पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२६

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स्तन स्तनवाल ५३३८ स्तन्या स्तनवाल - सधा पुं० [सं०] १ विष्णुपुराण में वर्णित एक प्राचीन स्तनाभुज-सज्ञा पुं० [सं०] वह प्राणी जो अपने बच्चो को स्तन से जनपद । २ इस देश का निवासी। दूध पिलाता हो। स्तनाभोग-ममा पु० [सं०] १ स्तन की पूर्णता या पुष्टता । २ स्तन स्तनभर-सञ्चा पुं० [स०] १ स्यूल या सुपुष्ट स्तन । बडी और पुष्ट छाती। २ वह पुरप जिसका स्तन या छाती स्त्री के समान हो। का ग्राभोग या घेरा (को०)। ३ वह व्यक्ति जिमके स्तन औरतो की तरह हो (को०)। स्तनभव'-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रतिवध या सभाग का स्तनावरण--सहा पुं० [स०] स्तन ढकने का कपडा । स्तनाशुक । ग्रासन । स्तनभव-वि० स्तन से उत्पन्न । स्तनित'-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ मेघगर्जन। वादलो की गरज । २ ध्वनि । शब्द । आवाजे । ३ धनुप अादि की प्रन्यचा की स्तनमध्य-सज्ञा पु० [स०] १ दोनो स्तनो के बीच का या मध्यवर्ती स्थान । २ कुचाग्र । चूचुक (को०) । अावाज । धनुप की टकोर (को०)। ४ करतल ध्वनि । ताली बजाने का शब्द। स्तनमुख-सज्ञा पु० [स०] स्तन या कुच का अगला भाग । स्तनित-वि० १ ध्वनित । निनादित । शब्दित । २ गर्जन किया की घुडी । चूचुक । चूची। हुअा। गर्जित । स्तनमूल-सज्ञा पुं॰ [स०] स्तन का मूल भाग या स्तन का तट । स्तनितकुमार--सज्ञा पुं० [सं०] जनो के देवताग्रो का वर्ग । इन्हें भवना- स्तनयित्नु -सज्ञा पुं० [सं०] १ मेघगर्जन । वादलो की गडगडाहट । धीश भी कहते हैं। २ मेघ । बादल । ३ विद्युत् । विजलो। ४ मोथा । मुस्तक । स्तनितफल-सञ्ज्ञा पु० [स०] कटाय का पेड । विककत वृक्ष । ५ मृत्यु । मौत । ६ रोग । बीमारी । स्तनितसमय-ज्ञा पुं० [सं०] वादलो के गर्जन का काल । यौ० -स्तनयित्नु घोप = मेघनिर्घोप के समान गडगडाहट । स्तनितसुभग-क्रि० वि० [सं०] अानददायक गर्जन के माय। प्रानद- स्तनरोग-सञ्ज्ञा पुं० [म०] गर्भवती और प्रसूता स्त्रियो के स्तनो मे प्रद गर्जन करते हुए [को०] । होनेवाला एक प्रकार का रोग । स्तनी--वि० [स० स्तनिन्] १ जिसके स्तन हो। स्तनयुक्त। स्तन- विशेप-वैद्यक के अनुसार यह रोग वायु, पित्त और कफ के कुपित वाला । जैसे, सुस्तनी, अर्थात् सुदर स्तनोवाली। २ एक प्रकार होने से होता है। इसमे स्तन का मास और रक्त दूपित हो के विकृत रूपवाले अश्व के लिये प्रयुक्त । जाता है । इसके पाँच भेद हैं-वातज, पित्तज, कफज, सन्नि- स्तनोत्तरीय-सज्ञा ० [म०] दे० 'स्तनाशुक' । पातज और पागतुज । स्तन्य'-सज्ञा पुं॰ [स०] दूध । दुग्ध । स्तनरोहित-सचा पु० [स•] स्तन या कुच के अग्र भाग के ऊपर स्तन्य-वि० जो स्तन मे हो। दोनो ओर का अग जो सुश्रुत के अनुसार परिमाण मे दो अगुल होता है। स्तन्यजनन-वि० [सं०] दूध उत्पन्न करने या बतानेवाना। स्तनविद्रधि-सज्ञा पुं० [स०] स्नन पर होनेवाला फोडा । थनली । स्तन्यत्याग--सञ्ज्ञा पु० [सं०] शिशु द्वारा माता का दूध पीना छोड देना किो०] । स्तनवृत-सज्ञा पुं० [स० स्तावृन्त] स्तन या कुच का अग्रभाग । स्तन्यद--वि० [स०] स्नन्य देनेवाला। गच्छा दुग्ध उत्पन्न करने- चूचुक । चूची। वाला (को०] । स्तनवेपथु -सञ्ज्ञा पु० [स०] छाती की धडकन । स्तनो का कपन या स्तन्यदा-वि० सी० [स०] जिसके स्तनो मे से दूध निकलता हो। थरथराना [को॰] । दूध देनेवाली। स्तनशिखा-पशा स्त्री॰ [म०] -नन का अग्रभाग। चूचुक । ढेपनी। स्तन्यदान-सा पुं० [सं०] १ म्तन से दूध पिलाना। स्तन्य का दान कुचाग्र । ची। कराना । २ स्तन का दूध देना (को॰) । स्तनशोष -सज्ञा पु० [म०] एक प्रकार का रोग जिसमे स्तन सूख स्तन्यप'--वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० स्तन्यपा] स्तन या दूध पीनेवाला । स्तन्यप-सा पु० दूधपोता बच्चा। शिशु । स्तनागराग-मछा पुं० [सं० मनाङ्गराग] स्तनो पर लगाने के लिये स्तन्यपान-तशा पु० [स०] १ स्तन का दूध पीना । २ सुगधित द्रव्यो का मिश्रित लेप या चूर्ण (को० । का काल । शिशु अवस्था । स्तनातर-सहा पुं० [मं० स्तनान्तर] १ हृदय । रिल । २ स्तनो का स्तन्यपायी-वि० [स० स्तन्यपायिन्] जो स्तन से दूध पीता हो । स्तन मध्यवर्ती भाग । ३ स्तन या छाती पर का चिह्न जो वैधव्य पीनेवाला । दूधपीता। मूत्रक समझा जाना है । स्तन्यभुक्, स्तन्यभुज्-वि० [स०] दुधमुहाँ । दूधपीता [को०] । स्तनाशुक-मज्ञा पुं॰ [मं०] स्तनो पर वाँधने का वस्त्र । कुचपट्टिका। स्तन्यरोग-सज्ञा पु० [म.] अस्वस्थ या रोगिणी माता का दूध पीने से स्तनाग्र-मज्ञा पुं० [म०] स्तनो का अग्रवर्ती अश । चूचुक । ढेपनी। होनेवाला रोग। स्तनशिखा (को०)। स्तन्या--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] कलमी शाक । कलबी साग। + जाते हैं। स्तन्य पीने