पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२७

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स्तवक ५३३६ स्तवकर मोटा। स्थूल। । स्तवक-ससा पुं० [सं०] १ गुच्छ । गुच्छा। २ गुलदस्ता । ३ मोर स्तब्धरोमा--वि० जिसके रोम या रोगटे खडे हो गए हो । स्तभित । की पूंछ । मयूरपिच्छ। ४ रेशम का लच्छा । ५ नमूह । स्तब्धलोचन-वि० [स०] जिनकी पतकें नहीं गिरती (देवताओ के लिये ६ किसी पुस्तक का एक भाग या अध्याय (को०) । मुख्धत प्रयुक्त)। अनिमिपनेद । अपलकलोचन [को०)। स्तवकखड--सज्ञा पुं० [स० स्तवकखण्ट] एक कद [को०] । स्तवकफल--सज्ञा पुं० [सं०] एक फल [को०] । स्तब्धवपु---वि० [स० स्तब्धरपुम्] जिसके शरीर की चेष्टाएँ रुक गई हा (को०)। स्तवकसनिभ--वि० [सं० लवकसन्निभ] गुच्छे के तुल्य । गुच्छे के स्तब्धसभार--सर पु० [मं० स्तब्धगम्भार] एक गक्षम का नाम । समान । गुच्छे सा (को० । स्तब्धसक्थि--वि० [म०] जिसकी जाँधे बेकार हो गई हो । लँगडा । स्तवकाचित--वि० [म०] स्तवक या पुप्पो से ढका हुअा किो०] । स्तब्धहनु-वि० [म०] जिमके जबडे गतिशून्य हो (को०] । स्तवकित-वि० [स०] स्तवको से युक्त । पुप्पो की राशि या ढेर से स्तब्धाक्ष-वि० [स०] २० 'स्तब्धदृष्टि [को०] । भरा हुअा (को०] । स्तब्ध'--वि० [सं०] १ जो जड या अचल हो गया हो। जडीभूत । स्तब्धि---सशा ली० [स०] १ स्थिरता। कडापन । २ ढढना । प्रच- स्तभित । स्पदनहीन । निश्चेष्ट । सुन । २ मजबूती से ठह- लता। ३ जटता। अमवेद्यता। ४ ढिठाई । धृष्टता (को०] । राया या सहारा दिया हुआ। ३ दृढ । स्थिर। ४ मद । स्तब्धोद-वि० [स०] दे० 'स्तब्धतोय' । धीमा । सुस्त । ५ दुराग्रही। हठी । ६ अभिमानी । घमडी । स्तभ-सज्ञा पु० [०] वकरा। ७ निठुर । निष्ठुर (को०) । ८ रद्ध । रोका हुआ (को०)। ६ स्तभिमशा सी० [म०] १ असवेद्यता । जउना। २ कठोरता । १० बेडौल । भद्दा (को०)। ११ गतिहीन दृढना (को०)। (को०) । १२ कठोर । कडा । स्तर--सञ्ज्ञा पु० [स०] १ तह। परत । तवक । थर । २ सेज । स्तब्ध'--सञ्ज्ञा पु० वशी के छह दोपो मे से एक जिसमे उमका स्वर शय्या। तत्प। ३ कोई वस्तु जो फैली हुई हो (को०)। ४. कुछ धीमा होता है। सतह । तल (को०)। ५ मानदड। श्रेणी। कोटि । मान स्तब्धकर्ण-वि० [स०] जिसके कान खडे हो [को०] । (अ० स्टैडर्ड)। ६ भूगर्भ शास्त्र के अनुसार भूमि अादि का स्तब्धगात्र--वि० [स०] जिसके अग स्तब्ध हो या जिसने अपने अगो एक प्रकार का विभाग जो उमकी भिन्न भिन्न कालो मे बनी हुई को कठोर कर लिया हो [को॰] । तहो के आधार पर होता है । स्तब्धता-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ स्तब्ध भाव । जडता । २ निश्चेष्टता। स्तर--वि० [सं०] फैलनेवाला । विस्तृत होनेवाला [को॰] । स्पदनहीनता । २ स्थिरता । दृढता। ४ गरवीलापन । घमड। स्तरण-सज्ञा पु० [म.] १ फैलाने या बिखेरने की क्रिया। २ अस्तर- गर्व । ५ बहरापन । बधिरता। कारी। पलस्तर । ३ बिछौना। बिस्तर। स्तब्धतोय--वि० [स०] जलाशय अादि जिसका पानी स्थिर या जम स्तरणीय-वि० [स०] १ फैलाने या बिखेरने योग्य । २ विछाने गया हो किो०]। स्तब्धत्व--सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'स्तब्धता' । स्तरिमा-मज्ञा पुं० [म० स्तरिमन्) मेज । शय्या । तल्प । स्तब्धदृष्टि--वि० [म०] जिसकी टकटकी बंध गई हो। जिसकी पलके स्तरी-सज्ञा सी० [स०] १ धू । धूम्र । २ भाप । वाप्प (को०) । ३ न गिर रही हो को। वध्या गो (को०) । ४ वत्सतरी। वछिया (को०)। स्तब्धनयन-वि० [१०] दे० 'स्तब्धदृष्टि' स्तरीमा-मश पुं० [स० स्तरीमन् ] मेज । शय्या। स्तब्धपाद---वि० [स०] १ जिमफे पर रोग प्रादि से जकड गए हो । स्तरु-सज्ञा ० [स०] शत्रु । वरी । २ सज। लँगडा । पगु। स्तर्य-वि० [३०] १ फैलाने या विचरने योग्य । २ विछाने योग्य । स्तब्धपादता--सज्ञा स्त्री० [०] स्तब्धपाद होने का भाव । खजता । स्तरणीय। पगुता । लँगडापन। स्तव-सज्ञा पुं० [स०] १ किसी देवता का छदोवद्ध स्वरूपकथन या स्तब्धवाहु-वि० [सं०] जिसकी भुजाएँ सुन्न या निष्क्रिय हो गई गुणगान । नुनि । न्तोन । जैसे,-शिवस्तव, दुर्गास्तव । २ ईश- हो पिो०। प्रार्थना । ३ प्रशस्ति । प्रशमा (को०)। ४ एक पदार्थ (को०)। स्तब्धमति-वि० [स०] मदबुद्धि । कुदजेहन । स्तवकर--सरा पु० [स०] १ फूनो का गुच्छा । गच्छक । गुलदस्ता । स्तब्धमेढ़-वि० [स०] जिसकी पुरपेंद्रिय मे जडता आ गई हो। २ ममूह । टेर। ३ पुस्तक का कोई अध्याय या परिच्छेद । क्लीव । नपुसक। जने,-प्रथम स्तवक, द्वितीय स्नवक । ४ मोर को पूंछ का पख । स्तब्ध रोमकूप-वि० [सं०] जिनके रोमछिद्र अवरुद्ध हो। ५ रतव । स्तोन्न । ६ वह जो पिसी की स्तुति या न्तद करता स्तब्धरोमा-सग पुं० [स० स्तव्धरोमन्] सूगर । शूकर । हो । गुणकीर्तन करनेवाला व्यन्ति । वदी । स्तुतिपा। हिं० ०११-२ योग्य।