पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/४०

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1. स्थावरकल्प ५३५२ स्थितविद् ६ कोई भी स्थावर वस्नु या पदार्थ । जैमे, वृक्ष, प्रनर ग्रादि स्थागु-पशा पुं० [म०] शारीगि वन । दे० 'ग्याम' [को०] । (को०)। ७ विगाल एव स्थूल शरीर (को०)। ८ स्यायो हाने स्थास्नु ---मदा पुं० [सं०] पौधा । वृक्ष [को०] । का भाव। स्थायित्व । ।। ६ जैन दशन क अनुमार एकेद्रिय स्थाम्नु-वि० [मं०] १ स्थायी । २ रहा दिन टिकनेवाला । टिकाऊ । पदाथ आदि जिनके पांच भेद कहे गए है-(१) पृथ्वीकाय, ३ महनशील । ८ स्थित । रियर । प्रचन [फो०] । (२) अपकाय, (३) तेजस्काय, (४) वायुकाय और (५) मिथक-मा पुं० [सं०] निना । चूनट । वनस्पतिकाय । स्थारनुता-मा ० [५०) यास्नु हाने का भाव या स्थिति । दृढना। स्थावरकल्प-सज्ञा पु० [स०] बौद्ध मत के अनुसार सृष्टि सबधी स्थिरता [को०)। कल्प को०] । स्थित-वि० {म०11 अपन स्थान पर ठहग हुमा । टिका हुप्रा। स्थावरकल्प'--'व० जो स्थावर न होते हुए भी स्थायर के तुल्य हो । जंगे,-म गरन छत समो पर स्थित है। २ लटका हुआ। स्थावरक्रयारणक-पना पु० [म.] काठ को बनी वस्तुएं को०] । अपलपिन । ३ बैठा तुमा । पानीन । जैग, ये अपने प्रागन स्थावरगरल--मक्षा पुं० [स०] दे० 'स्थावरविप' । पर स्थित हो गए । ४ अपनी प्रतिमा पर इटा हुअा। दृढप्रतिन । स्थावरजगम-मज्ञा पुं० [स० स्थावरजङ्गम। सृष्टिगत स्थावर पीर जैम,-वह अपनी बात पर स्थित है।" विद्यमान । वर्तमान । जगम या चल और अचल मभी पदाय । मौजूद । जैस,-परमात्मा विव स्थित है। ६ रहनेवाला। स्थावरता-सज्ञा स्त्री०म०] १ स्थावर होने का भाव। स्थिरता । निवासी । जैने,-स्वगस्थित देवता, दुर्गस्थित सेना। ७ अचलता। २ वानस्पतिक या खनिज होने की स्थिति या अनम्या। चमा हुमा । अवस्थित । जैसे,—यह नगर गगा के बाएँ किनारे स्थावरतीर्थ-सज्ञा पुं० [स०] १ एक प्राचीन नीथ का नाम। २ वह पर स्थित है । ८ ग्रडा हुमा । ऊध्य ।। अचल । स्थिर। १० तीर्थ जिसका जल स्थिर हो । स्थिर जलवाला तीर्थ (को०) । लगा हुमा । सनग्न । मशगूल । ११. जटा हुमा। सचित (को०) । १२ पटित । बीता तुमा । १३ सहमत (फो०)। १४ स्थावरत्व-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'स्थावरता' । निर्धारित । निश्चित । म्योत (को०)। १५ रोका हुअा। स्थावरनाम-सबा पुं० [०] जैन मतानुसार वह पाप कम जिसके वरित (को) । १६ निकटस्थ । पायस्थ (को०) । १७ प्रस्तुत । उदय से जीव स्थावर काय मे ज म ग्रहण करते है। उपस्थित (को०)। १८ यशाती। धीर (को०)। १६ मतव्य- स्थावरराज-सहा पु० [म०] पवनो का राजा, हिमालय । परायण (को०) । २० पुण्यात्मा (को॰) । यौ०--स्थावरराजकन्या = पार्वती। स्थित:-सपा पुं० १. प्रबन्यान । निवास । २ कुलमर्यादा। ३ राडा स्थावरविप--सचा पुं० [स] एक पकार का विप। स्थावर पदार्थों रहना । रुका रहा। ठहरना (को०)। ४ सला होने की मे होनेवाला जहर। अवस्था या ढग (को०) । ५ नतम मे तल्लीनता (को०) । विशेष—यह विप सुश्रुत के अनुसार वृक्षमूल, पत्तो, फल, फूल, छाल, स्थितता-मझा ग्री० [म.] स्थित होने का भाव । ठहराय । प्रव- दूध, सार, गोद, धातु और कद मे होता है। वैद्यक मे यह ज्वर, स्थान । स्थिति। हिचकी, दतहप, गलवेदना, वमन, अरुचि, श्वास, मूर्छ और स्थितधी-वि० [म०] १ जिनका मन पिसी बात से डावाडोल न झाग उत्पन्न करनेवाला बताया गया है। होता हो। जिन ती बुद्धि सदा स्थिर रहती हो। स्थिरबुद्धि । २ जिसका चित्त दुख मे विचलित न हो, सुप की जिसे चाह स्थावराकृति-वि० [स०] स्थावर अर्थात् वृक्ष की प्राकृति या स्वरूप- न हो और जिममे राग, आगक्ति, भय या प्राध न रह गया वाला [को०] । हा। ब्रह्मगुद्धि सपन्न। स्थावरादि-मधा पुं० [स० वत्मनाभ विप । वच्छनाग विप स्थितपाठ्य-ज्ञा पुं० [म०] नाटयगास्त्र के अनुसार लास्य के दस स्थावरास्थावर--सज्ञा पुं० [स०] स्थावर और अस्थावर पदार्थ । दे० अगा मे से एक। काम से सतप्त नायिका का वैठकर स्वाभाविक 'स्थावरजगम'। पाठ करना। स्थाविर-सधा पुं० [स०] वृद्धावस्था । वार्धक्य । बुढौती। विशेप-कुछ लोगो के मत से ऋद्ध या प्रात स्त्री पुरुषो का प्राकृत विशेष—यह अवस्था औरतो के लिये ५० से तथा पुरुपो के लिये पाठ भी यही है। ७० से ६० वर्ष तक मानी गई है। स्थाविरावस्था (६० वर्ष) स्थितप्रज्ञ-वि० [स०] १ जिसको विवेकवुद्धि स्थिर हो। २ जो के उपरात मनुष्य 'वीयस्' कहलाता है । समस्त मनोविकारो से रहित हो। आत्मा द्वारा आत्मा मे ही स्थाविर-वि० १ वृद्ध । वाधक्ययुक्त। २ वुढीती सबधी । ३ मोटा। सतुष्ट रहनेवाला । प्रात्मसतोपी। दृढ [को०)। स्थितप्रेमा-ममा पं० [सं० स्थितप्रेमन्] विश्वस्त मित्र (को०] । स्थासक-मज्ञा पुं० [स०] १ शरीर को चदन आदि से चर्चित या स्थितवुद्धिदत्त [-सज्ञा पुं॰ [सं०] बुद्ध का एक नाम । सुगधित करना । २ पानी का बुलबुला । जलबुवुद् । ३ घोडे स्थितसकेत-वि० [सं० स्थितसङ्केत दे० 'स्थितसविद्' । के साज पर बुलबुले के आकार का एक गहना। ४ अभ्यजन, स्थितसविद् -- वि० [सं०] जो अपने वचन का पालन करता है। विलेपन, चदनादि द्वारा निर्मित आकृति या चिन (को॰) । दृढप्रतिज्ञ (फो०] । -