पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्तोकका स्तुतिमंत्र ५३४१ स्तुतिमन -मचा पुं० [स० स्तुतिमन्त्र] नवनबोधक मन या ऋचाएं। स्तूपविव--मग पुं० [म० स्तूपविम्ब दे० 'स्तूपमडल' । वह मन जिसमे किसी की स्तुति की गई हो। स्तूपमडल-पला पुं० [स० स्तूपमण्डल स्तूप की परिधि । स्तूप का स्तुतिवाचन-स -सज्ञा पुं० [H०] दे॰ 'स्तुनिवाद । धेरा को । स्तुतिवाद- डा पु० [म०] प्रशसात्मक कथन । यशोगान । गुणगान। स्तूपभेद -पण पु० [म०] १ स्तूप को ध्वस्त करना। २ स्तूपो का स्तुतिवादक-सज्ञा पुं० [मं०] १ स्तुति या प्रगमा करनेवाला । प्रश प्रकार, उनकी भिन्नता या भेद । सक । २ खुशामदी। चाटुकार । उ०-धनेश्वर भी स्तुतिवादक स्तूपभेदक-सज्ञा पं० [म०] वह जो स्तूप को ढहाता या नष्ट भ्रप्ट को यथायवादक जानकर उसी से वार्तालाप करता है।- करता हो। गदाधर सिंह (शब्द०)। स्तृ--मज्ञा पु० [म०] तारा (को०) । स्तुतिव्रत-सञ्ज्ञा पु० [स०] वह जो स्तुति करे । स्तुतिपाठक । स्तृत--वि० [सं०] १ ढका हुअा। आवृत। आच्छादित । २ फैला स्तुतिशब्द-सज्ञा पु० [स०] प्रशमात्मक वचन। स्तुतिपरक वचन । हुआ । विस्तृत । स्तुतिवाद । [को०। स्तृति--प --पज्ञा स्त्री॰ [स०] १ ढांकने की निया। आच्छादन । २ स्तुतिशील-वि० [स०] जो स्तुति या कोनिगान के कार्य मे पटु एव विस्तार। फैलाव। विस्तृति (को०)। ३ फैलाने की क्रिया । कुशल हो 'को०)। फैलाना (को०)। ४ आच्छादन का वस्त्र (को०) । स्तुत्य-वि० [म०] स्तुति या प्रशसा के योग्य । प्रशसनीय । स्तेन--सज्ञा पु० [म०] १ चोर। चौर | तस्कर । २ एक प्रकार ३ चोरी करना। का सुगधित द्रव्य । चोर नानक गधद्रव्य । स्तुत्यव्रत-सज्ञा पु० [स०] १ हिरण्यरेता के एक पुत्र का नाम । २ भागवत के अनुसार एक वर्ष का नाम जिसके अधिष्ठाता देवता चुराना। स्तुत्यव्रत माने जाते है। यौ०--स्तेननिग्रह = (१) चोरो का निग्रह, शासन या दड। (२) चोरी को बद करना। चौरकार्य का दमन करना । स्तेनहृदय = स्तुत्या-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ नलिका नामक गधद्रव्य । नली। पवारी। पक्का चोर । शातिर चोर । २ गोपीचदन । सौराष्ट्री। स्तेम-एज्ञा पु० [म०] नमी । गीलापन । आर्द्रता। स्तुनक-सज्ञा पु० [स०] छाग । वकरा । स्तेय'-खी० पु० स०] १ चोरी। चौर्य । रहजनी । गोप्य या स्तुभ--सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ एक प्रकार की अग्नि । २ छाग । वकरा । सबसे चुरा छिपाकर रखने लायक वस्तु। ३ चोरी की जाने स्तुभ्वन--वि० [स०] स्तुति करनेवाला। के लायक या चोरी गई वस्तु (को॰) । स्तुव--सज्ञा पुं० [स०] घोडे के सिर का एक अग । स्तेय-वि० जो चोरी गया हो या चुराया जा सके। स्तुवत्-वि० [स०] स्तुति करनेवाला या स्तुति करता हुआ । स्तेयकृत् [--वि० [स०] चोरी करनेवाला । चोर । स्तुवत्' --सज्ञा पु० १ स्तावक । स्तुति करनेवाला व्यक्ति । २ उपा स्तेयफल--मज्ञा पुं० [सं०] तेजवल का पेड । सक। पूजक। स्तेयी--सज्ञा पुं० पुं० [सं० स्तेयिन्] १ चोर । चौर । २ मूसा । वन- स्तुवि- --सज्ञा पु० [स०] १ स्तुति करनेवाला। स्तावक । २ उपासक । मूपिक । चूहा । ३ सुनार । स्वर्णकार । पूजक । ३ यज्ञ। स्तैन-मशा पु० [म०] दे० 'स्तन्य' । स्तुवेय्य-सज्ञा पु० [स०] इद्र ।। स्तैन्य--सन्चा पु० [सं०] १ चोर का काम । चोरी। २ चोर। स्तुपेण्य-वि० [म०] दे॰ 'स्तुवेय्य' [को०] । तस्कर। स्तुषेय्य-वि० [सं०] १ स्तुति करने योग्य । स्तुत्य । २ श्रेष्ठ। स्तमित्य-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ स्थिरता। कठोरता। २ जडता । सुन्नपना को०) । स्तोक' स्तूप-सशा पु० [स०] १ मिट्टी आदि का ढेर। अटाला । राशि । - सज्ञा पुं० [सं०] १ बूंद। विदु। २ पपीहा। चातक। २ ऊँचा ढूह या टीला । ३ मिट्टी, ईंट, पत्थर आदि का बना ३ जनो के कालविभाग मे उतना समय जितने मे मनुष्य सात ऊँचा ढूह या टीला जिसके नीचे भगवान् बुद्ध या किसी वौद्ध बार श्वास लेता है । ४ स्फुलिग । चिनगारी (को०)। महात्मा की अस्थि, दाँत, केश या इसी प्रकार के अन्य स्मृति- स्तोक-वि० १ अल्प। थोडा । २ लघु। छोटा । ३ किंचित् । चिह्न सरक्षित हो। ४ केशगुच्छ। लट। ५ मकान मे का कुछ। ४ अधम । निम्न । नीच को०)। सवसे वडा शहतीर । जोता । ६ शवदाह के लिये क्रम से एकत्रित स्तोकक'-वि० [स०] १ स्वल्प । योडा । २ किंचित् किो०] । लकडियो का ढेर । चिता (को०) । ७ शक्ति । क्षमता (को०)। स्तोकक-सञ्ज्ञा पुं० [म०] १ चातक पक्षी । २ एक प्रकार का विप। स्तूपपरिधि--मशा स्त्री० [म०] स्तूप की परिधि या घेरा। दे० 'स्तोतक' को०)। स्तूपपृष्ठ--पञ्चा पुं० [म०] कच्छप । कछुप्रा । स्तोककाय-वि० [म०] लवु शरीरवाला । बीना । छोटा (को० । अटलता। उत्तम । अच्छा।