पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/३२

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स्त्रीपुसलिगी स्त्रीप युक्त (को०)। स्त्रीपु सलिंगी-वि० [सं० स्त्रीपु सलिजिन्) स्त्री और पुरुप चितो रन्त्रीरत्न--Tul K० [...] १ मा । श्री। न्त्रीम्पी रन । बैंड म्ना (को०)। स्त्रीपुर-सज्ञा पुं॰ [सं०] अत पुर । जनानखाना । स्त्रीगज्य--मरण पु० [40] मराभागामार प्रानीन बात का प्रदेश जता रिजया गोही ली थी। स्त्रीपुष्प-सज्ञा पु० [स०] रज । प्रातव । स्त्रीपूर्व-वि० [म०] २० 'स्त्रीजित्' । रवीलपट--वि० [सं० म्बी नम्पट] जी की गा मामना करनेवाला। वामी। विपत्री। स्त्रीप्रज्ञ-वि० [स०] श्रीरता के समान बुद्विवाला पो०) । स्त्रीगणि-मका पी० [46] Tम गीगणियां । देवीक्षेत्र। स्त्रीप्रत्यय--सा पुं० [म०] स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिय शब्द के अत मे जुडनेवाला प्रत्यय (को०] । म्नीललग-पु. [HOJी गधी पानिल वि०] । रत्री नलग-वि० जियो । गगान निना या योजाना hिo] । स्त्रीप्रसग--147 पुं० [स० स्त्रीप्रमग] मैथुन । स भोग । स्त्रीलिग--17 ० [म. ग्नोतिना १ नग। गोनि । २ दिी स्त्रीप्रसू--मशा रसी० [म०] दे० 'स्त्रीजननी' । चाकरण २ र दो प्रकार के निर्गी मे मे पर जो स्त्री- स्त्रीप्रिय'-पसा पु० [म.] १ ग्राम । पाम्रवृक्ष । २ अशाक। चाचाहाना । जमे घोडा शद पुतिग प्रो. घोरी ग्त्रीनिंग है। स्त्रीप्रिय'-वि० जिमे स्त्रियां प्यार करें । जो स्त्रियो को प्रिय हो। म्बीलोल--- [१०] ३० चीनपट' । स्त्रीप्रेक्षा–सना नो• [म०] स्त्रियो को दिखाने योग्य रोल [फो० । ग्वीलील्य-पु. [४०] ची ग्राम प्रोरतो की ना (यो । स्त्रीवध-सज्ञा पुं० [स० स्त्रीवन्ध] म भोग । मयुन । रत्नीवण-पि० [१०] -नो पे अनुसार चलनेवाला । ग्रीन का गुलाम । स्त्रीवाध्य--सा पुं० [०] स्त्रियो के द्वारा तग किया जानेवाला स्त्रीवश्य-वि० [40] २० 'म्बीग । व्यक्ति (को०)। स्त्रीवार - 31 पु० [मनोम, उध और गुरपार । स्त्रीवुद्धि--सशा पुं० [स०] १ स्त्रिया जैसी ममझ । २ स्त्रियों को राय । जनानी राय (को०] । विशेप-ज्यातिष मे नत्र, गुध और शुभ ये तीनों बारह माने गए हैं, अत इनोति भोग्नीवार पर जात है। स्त्रीभव--सा पु० [स०] दे० 'स्त्रीत्व' । स्त्रीवाम-सबा पं० [सं० स्त्रीवामन्] वह पन्त्र जो रतिवध या मनोग स्त्रीभूपण-सच्चा पुं० [म०] केवडा । केतकी । T समय । निय उपयुगत हो । २ वल्मीक। रिमोट (10) । स्त्रीमोग-सहा पु० [मं०] मैथुन । प्रमग । ग्वीवाह-शा . [म.] मानदेय पुगण में परिणत एक प्राचीन स्त्रीमडल+--सज्ञा पुं० [स० स्त्रीमण्डल] एक प्रकार का वाद्य जापद । यन। उ०-स्त्रीमडल सुर श्री जलतरग ।-ह० गसो, स्त्रीविजित-वि० [40] २० रोजिन् । पृ० ११०। स्त्रीवित्त-गा . [०] १ स्त्री धन । ३० 'स्त्रीधन' । २ मौरत स्त्रीमत्र--सक्षा पु० [स० स्त्रीमन] १ वह मन्न जिमके अत मे 'स्वाहा' द्वारा प्राप्त धन। हो। २ स्त्रियो की तिकडम ग तरकीय (को०) । ३ स्त्री का स्त्रीविवेय -[20] जो पत्नी या स्त्री के द्वारा नामित हो कि । परामश । औरता की राय (को०)। स्त्रीमय--वि० [म०] स्त्रीरूप । जनाना । जनवा । स्त्रीविवाह-रामा पं० [म०] स्त्री के नाथ विवार पसा करना। स्त्रीवियोग-ससा पु० [५०] पत्नी से पृथा होना पिले | स्त्रीमानी'-सज्ञा पुं० [स० स्त्रीमानिन्] माकडेयपुराण के अनुसार ग्वीविपय - ममा पृ० [स०] सभोग । न्त्रीमगर्ग । मयुन । भीत्य मनु के पुत्र का नाम । स्त्रीमानी--वि० अपने को स्त्री समझनेवाला। दे० 'स्त्रियम्मन्य' [को०]। स्त्रीवृत-वि० [मं०] स्त्रियों से घिरा हुआ या सेवित । स्त्रीव्यजन-गरा पुं० [सं० स्त्रीव्यजन] स्तन प्रादि चिह्न जिनसे स्त्रीमाया-सज्ञा स्त्री॰ [स०] नारी का कौशल । नारी का छलबल [को०] । स्त्री होने का बोध होता है। स्त्रीमुखप-सज्ञा पुं॰ [स०] १ मौलसिरी। वकुल । २ अधरपान यौ०-स्त्रीव्यजन गत = कन्या जिसमे स्त्रीत्व के व्यजक चिह्न (को०) । ३ अशोक (को०)। व्यक्त हो। स्त्रीम्मन्य-वि० [स०] दे० 'स्त्रियम्मन्य' । स्त्रीवरण-सज्ञा पुं० [म.] योनि । मग । स्त्रीयन-सभा सी० [० स्त्रीयन्त्र] मशीन के समान स्त्री। वह स्त्री स्त्रीव्रत-सज्ञा पुं० [०] अपनी स्त्री के अतिरिक्त दूसरी स्त्री को जो व्यवहार मे मशीन जैसी हो। यत्रवत् व्यवहार करनेवाली कामना न करना । एकस्त्रीपरायणता। एकपत्नीव्रत । उ०- औरत (को०] । पातिव्रत और स्त्रीव्रत धर्म नष्ट होना ।-सत्याप प्र० स्त्रीरजन-सक्षा पुं० [#० स्त्रीरञ्जन] पान ! तावूल । (शब्द०)। स्नीरज-सचा पं० [१० स्त्रीरजस्] मासिक स्राव । मासिक धर्म । स्नीशेष-वि० [सं०] जहां केवल औरतें ही रह गई हो (फो०] ।