पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/३६

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वृद्धावस्था [को०)। स्थविरता ५३४८ स्थान स्थविरता-पज्ञा श्री० [स०] स्थविर या वृद्ध होने का भाव । वुढापा । स्थाणुरोग-मशा पुं० [म.] घोटे को होनेवाला एक प्रकार का रोग जिममे उसकी जांघ मे वग्ग या फोडा निरनता है। स्थविरदारु-सज्ञा पु० [स०] विधारा । वृद्वदारक । विशेष—यह रोग पिन रक्त के कारण होता है। यह प्राय वर- मात में ही होता है। स्थविरद्युति-वि० [म०] वृद्धोचित समान या मर्यादावाला [को०] । स्थविरा--सक्षा स्त्री० [स०] १ गोरखमुडी। महाथावणिका। २ वृद्धा स्थाणुवट---मशा पु० [म०] महाभारत पर्णित एक तीर्य का नाम । स्त्री । बुढी औरत। स्थाण्वीश्वर-माझा पु० [म०] १ वामन पुराण के अनुसार म्याणुतीयं स्थविरायु--वि० [स० स्थविरायुस्] वहुत वृद्व । अत्यत बूढा [को०] । मे स्थित एक प्रसिद्ध शिवल्लिंग। यानेश्वर नामक एक ऐतिहासिक नगर । स्थविष्ट-वि० [स०] १ अत्यत स्थूल । बहुत मोटा । २ अत्यत शक्ति- शाली। महान् वली (को०)। म्थातव्य-वि० [म०] रहने या ठहरने योग्य [को॰] । स्थवीयस-वि० [सं०] जो अत्यत महान् एव विशालतम हो किो०] । स्थाता-वि० [म० म्यान] १ जो स्थित हो । स्थिर रहनेवाला । स्थाडिल'—सचा पुं० [स० स्थाण्डिल] वह जो व्रत के कारण भूमि या २ दृढ । मजदून [को०)। यज्ञस्थल पर सोता है। स्थडिलशायी। स्थाता-मज्ञा पुं० प्रेरक । नियता । यता। स्थाडिल-वि० व्रती होने के कारण यज्ञस्थली या अनावृत पर स्थान--मशा पु० [म०] १ ठहगव । टिकाव । स्थिति २ भूमि- शयन करनेवाला । व्रत के कारण भूमि पर सोनेवाला। भाग । भूमि । जमीन । मैदान । जैन,समा के मामनेवाला स्थाई-वि० [स० स्थायी] दे० 'स्थायी'। स्थान वटा रम्य है। ३ वह अवकाग जिसमे कोई चीज रह स्थाग-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ प्राणहीन देह । शव। लाश। २ शिव के सके । जगह । ठाम । स्थन । जैसे,—मत्र मभामद अपने अपने एक अनुचर का नाम । स्थान पर बैठ गए। ४ देश । घर । गावाम । जैसे,-मैं पाप- स्थागर-वि० [स०] म्यगर सवधी । तगर मे निर्मित [को॰] । के स्थान पर गया था, आप मिने नहीं। ५ काम करने की जगह । पद । पोहदा । जैसे,—उनके दफ्तर मे कोई स्थान खाली स्थाणव--वि० [स०] १ स्थाणु या वृक्ष के तने से निर्मित अथवा है।६ पद । दर्जा जमे,-कागीम्य पडितो मे उनका म्यान बहुत उत्पन्न । २ स्थाणु से सवधित (को०] । ऊँचा है । ७ व्याकरण के अनुसार मुहँ के अदर का वह अग या स्थाणवीय-वि० [स०] स्थाणु या शिव सवधी । शिव का। स्थल जहाँ से किमी वर्ण या शब्द का उच्चारण हो। जैने,- स्थाणुः-सज्ञा पु० [म.] १ खभ । थून । स्तभ। २ पेड का वह घड कठ, तालु, मूर्धा, दत, प्रोष्ठ। ८ राज्य। देश। ६ मदिर । जिसके ऊपर की डालियां और पत्ते ग्रादि न रह गए हो । ठूठ । देवालय। १० किसी राज्य का मुख्य आधार या वल जो चार ३ शिव का एक नाम । ४ एक प्रकार का भाला या वरी। ५ माने गए है । यया,---सेना, कोरा, नगर और दे।। (मनु०)। हल का एक माग। ६ जीवक नामक अष्टवर्गीय गोपधि । ७ ११ गढ । दुर्ग । १२ सेना का अपने बचाव के लिये डटे रहना। धूपघडी का काटा। ८ दीमको की वावी। ६ वह वस्तु (मनु०) । १३ ग्राखेट मे गरीर की एक प्रकार की मुद्रा। १४ जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर न जा सके। स्थिर वस्तु । (माल का) जजीग। गोदाम । १५ अवमर। मौका । १६ स्थावर पदार्थ । १० ग्यारह रुद्रो मे से एक का नाम । ११ अवस्था । दशा। हालत। १७ कारण। उद्देश्य । १८ ग्रथ- एक प्रजापति का नाम । १२ एक नाग का नाम । १३ एक सधि । परिच्छेद । १९ नीतिविदो के त्रिवर्ग के अतर्गत एक राक्षस का नाम ! १४ खूटी। कील (को०)। १५ वैठने का वर्ग। २० किमी अभिनेता का अभिनय या अभिनयगत चरित्न । एक ढग (को०)। २१ वेदी। २२ रामायण मे वणित एक गधर्व राजा का नाम । स्थाणु'-वि० स्थिर । अचल । २३ अानन (युद्वयाना न कर चुपचाप बैठे रहना) का एक स्थाणुकी f-सञ्ज्ञा मी० [स०] बडी इद्रायन । महेंद्रवारुणी लता । भेद । किसो एक उद्देश्य से उदामीन होकर बैठ जाना । २४ स्थाणुच्छेद-र -सज्ञा पुं० [स०] वृक्ष का तना काटनेवाला व्यक्ति [को०] । मृत्यु के बाद कर्मानुसार प्राप्त होनेवाला लोक (को०)। २५ स्थाणुतीर्थ--सज्ञा पुं० [म०] कुरुक्षेत्र के थानेश्वर नामक स्थान का सबध । हैमियत (को०) । २६ पदार्थ । वस्नु (को०) । २७ उचित प्राचीन नाम जो किसी समय बहुत प्रसिद्ध तीर्य माना जाता था। या उपयुक्त स्थान (को०)। २८ उचित या योग्य पदार्थ (को०)। २६ नगरस्थित प्रागण (ो। ३० पडाव। विधामस्थान स्थाणुदिश-सक्षा मी० [स०] बृहत्महिता के अनुसार शिव की दिशा । (को०)। ३१ स्थित होने या ठहरने की क्रिया (को०)। ३२ प्राकार। आकृति । स्प (को०)। ३३ जीवन की मान्य चार स्थाणुभूत-वि० [स०] वृक्ष के ठूठ के समान जड या गतिहीन (को॰] । (ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और मन्यस्त) अवस्थामो या स्थाणुभ्रम–सञ्चा पु० [स०] भ्रम के कारण स्थाणु या ठूठ को कुछ स्थितियो मे कोई एक । प्राधम (को०)। ३४ सगीत मे गीत, सुर और समझना । स्थाण सवधी भ्रम [को॰] । या स्वरो के स्पदन की स्थिति या मात्रा (को०)। ३५ सादृश्य । स्थाणुमती-सज्ञा जी० [सं०] वारगीकि रामायण वर्णित एक प्राचीन समानता | तुल्यता (को०)। ३६ निश्चेष्ट स्थिति या अवस्था । नदी का नाम । औदासीन्य । उदासीनता (को०) । ३७ ज्ञानेंद्रिय (को॰) । उत्तरपूर्व दिशा।