूचुक । स्तन की घुडी (को०)। मुहा०-स्तन पिलाना = स्तन मुंह मे लगाकर उसका दूध पिलाना । स्तन पीना = स्तन मुह मे लगाकर उसका दूध पीना। स्तनकलश-सशा पुं० [स.] कलश के जैसे स्तन [को०] । स्तनकील-सज्ञा पुं० [म०] वैद्यक के अनुमार स्त्रियो की छाती मे होनेवाला एक प्रकार का फोडा । स्तनकुड ड-सज्ञा पुं॰ [स० स्तनकुण्ड] महाभारत मे वर्णित एक प्राचीन तीर्य का नाम । स्तनकुभ--सज्ञा पु० [स० स्तनकुम्भ] दे० 'स्तनकलश' । स्तनकुड्मल--सज्ञा पुं० [स०] नारी का कुच । स्तन (को०] । स्तनकोटि-सज्ञा पुं० [सं०] स्तन का अग्रभाग। चूचुक किो॰] । स्तनकोरक-सज्ञा पु० [स०स्तन जो कोरक या कली सदृश हो । स्तनग्रहं-सज्ञा पु० [स० स्तनपान स्तन्यपान [को०) स्तनचूचुक-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्तन का अग्रभाग । कुच के ऊपर की घुडी। चूंची । ढेपनी। स्तनतट-मवा पुं० [स०] स्तनो का तट भाग । स्तनो का ढालवाँपन या उभार [को०] । स्तनत्याग-सज्ञा पुं० [म०] बच्चे का दूध पीना छोड देना [को०] । स्तनथ--मज्ञा पुं० [स०] १ घोर या भीषण नाद । गडगडाहट । २ (शेर की) दहाड । गरज । गर्जन। स्तनथु--सज्ञा पु० [स०] (शेर की) दहाड । गरज । स्तनदात्री-सज्ञा स्त्री० [स०] छाती का दूध पिलानेवाली। स्तनद्वेषी--वि० [स० स्तनद्वेपिन्] जो स्तन को ग्रहण न करे (शिशु) । स्तनन-सञ्ज्ञा पुं० [०] १ ध्वनि । नाद । शब्द । आवाज । २ वादलो को गडगडाहट । मेघगर्जन। ३ गुर्राना (को०)। ४ कराह । आह । पार्तध्वनि । ५ जोर से साँस लेना। कठिनाई से साँस लेना (को०)। ६ कफ आदि के कारण साँस लेने मे होनेवाली खरखराहट (को०)। स्तनप-सज्ञा पुं० [स०] [स्त्री॰ स्तनपा, स्तनपायिका] स्तनपायी शिशु । दूधपीता बच्चा । शिशु । स्तनप-वि० स्तन पीनेवाला। स्तनपतन-सज्ञा पु० [सं०] स्तनो का तनाव ढीला होना या लटक जाना (को०] । स्तनपाता--मज्ञा पु०, वि० [स०] दे॰ 'स्तनप' । स्तनपान --सज्ञा पु० [स०] स्तन मे का दूध पीना। स्तनपायक---सचा पु० वि० [स्त्री० स्तनपायिका] दे० 'स्तनप' (को०] । स्तनपायिक-सज्ञा पुं० [स०] स्तनपोपिक नाम का एक जनपद । स्तनपायिका--सज्ञा स्त्री० [स०] दूधपीती वच्ची । बहुत छोटी लडकी। दुग्धपोण्या। स्तनपायी-वि० [पु० स्तनपायिन्] जो माता के स्तन से हो। स्तनप। स्तनपोषिक-सहा पु० [सं०] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन जनपद जिसे स्तनपायिक, स्तनपोपिक और स्तनयोधिक भी कहते थे। 1 दूध पीता